Uttar Pradesh News: सरकार की एक ऐसी परियोजना जिसे पूरा होने में 4 दशक से भी अधिक का समय लगा और जब परियोजना पूरी हुई तो धरातल पर किसानों को इसका लाभ ही नहीं मिल पाया, यानि जिस सोच के साथ इस योजना की शुरुआत हुई वह जमीन पर उतरते उतरते बदहाल हो गई. सरयू नहर परियोजना (Saryu Canal Project) पूर्वांचल की लाइफ लाइन मानी जाती है, लेकिन चार दशक बीत जाने के बाद भी अब तक किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंचा है. योजना में अब तक करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए हैं, लेकिन अभी भी नहर पूरी नहीं बन पाई है. विभाग की तरफ से किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया, ताकि किसानों को अपना खेत सींचने में आसानी हो, मगर ऐसा हो नहीं सका. किसान ने अपनी जमीन भी दी और उसे नहर में पानी भी नहीं मिल पाया. ऐसे में यह महत्वाकांक्षी परियोजना दम तोड़ती नजर आ रही है.


दरअसल,सरयू नहर परियोजना को साल 1982 में नेशनल प्रोग्राम के रूप में शुरू किया गया था. सरयू नहर परियोजना बहराइच, बस्ती, गोरखपुर समेत 9 जिलों के लिए शुरू की गई, लेकिन चार दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी आज तक नहरों में पानी नहीं पहुच सका है. नहर को बनाने में अब तक साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, फिर भी नहर अब तक चालू नहीं हो सकी है. एक तरफ नहरों में पानी न पहुंचने से किसानों को नहर का लाभ नहीं मिला तो वहीं दूसरी तरफ नहर के लिए जिस उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण किया गया था वह भी बेकार पड़ी हुई है.


नहीं मिलता फसलों की सिंचाई के लिए पानी
सरयू नहर योजना पिछले 42 साल से संचालित हो रही है. बावजूद इसके किसानों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया. बस्ती जनपद के बहादुरपुर ब्लॉक के किसानों को सस्ते मूल्य पर पर्याप्त सिंचाई का जल उपलब्ध कराने के लिए 1969 में कुआनो नदी के तिलाहवा गांव पर बस्ती पंप कैनाल स्थापित किया गया था, जिसकी लंबाई लगभग 25 किलोमीटर है. यह नहर दर्जनों गांव से होकर गुजरती है. मुख्य नहर तिलहवा से कुदरहा ब्लॉक के कडसरी मिश्र तक और माइनर नहर पिपरा गौतम इंटर कॉलेज तक बनी थी. नहर निर्माण के बाद से ही किसानों को इस नहर से फसलों की सिंचाई के लिए पानी नहीं मिला.


नहर की सफाई होती है सिर्फ कागजों में
विभागीय उपेक्षा के चलते इस नहर का क्षेत्र भी सिकुड़ता चला गया. अब यह सरयू नहर महज 13 किलोमीटर तक ही सीमित रह गई है. नहर की देखरेख और रखरखाव के नाम पर हर साल लाखों रुपए खर्च होते हैं, लेकिन नहर की सफाई सिर्फ कागजों में कर ली जाती है. दो साल पहले किसानों को पानी उपलब्ध कराने के लिए लगभग तीन करोड़ रुपए खर्च कर लगभग 2 किलोमीटर नहर का पक्कीकरण कराया गया था, जो बिना नहर में पानी आए ही बदहाल हो गया है. नहर को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नहर निर्माण और मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट किया गया.


इसको लेकर डीएम प्रियंका निरंजन ने एबीपी गंगा संवाददाता से फोन पर कहा कि, नहर को पूरा कर लिया गया है. अगर कहीं किसी जगह नहर में पानी नहीं आया है तो इसकी जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी.


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