नई दिल्ली, एबीपी गंगा। 20 मार्च, 2020 को निर्भया के दरिंदों को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया और इसी के साथ 7 सात बाद निर्भया को इंसाफ मिला। लेकिन क्या आपको मालूम है 38 साल पहले भी तिहाड़ जेल में दो बलात्कारियों को फांसी के फंदे पर लटकाया जा चुका है। इन दो दरिंदों का नाम था रंगा और बिल्ला, जिनको निर्भया जैसे ही दुष्कर्म और हत्या के मामले में फांसी पर लटकाया गया था। निर्भया केस की तरह ही दशकों बीत जाने के बाद आज भी रंगा-बिल्ला का नाम सुनते है, वो जघन्य अपराध का खौफनाक मंजर नजर के सामने आ जाता है। जैसे निर्भया केस को कभी भुलाया नहीं जा सकता, वैसा ही रंगा-बिल्ला जैसे आतंक के पर्याय दरिंदों को।
1978 में रंगा-बिल्ला ने किया था भाई-बहन का अपहरण
ये जघन्य अपराध हुआ था साल 1978 में, जब फिरौती के लिए रंगा और बिल्ला ने बहन-भाई का अपहरण कर लिया गया था। अपहरण की ये घटना राजधानी दिल्ली के बीचोंबीच दिनदहाड़े हुए थी। अपराधियों ने लिफ्ट देने के बहाने दोनों भाई-बहनों को अगवा कर लिया था। लेकिन जब अपराधी रंगा-बिल्ला को ये मालूम चला कि जिन भाई-बहन (गीता और संजय चौपड़ा) को उन्होंने अगवा किया था, वो एक नौसेना अधिकारी के बच्चे हैं। तो वो दोनों दहशत में आ गए। जिसके बाद वो दोनों को यातना देने लगे और फिर उनकी हत्या कर दी। हत्या से पहले दोनों दरिंदों ने गीता के साथ बलात्कार भी किया था।
दोनों को यातना देने के बाद कर दी थी हत्या
इस जघन्य अपराध के लिए कुलजीत सिंह उर्फ रंगा खुश और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला को मौत की सजा सुनाई गई। इस घटना के चार साल बाद दोनों को फांसी पर लटका दिया गया। रंगा और बिल्ला को फांसी पर लटकाने के लिए तिहाड़ प्रशासन ने फरीदकोट और मेरठ जेलों दो जल्लादों को बुलाया, जिनके नाम थे जल्लाद फकीरा और कालू। इसकी जानकारी तिहाड़ जेल के पूर्व कानून अधिकारी सुनील गुप्ता और पत्रकार सुनेत्रा चौधरी की लिखी किताब 'ब्लैक वारंट' में दी गई है।
फांसी देने से पहले रंगा-बिल्ला से ये पूछा गया था
फांसी देने से पहले रंगा बिल्ला दोनों को चाय पीने को दी गई थी। साथ ही, ये भी पूछा गया था कि क्या वो अपनी कोई वसीयत पीछे छोड़कर जाना चाहते हैं। इसपर उन्होंने मना कर दिया। 31 जनवरी, 1982 को उनका चेहरा ढका गया और गले में फंदा डाल दिया गया, जल्लाद ने दोनों को फांसी के फंदे पर लटका दिया। इसकी भी जानकारी 'ब्लैक वारंट' किताब में दी गई है।
फांसी देने के दो घंटे बाद तक भी चलती रही थी रंगा की नब्ज
किताब के मुताबिक, फांसी पर लटकने से पहले रंगा ने बोला था 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल', जबकि बिल्ला रो पड़ा था। किताब में ये भी बताया गया है कि जल्लाद ने जब फांसी के लिए लीवर खींचा, उसके करीब दो घंटे बाद दोनों के शवों की डॉक्टरों ने जांच की। इसपर डॉक्टर ने पाया कि रंगा की नब्ज चल रही थी। किताब के मुताबिक, इसके बाद गार्ड को उस कुएं में भेजा गया, जिसपर रंगा का शव लटक रहा था। गार्ड ने रंगा के पैर खींचकर उसे नीचे उतारा।
20 मार्च 2020 को निर्भया के चारों दोषियों को दी गई फांसी
गौरतलब है कि 20 मार्च 2020 दिन शुक्रवार सुबह साढ़े पांच बजे निर्भया के चारों दोषियों को फांसी दी गई थी। सात साल बाद निर्भया को मिले इंसाफ से हर कोई खुश है। दोषियों को फांसी देने वाले जल्लाद पवन ने भी कहा कि वो भी कभी इस ऐतिहासिक फांसी को नहीं भूलेंगे। उन्होंने कहा कि दोषियों को फांसी देकर मैंने अपना धर्म निभाया। हमारा ये पुश्तैनी काम है। मरने से पहले उन दरिंदों को पश्चाताप होना चाहिए था, लेकिन वो नहीं थे।
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