Fatwa against killers of Kanhaiya Lal: उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल हत्याकांड के खिलाफ बरेलवी उलेमा ने कड़ा रुख अख्तियार किया है. विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत से हत्याकांड के खिलाफ फतवा जारी हुआ है. फतवे में कहा गया है कि क़त्ल करनेवाला शरियत की रोशनी में मुजरिम और सजा के काबिल है. कानून को हाथ में लेनेवाला गुनेहगार है. सजा देने का अधिकार सिर्फ कानून को है. दरगाह आला हजरत की तरफ से आज तंजीम उलेमा ए इस्लाम ने बैठक कर घटना के तमाम पहलुओं को शरियत की रोशनी में जांचने और परखने की कोशिश की.


कन्हैया लाल के हत्यारों के खिलाफ फतवा जारी


उलेमा ने सर्वसम्मति से फतवा जारी कर घटना को अंजाम देने वाले दोनों मुस्लिम कातिलों को शरियत की अदालत में मुजरिम करार देते फतवा जारी किया. हत्याकांड को इस्लाम मजहब के नाम पर अंजाम दिया गया था. इसलिए शरियत की बताई हुई शिक्षा को सही अंदाज में जनता के सामने पेश करने की जरूरत थी. दरगाह आला हजरत के प्रवक्ता मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि आला हजरत ने अपनी किताब 'हुस्सामुल हरमैन' में इस तरह की घटनाओं के बारे में फतवा दिया है.


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उन्होंने कहा है कि "कि इस्लामी हुकूमत या गैर इस्लामी हुकूमत में अगर कोई व्यक्ति या बादशाह की इजाजत के बगैर किसी गुस्ताखे नबी को कत्ल करता है तो उसका गाजी होना दर किनार बल्कि ऐसा व्यक्ति शरियत की नजर में मुजरिम होगा और बादशाहे इस्लाम उसे सख़्त सजा देगा". फिर आला हजरत आगे फतवे में लिखते है कि "जब इस्लामी हुकूमत में ये आदेश है तो जहां इस्लामी हुकूमत नहीं है वहां तो पहले दर्जे में ही नाजायज होगा, और गुस्ताखे नबी को कत्ल करने की वजह से अपनी जान को हलाकत और मुसीबत में डालना होगा."


आला हजरत ने आम मुसलमानों को आदेश देते हुए फतवे में कहा कि "शरियत की रोशनी मे सिर्फ ऐसे गुस्ताख का जुबान से निंदा करना, आम लोगों को उससे मेल जोल रखने से रोकना, हुकूमत के जिम्मेदारान तक शिकायत पहुंचाना काफी है ताकि उस व्यक्ति पर मुकदमा कायम हो सके, अपने आप से खुद कानून हाथ में लेकर किसी आम व्यक्ति को सजा देना जायज नहीं है. मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बताया की किसी गुस्ताखे नबी को हुकूमत की इजाजत के बगैर किसी आम आदमी को सजा देना, या कत्ल करना, या सर तन से जुदा करना आला हजरत के फतवे की रोशनी मे ऐसा शख्स सजा के लाइक और मुजरिम है.


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मौलाना ने खास तौर पर भारतीय मुसलमानों से कहा कि चंद वर्षों से पाकिस्तान के लोगों ने नारा लगाना शुरू किया "गुस्ताखे नबी की है ये सजा सर तन से जुदा सर तन से जुदा". नारा सोशल मीडिया के माध्यम से हिन्दुस्तान में प्रमोट हुआ. पाकिस्तान में गठित तहरीके लब्बैक संगठन ने अपने राजनीतिक आशाओं को पूरा करने के लिए ये नारा लगाना शुरू किया. इसका उन्हें पाकिस्तान में लाभ भी मिला. हिन्दुस्तान एक जम्हूरी देश है.


मुस्लिमों से कानून को हाथ में न लेने की अपील


यहां इस तरह के नारे लगाना जायज नहीं है. कानून को मुसलमान अपने हाथ में न लें, हुकूमत से शिकायत करें, सजा देने का काम हुकूमत का है. बैठक में खास तौर पर मौलाना मुजाहिद हुसैन, मौलाना नूर अहमद अजहरी, मुफ्ती मजहर इमाम, मौलाना शाकीर अली, मुफ्ती तौकीर अहमद, मौलाना ताहिर फरिदी, मुफ्ती अतीफ मिस्बाही, सूफ़ी हनीफ जहांगीरी, कारी सगीर अहमद रजवी, मौलाना खुर्शीद अहमद, मौलाना अफसार अहमद, मौलाना गुलाम मोहीयूद्दीन, मौलाना अनीसूर रहमान, हाफीज आमिर बरकाती, मौलाना इन्कलाब चिश्ती आदि मौजूद रहे.