UP Lok Sabha Chunav 2024: देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश का चुनावी मुकाबला भी दिलचस्प होने वाला है क्योंकि संदेशखाली में जिस वक्त बीजेपी नेता ममता बनर्जी को घेर रहे थे. तब प्रधानमंत्री मोदी समाजवादी पार्टी के गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ से परिवारवाद पर करारा प्रहार कर रहे थे. बीजेपी के मिशन चार सौ प्लस के लिए आजमगढ़ क्यों अहम है.
समाजवादी गढ़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद की राजनीति पर निशाना साध रहे थे.तो विरोधियों को मोदी के परिवार का पता भी बता रहे थे. पिछले एक हफ्ते से प्रधानमंत्री मोदी ने देश के कई राज्यों का तूफानी दौरा किया. अपनी हर रैली में परिवारवाद पर निशाना साधा.लेकिन आजमगढ़ में इसके सियासी मायने अलग हैं. आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का राजनीतिक गढ़ रहा है. साल 1996 से साल 2019 तक आजमगढ़ में नौ लोकसभा चुनाव हुए. नौ चुनावों में से चार बार समाजवादी पार्टी जीती. 2014 में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से सांसद बनें. 2019 में अखिलेश यादव ने आजमगढ़ सीट जीती.
साल 2019 में बीजेपी ने आजमगढ़ से भोजपुरी कलाकार से नेता बने दिनेश लाल निरहुआ को मैदान में उतारा था.अखिलेश यादव ने निरहुआ को 2 लाख 59 हजार वोट से हराया था. अखिलेश यादव को 6 लाख 19 हजार 594 वोट मिले थे जबकि निरहुआ के खाते में 3 लाख 60 हजार 255 वोट आए.
साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव विधायक बने. जिसके बाद आजमगढ़ सीट पर उपचुनाव हुए. सनाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा.जिन्हें हराकर पहली बार दिनेशलाल निरहुआ आजमगढ़ से सांसद बने.
आजमगढ़ सीच सबसे ज्यादा बार समाजवादी पार्टी के खाते में रही है. मौजूदा वक्त में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है.लेकिन क्या 2024 में भी इस सीट पर बीजेपी का कब्जा बरकरार रह पाएगा.बीजेपी का फोकस आजमगढ़ पर क्यों है. इसे 2022 में हुए उपचुनाव के नतीजों से समझा जा सकता है.
दिनेश लाल यादव निरहुआ को 3 लाख 12 हजार 768 वोट मिले थे जबकि समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार 89 वोट मिले. यानी धर्मेंद्र यादव को सिर्फ 8679 वोटों से शिकस्त का सामना करना पड़ा.
दो साल पहले के चुनाव में हार-जीत का यही अंतर BJP के लिए बड़ी टेंशन की वजह है.धर्मेंद्र यादव अखिलेश यादव के चचेरे भाई है. यानी आजमगढ़ सीट पर यादव परिवार ही चुनाव लड़ता रहा है. यही वजह है कि आजमगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर परिवारवाद की राजनीति रही.
400 प्लस के लिए आजमगढ़ क्यों जरूरी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली में आए लोगों से मोबाइल लाइट ऑन करने को कहा.और फिर आजमगढ़ में भी चार सौ पार का नारा दोहराया. लेकिन सवाल ये है कि बीजेपी के मिशन 400 प्लस के लिए आजमगढ़ क्यों जरूरी है? आजमगढ़ से बीजेपी यूपी में 80 में से 80 सीटों को साध सकती है? आजमगढ़ को पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा केंद्र है.आजगमगढ़ से पूर्वांचल की 26 से ज्यादा सीटों को साधा जा सकती है. लेकिन 2019 में बीजेपी को पूर्वांचल में ही सबसे बड़ा झटका लगा था.
2019 में बीजेपी जिन सीटों पर हारी थी. उनमें बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, रायबरेली, घोसी, लालगंज, जौनपुर, अंबेडकर नगर, गाजीपुर, श्रावस्ती, मैनपुरी, सहारनपुर, आजमगढ़, रामपुर और नगीना इन 16 सीटों पर हार मिली थी. इन 16 सीटों में से 10 बीएसपी , पांच समाजवादी पार्टी और एक पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी.
इनमें से गाजीपुर, मऊ की घोसी, आजमगढ़, लालगंज और जौनपुर लोकसभा सीटें पूर्वांचल में हैं.उपचुनाव में बीजेपी ने भले ही आजमगढ़ सीट पर कब्जा जमा लिया था. लेकिन 2024 में चुनौती और बढ़ गई है क्योंकि गुड्डू जमाली समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. साल 2022 उपचुनाव में गुड्डू जमाली तीसरे नंबर पर रहे थे. गुड्डू जमाली को 2 लाख 66 हजार 210 वोट मिले थे.
गुड्डू जमाली को समाजवादी पार्टी ने समाजवादी पार्टी ने यूपी में इसी महीने की 21 तारीख को होने वाले एमएलसी का उम्मीदवार बनाया है.लेकिन आजमगढ़ में गुड्डू जमाली की पूर्वांचल के बड़े मुस्लिम नेता के तौर पर पहचान है. खासतौर से मुसलमान वोटरों में जमाली की गहरी पैठ मानी जाती है.
मुसलमानों के साथ ही यादव वोटरों का दबदबा
आजमगढ़ पर मुसलमानों के साथ ही यादव वोटरों का दबदबा रहा है. यही वजह है कि बीजेपी की लहर के बाद भी आजमगढ़ की पांचों विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है. आजमगढ़ की चुनावी इतिहास बताता है कि इस सीट पर यादव और मुस्लिम उम्मीदवार ही सांसद बनता रहा है.
इस बात का एहसास बीजेपी को भी है इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजमगढ़ से जाति की राजनीति पर भी जमकर निशाना साधा. बीजेपी को यूपी के 10 फीसद यादव वोटरों की सियासी ताकत का अंदाजा है. इसीलिए चंद दिन पहले लखनऊ में यादव महाकुंभ का आयोजन किया गया जिसमें शामिल होने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव खासतौर से आए.मोहन यादव ने यूपी के यादव वोटरों को साधने की कोशिश की
बीजेपी इस बार चार सौ प्लस का टारगेट लेकर चल रही है जिसमें यूपी की अस्सी सीटें सबसे अहम है जिन्हें हर हाल में अपने पाले में करने के लिए बीजेपी कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती है क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से ही जाता है सीलिए देश के सबसे बड़ी सूबे की राजनीति की रवायत पर पूरे देश की नजरें हैं.