अलीगढ़, एबीपी गंगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की सियासत में हाथी और साइकिल की दोस्ती के किस्से खूब मशहूर हुए। दशकों पुरानी दुश्मनी भुलाकर बुआ और बबुआ करीब आए थे। सपा-बसपा की दोस्ती को आरएलडी का भई साथ मिला। लगा कि यूपी में विपक्षी मजबूत हुए हैं और बीजेपी को कड़ी टक्कर देंगे। लेकिन इस बार जनता के मत से साफ कर दिया है कि यूपी में बड़ा राजनीतिक बदलाव आया है और जातिगत सियासत के दिन लद चुके हैं। गठबंधन में शामिल तीनों दल अपने कैडर वोट भी एकजुट नहीं कर पाए।
आसान नहीं थी राह
चुनाव के दौरान गठबंधन में शामिल दलों ने मजबूती के तमाम दावे किए, मगर ये तो शुरुआत में ही दिख गया था कि राह आसान नहीं है। सपा-बसपा के बीच तालमेल किस मुकाम पर पहुंचेगा, इसे लेकर सियासी पंडित भी आशंकित थे। गठबंधन मजबूत तो दिखा लेकिन लेकिन सिर्फ जतीगत आकड़ों के आधार पर, अब जब जाति की दीवारें ही टूट गईं तो गठबंधन का ध्वस्त होना तो तय ही था।
बीजेपी ने लगाई सेंध
बीजेपी नेताओं ने यूपी में खूब मेहनत की और जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे। बीजेपी को उन इलाकों से भी वोट मिले हैं जहां से उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। विपक्षी दल के नेताओं ने खुद इस बात पर हैरानी जताई कि उनका वोट बीजेपी को कैसे जा रहा है? दलित बस्तियों, यादव व मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी बीजेपी को वोट मिले हैं। यही सपा-बसपा के लिए सबसे चिंता की बात है। अब तो यह भी कहा जा रहा है कि सपा-बसपा को गठबंधन का लाभ मिला, मगर रालोद का वोट बैंक ट्रांसफर नहीं हो पाया।