वाराणसी में कोतवाली थाने में कुर्सी पर बैठते हैं बाबा कालभैरव, पूजा से होती है दिन की शुरुआत
धर्मिक नगरी काशी के कोतवाली थाने में बाबा काल भैरव को थानेदार की भूमिका में उनकी अलग कुर्सी पर विराजमान किया गया है. यहां टेबल-कुर्सी के अलावा नियम भी बनाए गए हैं जो दंड का निर्धारण करते हैं.
वाराणसीः थाना तो आपने बहुत से देखा होगा और थानेदार का रुआब भी देखा होगा लेकिन धर्मिक नगरी के कोतवाली थाने में बाबा काल भैरव अपनी कुर्सी पर विराजमान होकर व्यवस्था चलाते हैं. यहां टेबल भी है कुर्सी भी है टोपी भी है और रूल भी है जो दंड का निर्धारण करता है.
कोतवाली थाने की मुख्य कुर्सी पर रखी जाती है बाबा काल भैरव की तस्वीर
बाबा की नगरी में काल भैरव कोतवाल कहे जाते हैं. काशी की व्यवस्था बाबा काल भैरव ही चलाते हैं, बिना इनकी अनुमति के काशी वास नहीं होता और पाप का दंड भी यहीं देते हैं. बाबा की नगरी में कोतवाली थाने में लगी मुख्य कुर्सी पर थानेदार नहीं बल्कि बाबा कालभैरव बैठते हैं, ठीक बगल में प्रशासनिक कोतवाल बैठते जरूर हैं लेकिन वो बाबा कालभैरव के सहारे पर रहते हैं.
बाबा काल भैरव की अनुमति के बिना असंभव है काशी वास
गौरतलब है कि बाबा काल भैरव काशी के कोतवाल हैं, इनकी कुर्सी पर कोई बैठता नहीं है. इनकी पूजा के बिना दिन की शुरुआत नहीं होती और थाने की व्यवस्था इन्हीं की कृपा पर चलती है. मान्यता है कि बाबा के इस दरबार से कभी अन्याय नहीं होता. कहा जाता है कि 1715 में बाजीराव पेशवा ने बाबा कालभैरव का मंदिर बनवाया था, कोई भी अधिकारी अपने पद का प्रभार ग्रहण करने से पहले यहां हाजिरी जरूर लगाता है. बाबा काल भैरव को ये अधिकार बाबा विश्वनाथ से प्राप्त हुआ है और बिना इनके आशीर्वाद से काशी में रहना मुश्किल है.
बाबा की पूजा से होती है दिन की शुरुआत
बाबा काल भैरव का स्वरूप अनोखा है, कोतवाली क्षेत्र में ही बाबा अपने धाम में विराजमान हैं और थाने में परंपरानुसार बाबा की पूजा होती है जो लोगों के बीच धर्मिक आकर्षण का केंद्र है. कोतवाली थाना और यहां के थानेदार बाबा कालभैरव का आशीर्वाद लेकर ही बगल की कुर्सी पर बैठते हैं.