(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Independence Day 2022: बस्ती के इन गुमनाम नायकों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के, इस जगह पर 500 लोगों को फांसी दी गई थी फांसी
Azadi Ka Amrit Mahotsav: जमीनी स्तर के बहुत से जनसंघर्षों को इतिहासकारों ने नजरअंदाज किया है. इसी नाते बहुत से क्रांति नायकों और नायिकाओं की वीरता की कहानियां अपेक्षित महत्व नहीं पा सकी हैं.
Basti News: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन (First Freedom Struggle Movement) को जन क्रांति का रूप देने वाली उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बस्ती (Basti) के अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवरि के बलिदान को आज भी गौरव के साथ याद किया जाता है. उस आंदोलन में रानी ने पूरी ताकत से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. तब रानी के सिपहसालारों और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग में शामिल सैकड़ों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने छावनी में पीपल के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी थी लेकिन क्रांतिकारियों का हौसला नहीं डिगा. फिरंगियों को देश से खदेड़ने की लड़ाई जारी रखी और उन्हें कामयाबी भी मिली.
आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ीं रानी तलाश कुंवरि ने
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दूरदराज के इलाको में जमीनी स्तर के बहुत से जनसंघर्षों को इतिहासकारों ने नजरअंदाज किया है. इसी नाते बहुत से क्रांति नायकों और नायिकाओं की वीरता की कहानियां अभी भी अपेक्षित महत्व नहीं पा सकी हैं. ऐसी ही एक महान सेनानी बस्ती जिले की अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुवंरि थीं, जिन्होंने अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी. उन्होंने अपने इलाके के लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी मुहिम चलाई थी कि, रानी की शहादत के बाद कई महीने जंग जारी रही. सेनापति अवधूत सिंह भी काफी बहादुर थे. उन्होंने रानी की शहादत के बाद हजारों क्रांतिकारियों को एकत्र कर 6 मार्च 1858 को अमोढ़ा और बाद में अन्य स्थानों पर युद्ध किया.
इस जगह पर करीब 500 लोगों को दी गई फांसी
सेनापति अवधूत सिंह अपने साथियों के साथ बेगम हजरत महल को नेपाल तक सुरक्षित पहुंचाने भी गए थे लेकिन लौटने पर अंग्रेजों के हाथ पड़ गए और छावनी में पीपल के पेड़ पर उनको फांसी दे दी गई. उनके वंशजों में राम सिंह ग्राम बभनगांवा में आज भी रहते हैं. बागियों की रामगढ़ की गुप्त बैठक में शामिल सभी लोग जल्दी ही पकड़े गए और इन सबको बिना मुकदमा चलाए फांसी पर लटका दिया गया. जो भी नौजवान अंग्रेजों की पकड़ में आ जाता उसे छावनी में पीपल के पेड़ पर रस्सी बांधकर लटका दिया जाता था. इसी पीपल के पेड़ के पास एक आम के पेड़ पर भी अंग्रेजों ने जाने कितने लोगों को फांसी दी. इस पेड़ की मौजूदगी 1950 तक थी और इसका नाम ही फंसियहवा आम पड़ गया था. पीपल का पेड़ तो खैर अभी भी है पर आखिरी सांस ले रहा है. इस स्थल पर करीब 500 लोगों को फांसी दी गई.
अभी भी उपेक्षा का शिकार है ये जगह
अंग्रेजों ने प्रतिशोध की भावना से गांव के गांव को आग लगवा दी. 1858 से 1972 तक छावनी शहीद स्थल उपेक्षित पड़ा था. 1972 में शिक्षा विभाग के अधिकारी जंग बहादुर सिंह ने अध्यापकों के प्रयास से एक शिलालेख लगवाया और कई गांव के लोगों से इतिहास संकलन का प्रयास किया. इसी के बाद कई शहीदों के नाम प्रकाश में आए जिनको शिलालेख पर अंकित किया गया. इस स्मारक की दशा अभी भी बहुत खराब है. बस 30 जनवरी को शहीद दिवस पर यहां एक छोटा मेला लग जाता है, दूसरी ओर अमोढ़ा किला और राजमहल भी भारी उपेक्षा का शिकार है.