गंगा-जमुनी तहजीब की जीती जागती मिसाल है चुन्ना मियां का मंदिर, पढ़ें इसके पीछे की अनोखी कहानी
बरेली के चुन्ना मियां का मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन चुका है. यहां दर्शन करने के लिये लोग दूर दूर से आते हैं. इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.
बरेली: बरेली का चुन्ना मियां मंदिर हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे और गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल पेश करता है. कटरा मानराय में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर को चुन्ना मिया मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर के इतिहास के बारे में और इसे चुन्ना मिया मंदिर क्यों कहते है, हम आपको बताते हैं इसके पीछे की कहानी.
यूं तो इस देश में मंदिर-मस्जिद के नाम पर कई बार सांप्रदायिक दंगे हुए. बरेली में भी कई बार ऐसे दंगे हुए, जिस वजह से बरेली को अतिसंवेदनशील कहा जाता है. लेकिन इसी बरेली में सेठ फजरुल रहमान उर्फ चुन्ना मियां ने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिसकी पूरी दुनिया में मिसाल पेश की जाती है. चुन्ना मियां तो अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनका नाम हमेश के लिए अमर हो गया क्योंकि उन्होंने काम ही ऐसा किया.
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी थी मंदिर की नींव
कटरा मानराय में बना चुन्ना मियां का मंदिर एक ऐसा स्थल है, जहां अमन और सौहार्द के फूल महकते हैं. लक्ष्मी नारायण का यह मंदिर उनके किसी भक्त ने नहीं, बल्कि बरेली के सेठ फजरुल रहमान उर्फ़ चुन्ना मियां ने बनवाया था. इंसानियत को अपना धर्म मानने वाले चुन्ना मियां का यह मंदिर धर्म और मजहब को बांटने वालों के लिए एक नजीर से कम नहीं है. इस मंदिर के प्रवेश पर अशोक की लाट लगी हुई है, जो आमतौर पर देश के किसी भी मंदिर में दिखाई नहीं देती. इस मंदिर के निर्माण की कई खासियतों में एक यह भी है कि, इस मंदिर की आधारशिला देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी थी.
चुन्ना मियां ने दान में दी मंदिर के लिए जमीन
आजादी के बाद वर्ष 1957 में पाकिस्तान से विस्थापित पंजाबी समाज के लोग बरेली में आकर बसे गए थे, लेकिन उनके पास पूजा पाठ करने के लिए कोई जगह नहीं थी. इस बीच, चुन्ना मियां के पास काफी जमीन पड़ी हुई थी. जब लोगों ने उस जगह को मंदिर के लिए दान करने को कहा और वहां पर मंदिर बनवाने को कहा, तो वो राजी हो गए और उन्होंने उस जमीन को मन्दिर के नाम कर दिया. इतना ही नहीं मंदिर बनवाने में आर्थिक सहायता भी की. साथ ही सनातन धर्म पंजाबी फ्रंटियर सभा का पंजीकरण कराया गया और उसके लिए 20,700 रुपये अनुदान भी दिया. हर धर्म और जाति के लोग दुनिया भर से इस मंदिर में आते हैं. ये मंदिर 16 मई 1960 में बनकर तैयार हुआ जिसके बाद चुन्ना मियां ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से इसका उद्घाटन करवाया था.
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