लखनऊ: महाराजा सुहेलदेव की जयंती को विशिष्ट आयोजन बनाकर बीजेपी ओमप्रकाश राजभर के किले को भेदने के फिराक में लगी है. पूरे प्रदेश में जयंती को भव्य तरीके से मनाए जाने के पीछे पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कवायद हो रही है. बीजेपी राजभर के वोट बैंक को अपने पाले में लाने का प्रयास लगातार कर रही है.


कई सीटों पर है प्रभाव
एक अनुमान के अनुसार पूर्वांचल की दो दर्जन लोकसभा सीटों पर राजभर वोट 50 हजार से ढाई लाख तक हैं. घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही जैसे जिलों में राजभर काफी प्रभावी हैं और निषाद समुदाय की तरह कई सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं. इसी को देखते हुए बीजेपी इस वोट बैंक को अपनी तरफ लाने के प्रयास में लगातार लगी हुई है.


राजभर और पिछड़ों में है मजबूत पैठ 
पूर्वांचल में राजभर और पिछड़ों में मजबूत पैठ रखने वाले ओमप्रकाश राजभर असदुद्दीन ओवैसी के अलावा आठ छोटे दलों के साथ गठबंधन कर बीजेपी के वोटों की गणित बिगाड़ सकते हैं. इसको देखते हुए अब बीजेपी ने महाराजा सुहेलदेव के बहाने पूर्वांचल में राजभर वोटों को साधने की कवायद शुरू कर दी है.


बीजेपी ने अनिल राजभर को मोर्चे पर लगाया
ओमप्रकाश राजभर से दूरी के बाद यूपी की सत्ता पर काबिज बीजेपी ने राजभर वोटों को साधने के लिए अनिल राजभर को मोर्चे पर लगाया है. उन्हें राजभरों के नेता के तौर पर प्रॉजेक्ट किया जा रहा है. हलांकि, अभी अनिल राजभर की जगह लेने में उस प्रकार से कामयाब नहीं हुए है.


2022 के विधानसभा चुनाव पर है नजर
1981 में कांशीराम के साथ राजनीति की शुरुआत करने वाले ओमप्रकाश राजभर ने 2001 में बीएसपी नेता मायावती से विवाद के बाद पार्टी छोड़कर अपनी पार्टी का गठन किया. उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 2004 से यूपी और बिहार में कई जगह चुनाव लड़ रही है, लेकिन 2017 से पहले उसके उम्मीदवारों की भूमिका खेल बिगाड़ने वालों के तौर पर ही रही, जीतने वालों के रूप में नहीं. 2017 में विधानसभा में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे, खासकर पूर्वांचल में, इस समुदाय और इस पार्टी की अहम भूमिका थी. ओमप्रकाश बीजेपी से अलग होने के बाद लगातार छोटे दलों से समझौता करके 2022 में सत्ता पर काबिज होंने के प्रयास में लगे हैं. पंचायत चुनाव के लिए भी छोटे दलों का मोर्चा बनाकर बीजेपी को चुनौती देने का एलान किया है.


पंचायत चुनाव को सेमीफाइनल मान रही है बीजेपी
बीजेपी भी 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को सेमीफाइनल मान रही है. इसलिए पार्टी पूरी ताकत से चुनाव की तैयारियों में जुटी है. बीजेपी आरक्षित वर्ग के वोटरों पर अपनी पैठ बना रही है. पंचायत चुनाव का आरक्षण भी उन सभी सीट को किया गया है, जो पहले कभी आरक्षित नहीं रही हैं. राजभर समाज के वोटों को लेकर बीजेपी अधिक सक्रिय नजर आ रही है.


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि, "2014 चुनाव के बाद से राजभर वोट पर बीजेपी की निगाह है. पूर्वांचल के जिलों में इस बिरादरी का ठीक-ठाक वोटबैंक हैं. यही कारण है कि अमित शाह खुद बहराइच गए थे और सुहेलदेव की मूर्ति का अनावरण किया था. स्मारक बनाने की घोषणा भी की थी. आरएसएस भी सुहेलदेव को स्थापित करने में काफी दिनों से लगी है. बीजेपी और आरएसएस के प्रयास के बावजूद भी उन्हें वो सफलता नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी. क्योंकि, ओमप्रकाश राजभर नेता के रूप में स्थापित थे. यही कारण था कि बीजेपी को 2017 के चुनाव में उनसे तालमेल करना पड़ा था. अब ओपी राजभर बीजेपी में नहीं हैं. इसीलिए, बीजेपी अनिल राजभर को लाई है. अनिल अपने को राजभरों का नेता स्थापित करने में सफल नहीं हुए हैं. ऐसे में अब बीजेपी अपने ऊपर यकीन करते हुए ओपी राजभर के किले को भेदने के लिए अलग-अलग कार्यक्रम तैयार कर रही है. सुहेलदेव की राजभर समाज में बड़ी मान्यता है. बीजेपी सोचती है कि सुहलेदेव के बहाने अगर कुछ राजभर समाज के वोट मिल जाएं तो 2022 में सफलता मिलेगी. बीजेपी के सामने ओमप्रकाश राजभर के स्थायित्व को तोड़ने की बड़ी चुनौती है.''


बहकावे में नहीं आएगा राजभर समाज
ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि, "बीजेपी झूठी पार्टी है. इनके बहकावे में राजभर समाज कभी नहीं आएगा. 18 प्रतिशत वोट लेने के लिए बीजेपी परेशान है. चाहे जो काम करे यो गुमराह करके वोट नहीं ले पाएंगे. 2022 में सब पता चल जाएगा."


नहीं बचा है ओपी राजभर का वजूद
सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि, "पूर्व की सरकारों ने महराजा सुहेलदेव की अनदेखी की है. उन्होंने कहा कि ओमप्रकाश राजभर की दुकान बंद हो गई है. इन्हें राजभर समाज अपनी बस्ती में घुसने नहीं देगा. 2019 और उपचुनाव में ओपी राजभर ज्यादा बढ़-बढ़कर बोल रहे है. इनका कोई वजूद नहीं बचा है."


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