लखनऊ. यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनावों को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था. बीजेपी ने पंचायत चुनावों के लिए अभूतपूर्व तैयारी भी की थी. पहली बार 3050 जिला पंचायत की सीटों पर अपने उम्मीदवार भी उतारे थे, लेकिन नतीजे चौंकाने वाले आए. सत्ताधारी पार्टी बीजेपी सीधे तीसरे नंबर पर चली गई. पंचायत चुनाव में हार की समीक्षा हुई, कई बैठकें भी की गई. हालांकि अब पार्टी की निगाहें इन चुनाव में मिली हार को भुलाने पर है. 


दरअसल, पार्टी का सारा फोकस इसी महीने होने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव पर हैं. बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत 75 जिलों के जिला पंचायत अध्यक्ष और 826 ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में झोंक दी हैं. विधायक से लेकर मंत्री और सांसदों को जिला पंचायत की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का काम दिया गया है. इस खास रिपोर्ट में आपको बताएंगे कि कैसे बीजेपी ने इस चुनाव को जीतने की रणनीति तैयार की है.


बीएल संतोष ने कसे पेंच
पंचायत चुनाव के नतीजों से बीजेपी को जैसी उम्मीद थी, वैसा हुआ नहीं. बीजेपी निर्दलीयों से भी पिछड़ गई. विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की पंचायत चुनाव में यह हालत होगी, शायद संगठन ने भी ऐसा नहीं सोचा था. इसलिए इन नतीजों के बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव संगठन बीएल संतोष को लखनऊ आना पड़ा. बीएल संतोष ने लखनऊ में संगठन के पदाधिकारियों से लेकर सरकार के मंत्रियों तक से इन चुनाव में मिली हार की वजह पूछी. उन्होंने पूरा रिपोर्ट कार्ड तैयार किया और संगठन से लेकर सरकार के मंत्रियों तक के पेंच कसे. सभी नेताओं को जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का काम भी दिया. बीएल संतोष ने साफ शब्दों में कहा कि अब जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में कोई कोर कसर नहीं रहनी चाहिए.


बीएल संतोष कि इन बैठकों का असर भी हुआ. उनके जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष से लेकर महामंत्री संगठन सभी प्रदेश के अलग-अलग जिलों में दौरा करते नजर आए. इतना ही नहीं प्रभारी मंत्री भी अपने प्रभार वाले जिलों में विधायकों, पदाधिकारियों के साथ जिला पंचायत चुनाव की रणनीति बनाते दिखे. दरअसल, जो बैठक लखनऊ में हुई थी उसमें यह साफ तौर पर कहा गया कि जो जिले के प्रभारी मंत्री हैं. यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह वहां के स्थानीय विधायक और सांसदों के साथ मिलकर इस जिला पंचायत चुनाव में जीत की रणनीति तय करें. 


बैठकों में पंचायत चुनाव में हार की एक बड़ी वजह यह भी निकलकर सामने आई कि कोरोना काल में पार्टी के तमाम नेताओं की इलाज के अभाव में मौत हो गई. ऐसे में कहीं ना कहीं पार्टी के अपने लोगों में ही रोष फैल गया. जिसके बाद यह तय किया गया कि पार्टी के मंत्री, विधायक या सांसद उन परिवारों में जाकर शोक संवेदना प्रकट करेंगे. आजकल उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह हर दिन अलग-अलग जिलों में जाते हैं और ऐसे परिवारों में जाकर शोक संवेदना व्यक्त करते हैं. वहीं दूसरी तरफ महामंत्री संगठन सुनील बंसल भी लगातार पंचायत चुनाव को लेकर बैठक कर रहे हैं.


12 जुलाई से पहले होंगे जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव
प्रदेश में 12 जुलाई से पहले 75 जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा. बीजेपी ने चुनाव में 75 में से 50 सीटें जीतने का प्लान बनाया है. कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं, जिससे पता चलेगा कि बीजेपी के लिए इन चुनावों को जीतना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. 


लखनऊ में जिला पंचायत के कुल 25 वार्ड हैं. इसमें बीजेपी के केवल तीन ही सदस्य जीते हैं. गोरखपुर में जिला पंचायत के 68 वार्ड हैं, जिसमें बीजेपी को 20 पर जीत मिली. मेरठ के 33 वार्डों में बीजेपी की झोली में 6 ही सीट आई. रायबरेली में कुल 52 वार्ड हैं, बीजेपी के खाते में 9 सीट ही आईं. अयोध्या में कुल 40 वार्ड हैं. बीजेपी को 6 पर ही जीत मिली. वाराणसी में कुल 40 वार्ड में से बीजेपी को सिर्फ सात पर जीत मिली. प्रयागराज में कुल 84 वार्ड हैं, बीजेपी को 15 पर जीत मिली. आजमगढ़ में कुल 84 में से बीजेपी को 10 पर जीत मिली. वहीं, आगरा में कुल 51 सीटें हैं जिनमें बीजेपी को 19 पर ही जीत मिली.


क्या है बीजेपी की रणनीति?
बीजेपी की रणनीति है कि जिन जगहों पर पार्टी के पर्याप्त सदस्य नहीं हैं. वहां पर निर्दलीयों या दूसरे दलों के सदस्यों को अपने पाले में जोड़ा जाए. इसका जिम्मा पार्टी ने उस क्षेत्र के प्रभावी व्यक्ति को सौंपा है, जिनमें कुछ सांसद, विधायक और एमएलसी हैं. जो धन और बल दोनों से मजबूत हैं. लखनऊ में बीजेपी ने जिला पंचायत अध्यक्ष रहे विजय बहादुर यादव की करीबी आरती रावत को पार्टी ज्वाइन करवाई. अब आरती रावत को ही जिला पंचायत अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाने की तैयारी है. इसी तरह बीजेपी ने कई और जिलों में रणनीति तैयार की है. 


बगावत बन सकती है मुश्किल
कई जगहों पर पार्टी के अपने ही लोग पार्टी से बगावत करते नजर आ रहे हैं जो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. उदाहरण के लिए मुजफ्फरनगर में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के चचेरे भाई ने भारतीय किसान यूनियन का दामन थाम लिया. इसी तरह से संत कबीर नगर में निर्दलीय चुनाव जीते बलिराम यादव ने भी सपा का दामन थाम लिया है जो बीजेपी के एक विधायक का बेहद करीबी है. ठीक इसी तरह बांदा से आने वाले पूर्व राज्य मंत्री शिव शंकर पटेल ने भी बीजेपी से जब बगावत की तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया अब उन्होंने भी समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली है. कई और जिले हैं जहां पर पार्टी को अपनों की ही बगावत का सामना करना पड़ रहा है.


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