धर्मनगरी हरिद्वार की देश ही नहीं दुनिया में भी पहचान है। इस लोकसभा सीट में आने वाली हरकी पैड़ी, मां मंसा देवी, चंडी देवी, कलियर शरीफ दरगाह जैसी इबारत की जगह इसे खास बनाती है। आजादी के करीब दो दशक बाद अस्तित्व में आई हरिद्वार सीट पर 11 आम चुनाव और एक उपचुनाव हुए हैं। जिसमें पांच बार भाजपा और चार बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया। जबकि एक बार सपा ने भी यहां जीत का स्वाद चखा।


9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड गठन से पहले इस संसदीय क्षेत्र में हरिद्वार, रुड़की और लक्सर के अलावा सहारनपुर जिले की नागल और देवबंद विधानसभा सीटें आती थी। राज्य बनने के बाद अब इस लोकसभा सीट में हरिद्वार की 11 और देहरादून जिले की धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश विधानसभा सीटें आती है। यह सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एक तो इसका 80 प्रतिशत से भी ज्यादा वोटर मैदानी मूल का है, दूसरा इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक चुनाव लड़ रहे हैं। साथ ही मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विधानसभा सीट डोईवाला भी हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में आती है। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री के साथ ही मौजूदा मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा भी जुड़ गयी है।

इस सीट से जुड़ी खास बात यह भी रही है कि यहां मायावती और रामविलास पासवान जैसे दिग्गज नेता भी किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन दोनों को हार ही नसीब हुई। 1977 से अस्तित्व में आई ये सीट 2004 तक सुरक्षित थी। 2009 के चुनाव में ये सीट सामान्य हो गई।

किसे कब मिली जीत
1977 में भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के भगवानदास ने यहां से चुनाव जीता। 1980 में जेएनपी (एस) जगपाल सिंह सांसद बने तो 1984 में वोटरों ने कांग्रेस के सुंदरलाल को चुनकर लोकसभा भेजा। कांग्रेस के सुंदरलाल के निधन के कारण 1987 में उपचुनाव कराए गए। इस उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान मैदान में कूदे। हालांकि, जब नतीजे आए तो सब हैरान रह गए।

कांग्रेस के राम सिंह ने मायावती और पासवान को मात दे दी। मायावती दूसरे और पासवान तीसरे नंबर पर रहे। 1989 में कांग्रेस ने जगपाल सिंह को टिकट दिया और चुनाव जीते। 1991 में भाजपा के राम सिंह ने कांग्रेस से सीट छीन ली। इसके बाद 1996, 1998 और 1999 में लगातार तीन बार भाजपा की टिकट पर हरपाल सिंह ने चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बना दिया। 2004 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बाडी सांसद चुने गए। 2009 के चुनाव में हरिद्वार ने राजनीतिक अज्ञातवास काट रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत को संजीवनी दी और उन्हें यहां की जनता ने चुनाव जिता दिया, इसके बाद वह केंद्र में पहली बार मंत्री बने और फिर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बनाये गए। हालांकि, 2014 के चुनाव में उनकी पत्नी रेणुका रावत, मोदी लहर की सुनामी में बह गयी और जनता ने भाजपा के डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को चुना। इस बार भी निशंक भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।

निशंक और अंबरीश के बीच मुख्य मुकाबला
वैसे तो इस सीट पर कुल 15 उम्मीदवार चुनावी ताल ठोक रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक और कांग्रेस के उम्मीदवार अंबरीश कुमार से होगा। बसपा ने भी डॉ. अंतरिक्ष सैनी पर अपना दांव खेला है।

भौगोलिक स्वरूप
हरिद्वार पूर्ण रूप से मैदानी सीट है। यहां 60 फीसद मतदाता ग्रामीण हैं, जबकि 40 फीसद शहरी। इस चुनाव क्षेत्र देहरादून जनपद की तीन विधानसभा धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश शामिल हैं। देहरादून जनपद की धर्मपुर, डोईवाला, ऋषिकेश, और हरिद्वार जनपद की हरिद्वार शहर, ज्वालापुर, बीएचएल रानीपुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरानकलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीटें इससंसदीय क्षेत्र में शामिल है।

ये रहे सांसद

वर्ष सांसद राजनीतिक दल
1977 भगवानदास बीएलडी
1980 जयपाल जेएनपी(एस)
1984 सुंदरलाल कांग्रेस
1987 (उपचुनाव) राम सिंह कांग्रेस
1989 जगपाल सिंह कांग्रेस
1991 राम सिंह भाजपा
1996 हरपाल सिंह साथी भाजपा
1998 हरपाल सिंह साथी भाजपा
1999 हरपाल सिंह साथी भाजपा
2004 राजेंद्र कुमार सपा
2009 हरीश रावत कांग्रेस
2014 डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भाजपा

कुल मतदाता: 1803950
पुरुष: 966576
महिला: 837240
टीजी :134s

मुद्दे और समस्याएं
इस लोकसभा सीट में हरिद्वार जिले की नौ और देहरादून की ऋषिकेश, डोईवाला और देहरादून शहर की धरमपुर विधानसभा सीट आती है। हरिद्वार शहर, धर्मपुर और ऋषिकेश विधानसभा छोड़ दे तो अन्य 11 सीटों पर गन्ना किसान ही निर्णायक होते हैं। हकीकत यह है कि इसी बेल्ट में गन्ना किसानों का कई करोड़ रुपया चीनी मिलों पर बकाया है। किसान परेशान हैं और कई बार यहां पर आंदोलन भी हो चुके हैं, लेकिन उत्तराखंड सरकार इस मामले में खुद को साबित करने में कहीं चूक कर गयी है। इसके आलावा हरिद्वार और देहरादून के बीच निर्माणाधीन नेशनल हाईवे का फोर लेन बनने का काम पिछले कई सालों से अधूरा पड़ा है।
कांग्रेस कई बार इस मुद्दे पर सरकार को घेर चुकी है कि राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार होने के बावजूद यह काम अभी तक अधूरा है। दूसरी तरफ मुजफ्फरनगर और हरिद्वार के बीच बन रहे फोर लेन का काम हरिद्वार के हिस्से में ही अधूरा पड़ा है। इसके आलावा यहां पर सबसे बड़ी समस्या बरसात के पानी की है।

चूंकि हरिद्वार के ऊपर की तरफ एक दम पहाड़ी क्षेत्र शुरू होता है और पहाड़ से बहकर आने वाली गंगा नदी हरिद्वार में आकर अपना फैलाव लेती है, ऐसे में गढ़वाल के बड़े हिस्से से बारिश का सारा पानी सीधे आकर हरिद्वार में गिरता है। इससे हरिद्वार शहर और लक्सर तहसील का गंगा की तरफ वाला सारा क्षेत्र जलमग्न होता है।