(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Kanpur: सतीश महाना से पहले ये दिग्गज संभाल चुके हैं विधानसभा अध्यक्ष का पद, देखें पूरी लिस्ट
Kanpur: कानपुर से लगातार आठ बार विधायक चुने गए सतीश महाना निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष बन चुके हैं.
Kanpur: कानपुर से लगातार आठ बार विधायक चुने गए सतीश महाना निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष बन चुके हैं. सतीश महाना के विधानसभा अध्यक्ष बनने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने गर्मजोशी से स्वागत किया. लेकिन यूपी में कानपुर ऐसा जनपद है जिसने महाना सहित अबतक दो विधानसभा अध्यक्ष और तीन विधान परिषद के सभापति दिए हैं.
मुलायम सिंह के पहले कार्यकाल में हरीकिशन श्रीवास्तव अध्यक्ष रहे
मुलायम सिंह यादव सरकार के पहले कार्यकाल में बाबू हरीकिशन श्रीवास्तव विधानसभा अध्यक्ष रहे. उस वक्त उनपर आसन की गरिमा को तार-तार करने के आरोप लगे थे. दरअसल किसी बात पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की तरफ लपके विधायकों को देखते ही बाबू हरीकिशन क्रोध में खौल गए और ललकारते हुए बोले मारो कांग्रेसियों को. यह सुनते ही पूरा सदन सन्न रह गया. यह बात 1990 के आसपास की है.
हरीकिशन श्रीवास्तव निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने गए थे
तब की चौबेपुर सीट से जनता दल के टिकट पर हरीकिशन श्रीवास्तव चुने गए थे. मुलायम सिंह यादव सरकार के पहले कार्यकाल में वह निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने गए थे. उस दौरान सीसामऊ (सु) से जनता दल विधायक शिवकुमार बेरिया की माने तो उन्हें सिर्फ इतना याद है कि कांग्रेस और भाजपा के विधायक नारेबाजी करते हुए सदन के वेल तक जा पहुंचे. कुछ सदस्य मुख्यमंत्री की ओर लपके ही थे कि विधानसभा अध्यक्ष आसन से हरीकिशन श्रीवास्तव ने ललकारा मारो.
जनता दल के विधायक भूधर नारायण मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस के रामअवतार दीक्षित और उनके साथियों ने जमकर हो-हल्ला किया था. सदन कूप की तरफ जा रहे वीरेंद्रनाथ दीक्षित को टंगड़ी मार दी. उधर कुछ विधायक मुख्यमंत्री की तरफ बढ़े तभी हरीकिशन ने ललकारा. पर क्या कहा यह याद नहीं आ रहा है. हां उनके बयान की काफी निंदा की गयी थी. उन पर सदन की गरिमा और पंरपरा खंडित करने का आरोप लगाया गया.
वीरेंद्र स्वरूप, वीरेंद्र बहादुर, सुखराम सिंह रह चुके हैं विधानपरिषद सभापति
इसी तरह कानपुर से तीन लोग विधान परिषद सभापति रह चुके हैं. डॉ वीरेंद्र स्वरूप, वीरेंद्र बहादुर चंदेल और सुखराम सिंह यादव. डॉ वीरेंद्र स्वरूप और चंदेल कांग्रेस के थे और दो-दो टर्म पूरा किया जबकि सुखराम सिंह ने एक कार्यकाल पूरा किया. मायावती सरकार के समय उन्होंने विवादित विधेयकों को पारित होने से रोक दिया था.
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