उत्तर प्रदेश के लिए साल 2022 राजनीतिक नजरिए से ऐतिहासिक रहा है. साल के शुरुआत में ही राज्य में 30 साल बाद कोई पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की. इन नतीजों से ऐसा लग रहा था कि यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में दौड़ रहा बीजेपी का रथ अब कोई रोक नहीं पाएगा. 


ये अंदाजा सही भी साबित हो रहा था. बीजेपी ने आजमगढ़ से लेकर रामपुर तक के लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज कर ली. इसके बाद तो लगने लगा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी लोकसभा की सभी 80 सीटें जीतने में कामयाब हो जाएगी.


बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के दायरे में अब समाजवादी पार्टी के वोटर भी आ चुके हैं. पार्टी ने यादवों और मुसलमानों की पसमांदा बिरादरी पर पूरा ध्यान लगा रखा है.


लेकिन साल के आखिरी महीने दिसंबर में हुए तीन उपचुनाव में एक बार समीकरण कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. इनमें खतौली, रामपुर के विधानसभा उपचुनाव और मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट का उपचुनाव था.


रामपुर की सदर सीट आजम खान का गढ़ है जहां पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. इस सीट पर बीजेपी की जीत को समाजवादी पार्टी यह कहकर खारिज कर रही है कि वहां पर उसके वोटरों को वोट नहीं डालने दिया गया है. हालांकि बीजेपी का कहना है कि रामपुर में उसके पक्ष में मुसलमानों का वोट भी मिला है, खासकर पसमांदाओं का. 


बात करें मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव की अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने यहां ढाई लाख के ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है. इस सीट पर बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी. मैनपुरी में यादवों के बाद सबसे ज्यादा शाक्य वोटर हैं. बीजेपी ने यहां से रघुराज सिंह शाक्य को टिकट दिया था जो शिवपाल यादव के करीबी थे. 


लेकिन शिवपाल यादव के डिंपल के पक्ष में खुलकर आ जाने बीजेपी की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई. यहां तक कि रघुराज सिंह शाक्य अपना ही बूथ नहीं जीत पाए. डिंपल यादव को मिली इस बड़ी जीत से सैफई परिवार में यह साफ हो गया है कि मुलायम सिंह यादव के असली उत्तराधिकारी अखिलेश यादव हैं. दूसरा मैनपुरी की आसपास सीटें जिसे यादव बेल्ट कहा जाता है, वहां पर सपा के परंपरागत वोटरों को भी सीधा संदेश चला गया है कि यादवों के नेता अखिलेश ही हैं.


रामपुर और मैनपुरी के चुनाव नतीजों से इतर सबसे खास मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट का उपचुनाव है. जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने जिस जातीय समीकरण का इस्तेमाल करके जीत दर्ज की है वो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है. 


राष्ट्रीय लोकदल ने यह चुनाव सपा के साथ गठबंधन करके लड़ा था. इसके साथ ही पश्चिमी यूपी में दलितों के नेता के तौर पर उभर रहे चंद्रशेखर रावण को भी मंच पर लाया गया. खतौली सीट पर जाट, गुर्जर, सैनी और मुसलमानों का वोट सबसे ज्यादा हैं. बीजेपी ने इस सीट पर विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को उतारा था. मुजफ्फरपुर दंगा मामले में विक्रम सैनी को सजा हुई थी जिसकी वजह से उनकी विधानसभा सदस्यता भी चली गई.


आरएलडी ने इस सीट पर गुर्जर समुदाय से आने वाले मदन भैया को टिकट दिया था. इस सीट पर बीएसपी ने किसी प्रत्याशी को नहीं उतारा. माना जा रहा था बीएसपी का वोटबैंक बीजेपी में जा सकता है. आरएलडी ने इसके लिए चंद्रशेखर रावण को ले लिया. जाट चेहरे के तौर पर जयंत ने प्रचार की कमान संभाली.


कुल मिलाकर खतौली में बीजेपी को इस बार किसी भी तरह के समीकरण को साधने का मौका नहीं मिला. वहीं आरएलडीए के पक्ष में सारे समीकरण बनते चले गए. जाट नेता के तौर पर जयंत, गुर्जर प्रत्याशी मदन भैया, दलित नेता चंद्रशेखर राव आरएलडी के मंच पर थे तो मुसलमानों का भी समर्थन मिला.


इस समीकरण से मिली जीत ने सपा-आरएलडी गठबंधन को जीत का नया फॉर्मूला दिया है. अखिलेश-जयंत की जोड़ी पश्चिमी यूपी की सीटों पर इस फॉर्मूले को निश्चित तौर पर आजमाने जा रही है.


बात करें मायावती की पार्टी बीएसपी की तो साल 2022 अच्छा साबित नहीं हुआ है. न 'दलित-ब्राह्मण' सोशल इंजीनियरिंग का पुराना फामूर्ला चला और न ही 'दलित-मुस्लिम' गठजोड़ के दावे हकीकत में तब्दील हुए. बीएसपी की सीटें तो घटीं ही उसके वोटबैंक में गिरावट दर्ज की गई है. बीएसपी को जबरदस्त नुकसान के पीछे एक दशक से सत्ता से बाहर रहने और मायावती की निष्क्रियता भी है.


वहीं दिल्ली में सरकार बनाने की जुगत में लगी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में इस साल भी कुछ भी नहीं मिला है. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो विधायक ही बन पाए हैं. यूपी में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है.कांग्रेस की ओर से सिर्फ अराधना मिश्रा 'मोना' रामपुर खास से और महराजगंज के फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी को ही जीत मिल सकी है. जबकि कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान प्रियंका गांधी वाड्रा ने संभाल रखी थी. 


हैरान करने की वाली बात ये है कि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस से कहीं ज्यादा सीटें यूपी के कुछ हिस्सों में प्रभावी आरएलडी और निषाद पार्टी ने जीती हैं. विधानसभा चुनाव में आरएलडी को 8 तो निषाद पार्टी को 6 सीटें मिली हैं.