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BHU में आंदोलनों के आगे सत्ता को भी झुकने पर होना पड़ा था मजबूर, जानिए कब-कब हुए विरोध प्रदर्शन?

BHU Students Protest: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है. छात्रों के विरोध की वजह से केंद्र सरकार तक को भी झुकना पड़ा था. जानिए कैंपस में कब-कब हुए आंदोलन?

Varanasi News: काशी हिंदू विश्वविद्यालय को सर्व विद्या की राजधानी कहा जाता है. सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर भी हिंदू विश्वविद्यालय हमेशा से केंद्र में रहा है. यूनिवर्सिटी में छात्रों के विरोध प्रदर्शनों से सत्ता तक की नींव हिला दी है. वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय आईआईटी की छात्रा से छेड़छाड़ का विरोध और विभाजन के खिलाफ भी छात्रों का आक्रोश देखा जा रहा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान संकाय के डॉ. कौशल किशोर मिश्रा डीन रहे हैं. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए हुए अनेक प्रदर्शनों ने सत्ता तक को सीधी चुनौती दी है. उन्होंने बताया कि मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी थी.

छात्रों के आंदोलन का गवाह रहा है BHU

बीएचयू में भारत की सांस्कृतिक विरासत की भी झलक देखने को मिलती है. 1965 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री मोहम्मद करीम ने संसद में एक विधेयक पेश किया था. विधियेक में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू शब्द हटाने का प्रस्ताव था. तर्क था कि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान में हिंदू शब्द सांप्रदायिकता को दर्शाता है. हिंदू शब्द हटाने के विरोध में छात्र काफी उग्र हो गए. उन्होंने प्रदर्शन कर विधेयक को वापस लेने की मांग की. उस समय प्रदर्शन का नेतृत्व परिसर में छात्र संघ के अध्यक्ष रामबचन पांडे ने किया था.

सत्ता तक पहुंची है विरोध प्रदर्शन की गूंज

प्रदर्शन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय जन संघ शामिल हुए थे. इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेई ने भी प्रस्ताव का विरोध किया था. डॉ कौशल ने बताया कि 60 के दशक में अंग्रेजी भाषा का सार्वजनिक प्रयोग बंद करने का देश भर में आंदोलन चल रहा था. आंदोलन के पुरोधा डॉक्टर राम मनोहर लोहिया थे. मुद्दे पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी बड़ा प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन महीने भर तक परिसर में चला. विश्वविद्यालय में प्रदर्शन का नेतृत्व देवव्रत मजूमदार कर रहे थे.

आंदोलन का लंबे समय से रहा है नाता

डॉ कौशल ने बताया कि 1989 में मंडल आयोग और आरक्षण के खिलाफ देश भर में छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा था. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी छात्र काफी आक्रोशित थे. कई दिनों तक छात्रों ने परिसर सहित बनारस में बड़ा प्रदर्शन किया था. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रदर्शन के दौरान चार छात्रों की मौत भी हुई थी. प्रदर्शन का नेतृत्व अध्यापक संघ के अध्यक्ष हरिकेश सिंह कर रहे थे. उन्होंने बताया कि 1991 में राम जन्मभूमि आंदोलन चरम पर था.

आंदोलन के समर्थन में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सहित अन्य छात्र संगठन भी कूद गए. छात्रों ने राम मंदिर निर्माण के लिए आवाज बुलंद की. तत्कालीन सरकार ने आदेश जारी कर छात्र संघ के चुनाव को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बैन कर दिया था. 2011 में छात्र नेता काफी नाराज हुए थे. छात्र संघ बहाल करने के उद्देश्य से महीना भर काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में विरोध प्रदर्शन चला. प्रदर्शन की गूंज केंद्र सरकार तक भी पहुंची थी.

2017 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला कॉलेज की छात्रा से हुई छेड़खानी के बाद पूरा परिसर आक्रोशित था. छात्रों ने चीफ प्रॉक्टर के साथ-साथ कुलपति पर भी नाराजगी जताई थी. छात्रों की मांग थी कुलपति सामने आकर छात्राओं की सुरक्षा और अन्य मुद्दों पर स्पष्टीकरण दें. इस दौरान परिसर में काफी उग्र प्रदर्शन भी हुए थे. मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि कुलपति को पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

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