Barabanki: घाघरा-सरयू का जलस्तर बढ़ने से डर का माहौल, राहत कार्य के लिए दिन-रात नाव बनाने में जुटे कारीगर
बाराबंकी में घाघरा और सरयू नदी का जलस्तर पहाड़ों पर हो रही बारिश के कारण बढ़ रहा है. इससे राहत कार्य के लिए नाव बनाने के काम में तेजी आई है. लेकिन कारीगरों को मुश्किलों का भी सामना करना पड़ रहा है.
UP News: बाराबंकी (Barabanki),गोंडा (Gonda) और बहराइच सीमा से बहने वाली घाघरा-सरयू (Ghaghra Saryu) नदी में लगातार बढ़ रहे जलस्तर के कारण तराई क्षेत्रों में दहशत का माहौल है. पहाड़ों पर बारिश के कारण से नदी का जलस्तर बढ़ रहा है. लोग ऊंचे स्थानों की ओर पलायन करने के लिए लकड़ी की नावों का सहारा ले रहे हैं. यहां नावों की मांग काफी बढ़ गई है. कारीगर दिन-रात नाव बनाने में लगे हुए ताकि बाढ़ में फंसे लोगों को नाव के सहारे निकाला जा सके.
नेपाल से पानी छोड़ने से भी बढ़ जाता है जलस्तर
पहाड़ों पर हो रही बारिश और नेपाल से पानी छोड़े जाने के कारण नदी का जलस्तर बढ़ रहा है. उधर, दहशत में जी रहे तराई क्षेत्र के लोगों के लिए नाव सहारा बन गया है. नाव बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि महंगाई के कारण नाव तैयार करने में दिक्कतें आ रही हैं. कारीगर तराई क्षेत्र में दिन-रात नाव बनाने का काम कर रहे हैं. पिछले 20 सालों से नाव बनाने का काम कर रहे कारीगर मोहन ने एबीपी गंगा को बताया कि जब उन्होंने नाव बनाना शुरू किया था तो पहले 5 हजार रुपये में अच्छी नाव बनकर तैयार हो जाती थी, आज यही नाव अब 15 से लेकर 20 हजार में बनती है. जो पहले जैसी भी मजबूत नहीं होती है.
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नाव बनाने पर पड़ी महंगाई की मार
मोहन ने बताया कि नाव जितनी बड़ी होती है उसकी लागत भी उतनी ही ज्यादा होती है. मोहन ने बताया कि नाव में लगने वाला सामान, लकड़ी की चिराई और सामान ढोने का किराया सब महंगा हो गया है. पहले सामान ढोने में 500 रुपये किराया देना होता था वह आज 1500 रुपये हो गया है. बाढ़ के दौरान 20 के करीब नाव बनाने का ऑर्डर मिल जाता है. मोहन जिले के गौरा, नकहरा, परसावल, रायपुर, बेहटा और पारा से आने वाले ऑर्डर पर काम कर रहे हैं. मंहगाई के कारण वह शीशम की जगह दूसरी लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि वह यूकेलिप्टिस और बबूल की लकड़ी से भी नाव तैयार कर लेते हैं. नाव बनाने में कितनी मजदूरी मिल जाती है. उन्होंने बताया कि एक महीने में 25 से 30 हजार की कमाई हो जाती है.
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