लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव साल 2022 में होने हैं, लेकिन उससे पहले मार्च में पंचायत चुनाव और इन पंचायत चुनाव से भी पहले विधानपरिषद की 12 सीटों पर जनवरी में चुनाव होना है. इन चुनावों को लेकर चुनाव आयोग जल्द ही अधिसूचना जारी कर सकता है. विधानसभा में विधायकों की संख्या बल के लिहाज से बीजेपी आसानी से इन 12 में से दस सीटों पर जीत हासिल कर लेगी और अगर बीएसपी उसे सपोर्ट कर दे तो 11वीं सीट भी बीजेपी के कोटे में जा सकती है. विधानसभा चुनाव से पहले इतनी बड़ी संख्या में विधानपरिषद जाने के जब रास्ते खुले हैं तो पार्टी के पदाधिकारी, कार्यकर्ता सभी अपनी लॉबीग में जुट गए हैं.


30 जनवरी को खाली हो रही हैं सीटें


उत्तर प्रदेश विधानपरिषद की 12 सीटें 30 जनवरी को खाली हो रही हैं, इनमें से सात सीटें अभी सपा के पास हैं, तीन बीजेपी के पास और दो बीएसपी के पास. बीजेपी की जो तीन सीटें खाली हो रही हैं उनमें डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वत्तंत्र देव सिंह और पीएम की संसदीय क्षेत्र से आने वाले लक्ष्मण आर्चाय शामिल हैं.


विधानपरिषद की इन सीटों के चुनाव में विधायक वोट देंगे. एक सीट जीतने के लिए लगभग 30-31 वोटों की जरूरत पड़ेगी और इस लिहाज से बीजेपी आसानी से 10 सीटें जीत लेगी. यानि अभी उसके पास इसमें से तीन सीट महज हैं लेकिन अब सात सीटें और ज्यादा जीत सकती है. इसलिए पार्टी के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक उम्मीद संजोए बैठें हैं और अपनी लॉबीग में जुटे हैं. लखनऊ में बीजेपी मुख्यालय पर इन दिनों चहल पहल भी काफी बढ़ गयी है.


ये हो सकते हैं संभावित चेहरे


विधानपरिषद की इन सीटों के सहारे बीजेपी 2022 के वोटरों को भी साधने की कोशिश जरूर करेगी. ऐसे में उम्मीदवारों के नाम की घोषणा में जातीय समीकरण की झलक भी मिल सकती है. जैसा हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में देखने को मिली यानि बीजेपी की कोशिश रहेगी कि इन 12 सीटों में से दो ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो दलित, दो पिछड़ा और एक वैश्य समुदाय से आने वाले को उम्मीदवारों के साथ साथ दो महिलाओं को भी विधानपरिषद भेजकर जातीय संतुलन को साधा जाए. इस लिहाज से तीन सीटें जो बीजेपी के पास अभी है उनमें किसी बदलाव की गुंजाइश नहीं दिखती. यानि डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ब्राह्मण बिरादरी, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह पिछड़ा बिरादरी और शिड्यूल ट्राइब बिरादरी से आने वाले लक्ष्मण आचार्य का दोबारा विधानपरिषद जाना लगभग पक्का ही है. इसके अलावा बीजेपी इस बार तीन से चार प्रदेश पदाधिकारियों को भी एमएलसी चुनाव का टिकट दे सकती है. इनमें जिन नामों को सबसे ज्यादा चर्चा है उनमें क्षत्रिय बिरादरी से आने वाले जेपीएस राठौर और दयाशंकर सिंह, ब्राह्मण बिरादरी से आने वाले गोविंद नारायण शुक्ला, और बृज बहादुर इसके यादव बिरादरी से आने वाले सुभाष यदुवंश, जबकि वैश्य बिरादरी से आने वाले सलिल बिश्नोई और अनूप गुप्ता का भी नाम चर्चा में है. वहीं महिलाओं की अगर बात करें तो दलित समाज से आने वाली बाराबंकी की पूर्व सांसद प्रियंका रावत और बीजेपी के पूर्व महिला प्रदेश अध्यक्ष कमलावती सिंह का नाम भी चर्चा में हैं.


हालांकि, इस बार बीजेपी अपने क्षेत्रीय अध्यक्षों को भी विधानपरिषद भेजकर ये संदेश दे सकती है कि ग्राउंड पर काम करने वाले पदाधिकारियों का पार्टी सम्मान करती हैं इसिलिए ब्रज क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष और वैश्य बिरादरी से आने वाले रजनीकांत माहेश्वरी, कानपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्य़क्ष मानवेंद्र सिंह और गोरखपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष और पिछड़ी बिरादरी से आने वाले धर्मेंद सिंह के नाम की भी चर्चा जोरों पर हैं. यूपी की सियासत की नब्ज को करीब से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल भी साफ तौर पर मानते हैं कि बीजेपी जो भी उम्मीदवार तय करेगी उसमें 2022 के चुनाव को देखते हुए जातिगत, क्षेत्रगत प्रभाव दिख सकता है. साथ ही उनका ये भी कहना है कि ये 2022 के चुनाव के लिए एक तरह से रिफ्लेकशन होगा.


कमेटी तय करती है उम्मीदवार


वहीं बीजेपी नेताओं को कहना है कि उम्मीदवारों के नाम का ऐलान पार्टी की केंद्रीय समिति करती है. उम्मीदवारों के चयन के लिए बीजेपी की एक लंबी प्रतिक्रिया है. जिसमें एक कमेटी का गठन किया जाएगा और वो कमेटी ही उम्मीदवारों के नाम को फाइनल करके सारे नाम केंद्र को भेजेगी. इस कमेटी में वर्तमान अध्यक्ष के साथ साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को भी शामिल किया जाएगा और दोनों डिप्टी सीएम और मुख्यमंत्री भी कमेटी में शामिल रहते हैं.


अभी विधानपरिषद में बीजेपी के लगभग 25 सदस्य़ हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के लगभग 55 सदस्य हैं, वहीं बीजेपी अगर 10 सीटें जीतती हैं तो उसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 35 हो जाएगी. जबकि सपा के सदस्यों की संख्या सदन में घट कर 50 से कम रह जाएगी.


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