आगरा की इस इमारत को नहीं देखा तो क्या देखा, ताज की खूबसूरती को देती है टक्कर
आगरा के ताजमहल के बारे में सभी जानते हैं. लेकिन मोहब्बत का पैगाम देने वाले इस शहर में एक और इमारत है जिसे देखकर आप ताज की नक्काशी भूल जाएंगे. पढ़ें इस रिपोर्ट को.
आगरा. मुगलों की राजधानी रही आगरा में केवल ताजमहल ही नहीं है, बल्कि कई सारे ऐसे स्मारक हैं जिसकी खूबसूरती देख आंखें खुली की खुली रह जाए। उसमें से एक है एत्माद्दौला यानि बेबी ताज. बेमिसाल पच्चीकारी और खूबसूरती के प्रतीक स्मारक के जर्रे-जर्रे में मुगलकालीन स्थापत्य कला नुमाया होती है. यमुना के तट पर सफेद संगमरमर के बने इस मकबरे को मुगल साम्राज्ञी नूरजहां ने अपने पिता मिर्जा ग्यास बेग की याद में तामीर कराया था, बाद में नूरजहां की मां को भी अपने पति की कब्र के पड़ोस में दफनाया गया.
चांदी से बनवाना चाहती थीं पिता का मकबरा
पिता के मकबरे को नूरजहां चांदी से बनवाना चाहती थी, लेकिन अपनी सखी सित्ती उन्निसा के समझाने पर अपना विचार बदल दिया था. जहांगीर से वर्ष 1611 में निकाह और वर्ष 1613 में बादशाह बेगम बनने के बाद मुगल दरबार में नूरजहां का रुतबा भी काफी बढ़ता चला गया था. नूरजहां अपने पिता की मौत के बाद उनकी याद में चांदी से भव्य मकबरा बनवाना चाहती थी. शंहशाह जहांगीर पर उसके प्रभाव के चलते यह काम उसके लिए असंभव भी नहीं था. उसने अपनी सखी सित्ती उन्निसा को अपनी इच्छा से अवगत कराया था. सित्ती समझदार थी और हमेशा नूरजहां का भला चाहती थी. उसने नूरजहां को समझाया था कि दुनिया में कोई भी चीज स्थायी नहीं है. अगर वो चांदी से मकबरा बनवाएगी तो उसकी लूट की वजह से उसके नष्ट होने की संभावना अधिक रहेगी. सित्ती की सलाह को मानते हुए उसने चांदी से मकबरा बनवाने का ख्याल छोड़ दिया था. उसने सफेद संगमरमर से मकबरे का निर्माण कराया.
ताज में नहीं है ऐसा काम
ASI आगरा के अधीक्षक पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि ये मकबरा ऐसा मकबरा है जिसे किसी बादशाह या शासक ने नहीं बल्कि एक बेटी ने अपने बाप की याद में बनवाया था. संगमरमर पर इनले वर्क जो इस स्मारक में देखने को मिलता है शायद वो ताज में भी नजर नहीं आता है. अगर इस छत के अंदरूनी पेंटिंग पर नज़र दौड़ाई जाए तो किसी ज्वेलरी बॉक्स से कम नज़र नहीं आता है.
ऐसे मिली थी एत्माद्दौला की उपाधि
मिर्जा ग्यास बेग अकबर के समय में मुगलों के दरबार में आए थे. अकबर ने उन्हें काबुल प्रांत का खजांची बनाया था. उन्हें एत्माद्दौला की उपाधि दी गई थी. जहांगीर के दरबार में वो वजीर रहे. उनकी मृत्यु 1622 में कांगड़ा में हुई थी. वहां से उनके शव को आगरा लाकर दफन किया गया था. उनकी उपाधि एत्माद्दौला के नाम पर ही उसके मकबरे को जाना जाता है. यह मकबरा वर्ष 1628 में बनकर तैयार हुआ था.
कोरोनाकाल में अन्य स्मारकों की तरह बेबी ताज यानी एत्माद्दौला में भी पर्यटकों की संख्या काफी सीमित है लेकिन जो भी पर्यटक इस स्मारक को देखने आए, वो इसकी खूबसूरती में खोते दिखे.
एत्माद्दौला मकबरा आगरा का पहला ऐसा स्मारक है जहां इंटरप्रिटेशन सेंटर बनाया गया है. मकबरे में घुसते ही दाईं तरफ एक रूम में आप मकबरे की स्थापत्य कला और उसके इतिहास के बारे में बहुत कुछ जान सकेंगे. अपने आप में ASI ने इस स्मारक के प्रमोशन के लिए बेहतरीन कदम उठाया है.
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