देहरादून: बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए आज से बंद कर दिए गए. आज दोपहर 3.35 बजे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद हुए. इससे पहले गंगोत्री मंदिर के कपाट दिवाली के अगले दिन 15 नवंबर को अन्नकूट पर्व पर बंद हो गये. वहीं, 16 नवंबर को भाईदूज के पर्व पर केदारनाथ और यमुनोत्री मंदिर के कपाट बंद हुए. गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के बाद बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही इस वर्ष की चारधाम यात्रा का समापन हो गया. बता दें कि इस सीजन में अभी तक बदरीनाथ धाम में एक लाख 38 हजार भक्तों ने भगवान के दर्शन किए.
पहनाया जाता है ऊन का लबादा
कपाट बंद होने से पूर्व भगवान को ऊन का लबादा पहनाया गया. इस ऊन के लबादे पर घी लगाया जाता है. यहां पर भक्त और भगवान की आत्मीयता और लगाव के दर्शन होते हैं. अब शीतकाल में भगवान बर्फ के बीच रहेंगे. प्रभु को ठंड न लगे, इस धारणा, आत्मीयता, स्नेह के कारण भगवान को यह ऊन का लबादा जिसे घृत कम्बल कहते हैं, पहनाया जाता है. इसे भारत के अंतिम गांव माणा की कन्या बुनकर भगवान को देती हैं. भगवान के प्रति सम्मान यह वस्त्र उपहार और आदर के रूप में देखा जाता है.
शीतकाल में देवता करते हैं पूजा
मान्यता है कि भगवान के शीतकाल में कपाट बंद होने पर देवता, भगवान का दर्शन-अर्चन करने आते हैं. जिस तरह कपाट खुलने पर मानव भगवान का दर्शन-अर्चन करते हैं. 20 नवम्बर को कुबेर जी महाराज, उद्धव जी का विग्रह लेकर रावल जी की अगुवाई में पांडुकेश्वर भक्त पहुंचेगे और आदि गुरु शंकराचार्य जी ने जिस आसन्न पर बैठ कर ज्योर्तिमठ जोशीमठ में साधना की थी उस आसन्न डोली को जोशीमठ नरसिंह मंदिर में लाया जायेगा.
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