UP: मस्जिद ध्वस्तीकरण विवाद, रामसनेही घाट जा रहे कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल को प्रशासन ने लौटाया, जानें पूरा मामला
यूपी के बाराबंकी जिले में मस्जिद ढहाए जाने के मामले में कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल रामसनेही घाट जाकर मौका मुआयना करके स्थानीय लोगों से बातचीत करना चाहता था. लेकिन, रास्ते में ही पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया.
बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रामसनेही घाट क्षेत्र में प्रशासन की तरफ से एक मस्जिद ढहाए जाने के मामले में बृहस्पतिवार को मौके का मुआयना करने जा रहे कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल को जिला प्रशासन ने रास्ते में रोक दिया. कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने न्यूज एजेंसी 'भाषा' को बताया कि उनकी अगुवाई में पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल रामसनेही घाट जाकर मौका मुआयना करके स्थानीय लोगों से बातचीत कर वस्तुस्थिति की जानकारी लेना चाहता था. मगर, रास्ते में ही पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया. बाद में सभी नेताओं को वापस लौटा दिया गया.
मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया जाए
लल्लू ने बताया कि उन्होंने रास्ता रोकने वाले अधिकारियों से जिरह की कि उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद आखिर किस कानून के तहत 100 साल पुरानी मस्जिद को जमींदोज कर दिया गया. क्या देश में अलग-अलग कानून लागू हैं और क्या प्रशासन की नजर में उच्च न्यायालय के आदेश का कोई मोल नहीं है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की मांग है कि असंवैधानिक तरीके से मस्जिद गिराकर भावनाओं को आहत करने वाले अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर मामले की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत न्यायाधीश से जांच कराई जाए और मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया जाए. प्रतिनिधिमंडल में पूर्व सांसद पीएल पुनिया, पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और पूर्व विधायक राजलक्ष्मी वर्मा भी शामिल थे.
नोटिस मिलने के बाद फरार हो गए लोग
गौरतलब है कि, रामसनेही घाट तहसील के सुमेरगंज कस्बे में उप जिलाधिकारी आवास के ठीक सामने स्थित एक पुरानी मस्जिद को स्थानीय प्रशासन ने गत 17 मई की शाम को कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच ध्वस्त करा दिया था. जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने मस्जिद को 'अवैध आवासीय परिसर' करार देते हुए कहा था कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को पिछली 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था लेकिन परिसर में रह रहे लोग नोटिस मिलने के बाद फरार हो गए, जिसके बाद तहसील प्रशासन ने 18 मार्च को परिसर पर कब्जा हासिल कर लिया.
17 मई को किया गया ध्वस्तीकरण
जिलाधिकारी ने दावा किया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने इस मामले में दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे गत दो अप्रैल को निस्तारित कर दिया था. इससे ये साबित हुआ कि वो निर्माण अवैध है. इस आधार पर रामसनेही घाट उप जिलाधिकारी की अदालत में न्यायिक प्रक्रिया के तहत मुकदमा दायर किया गया और अदालत की तरफ से पारित आदेश पर 17 मई को ध्वस्तीकरण कर दिया गया.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने की निंदा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि जिला प्रशासन ने 100 साल पुरानी मस्जिद गरीब नवाज को असंवैधानिक तरीके से जमींदोज कर दिया. इस मामले के दोषी अधिकारियों को निलंबित कर मामले की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत न्यायाधीश से जांच कराई जाए और मस्जिद का पुनर्निर्माण करवाकर उसे मुस्लिम समुदाय के हवाले किया जाए.
अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
उधर, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी इसकी कड़ी निंदा करते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी. बोर्ड ने ये भी कहा था कि वो उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद मस्जिद ढहाए जाने के असंवैधानिक कृत्य के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगा.
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