Bareilly News: सावन के पहले सोमवार के मौके पर बरेली भोले के रंग में रंगी नजर आ रही है. हर ओर भोलेनाथ के जयकारे गूंज रहे है. इसी के साथ जलाभिषेक समिति के सैकड़ों सदस्य मोटरसाइकिल पर सवार होकर मढ़ीनाथ मंदिर पहुंचे. जहां पर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया. इसी के साथ हर हर महादेव के जयघोष से पूरा बरेली गुंजायमान है. दरअसल, बरेली नाथ नगरी के नाम से जानी जाती है. यहां हर दिशा में भगवान भोलेनाथ के मंदिर है. 


मंदिरों का इतिहास
मान्यता है कि ये सभी शिवलिंग स्वंभू प्रकट हुए है. जिस वजह से सावन के महीने में मंदिरों में लाखो श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते है. मढ़ीनाथ, तपेश्वरनाथ, पशुपति नाथ, अलखनाथ, धोपेश्वर नाथ, त्रिवटी नाथ, वनखंडी नाथ मंदिर बरेली के प्रमुख मंदिर है.


धोपेश्वर नाथ मंदिर
सदर कैंट के दक्षिण मध्य अग्निकोण में धोपेश्वर नाथ मंदिर स्थित है. धूम्र ऋषि ने यहां कठोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और धूम्र ऋषि ने भगवान से जनकल्याण के लिए यहीं विराजने की प्रार्थना की. जिसके बाद यहां स्थापित शिवलिंग को धूम्रेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा. वर्तमान में ये मंदिर धोपेश्वर नाथ नाम से जाना जाता है.


वनखंडी नाथ मंदिर
पूर्व दिशा में जोगी नवादा इलाके में ये अति प्राचीन मंदिर स्थित है. द्रोपदी ने अपने राजगुरु द्वारा इस शिवलिंग की विधिवत पूजा अर्चना कर प्राण प्रतिष्ठा की थी. उस समय यहां अविरल गंगा बहती थी. वन से घिरे इस मंदिर को मुगलों ने कई बार खंडित करने की कोशिश की जिसके कारण इस मंदिर का नाम वनखंडी नाथ मंदिर पड़ा.


त्रिवटी नाथ मंदिर
उत्तर कुबेर दिशा प्रेमनगर में ये भव्य मंदिर स्थापित है. यहां भगवान शिव ने खुद प्रकट होकर तीन वटों के नीचे सो रहे चरवाहे को सपने में दर्शन दिए और कहा कि यहां पर मैं स्थित हूं. नींद से जागने के बाद चारवाह ने भगवान का आदेश मानकर त्रिवट के नीचे खुदाई की तो उसे शिवलिंग के दर्शन हुए जिसके कारण इस मंदिर का नाम त्रिवटी नाथ मंदिर पड़ा.


तपेश्वर नाथ मंदिर
दक्षिण भूतनाथ सुभाषनगर इलाके में स्थित ये मंदिर कई ऋषियों और संतों की तपोस्थली रहा है जिसके कारण इस मंदिर का नाम तपेश्वर नाथ मंदिर पड़ा.


अलखनाथ मंदिर
उत्तर पश्चिम दिशा में ये मंदिर किला इलाके में स्थित है. मुगलकाल में जब सनातन संस्कृति को नष्ट किया जा रहा था तो धर्म की रक्षा के लिए आनंद अखाड़े के बाबा अलाखिया को यहां भेजा गया. शिव के अनन्य भक्त बाबा अलाखिया ने यहां भगवान शिव की कठोर तपस्या कर शिवलिंग की स्थापना की. जिसके बाद मुस्लिम शासक बाबा के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए. अलाखिया बाबा के नाम पर ही मंदिर का नाम अलखनाथ मंदिर पड़ा. यहां अभी भी मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है का बोर्ड लगा हुआ है.


मढ़ीनाथ मंदिर
पश्चिम दिशा में स्थित यह प्राचीन मंदिर पांचाल नगरी का है. यहां के बाबा के पास मणिधारी सर्प था जिसके कारण मंदिर का नाम मढ़ीनाथ मंदिर पड़ा. जिस इलाके में ये मंदिर स्थित है उस इलाके को मढ़ीनाथ मोहल्ले के नाम से जाना जाता है.


पशुपति नाथ मंदिर
नेपाल की तर्ज पर बने इस मंदिर में 108 शिवलिंग है. पीलीभीत रोड के बीसलपुर चौराहे के पास स्थित इस मंदिर में सावन महीने में हजारों कावड़िए जलाभिषेक करने को आते है. पर्यटन विभाग ने मुख्यमंत्री पर्यटक संवर्धन योजना के तहत प्राचीन पशुपति नाथ मंदिर में सौंदर्यीकरण के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा है. पूरे कार्य के लिए 3 करोड़  रुपये की धनराशि खर्च होने का अनुमान है. 


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