Bareilly: ब्रिटिश हुकूमत में 10 महीने तक आजाद रहा था बरेली, किसने बनाया इसे मुमकिन?
बरेली को 1857 से 1858 के बीच 10 महीने के लिए अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ा लिया था जिसमें खान बहादुर खान ने अहम भूमिका निभाई थी.
UP News: देश को आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Amrit Mahotsav) बनाने का मौका उन क्रांतिकारियों ने दिया जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने प्राण हंसते हंसते न्योछावर कर दिए थे. बरेली (Bareilly) भी स्वतंत्रता सेनानियों (Freedom Fighters) की पावन धरती रही है जब पूरे देश पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था तब बरेली 10 महीने तक आजाद रहा था और ये सब मुमकिन हो सका था स्वतंत्रता सेनानी खान बहादुर खान (Khan Bahadur Khan) की वजह से. हालांकि बाद में अंग्रेजों ने खान बहादुर खान के साथ 257 क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया था.
मई 1857 को बरेली को अंग्रेजों से कराया था आजाद
खान बहादुर खान एक ऐसा नाम जिनकी वजह से अंग्रेजों की रूह कांप जाती थी. खान बहादुर खान ने 1857 में बरेली में कई फिरंगी अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया था जिसके बाद उन्होंने बरेली को 31 मई 1857 को अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त करवा दिया था. हुकुमत चलाने के लिए खान बहादुर खां ने एक अन्य क्रांतिकारी नेता मुंशी शोभाराम को वजीर-ए-आजम घोषित किया. इसके अलावा मदार अली खां और न्याज मोहम्मद को सूबेदार बनाया. बड़ी बात ये है कि जब अंग्रेजों का पूरे देश पर शासन था उस दौरान क्रांतिकारियों का बरेली में लगभग 10 महीने पांच दिन तक कब्जा रहा.
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बरगद के पेड़ से लटकाकर दी गई थी फांसी
10 महीने बाद 1858 में अंग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों को परास्त करते हुए बरेली शहर पर फिर से अधिकार कर लिया. अंग्रेजों ने सभी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. बरेली में अंग्रेजी सरकार ने उन पर मुकदमा चलाया और अदालत ने खान बहादुर खा को मौत की सजा दी. 24 फरवरी, 1860 को उन्हें पुरानी कोतवाली में फांसी दे दी गई. 257 क्रांतिकारियों को कमीश्नरी स्थित बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. आज वहां अमर शहीद स्तंभ मौजूद है.
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