लखनऊ, एबीपी गंगा। उत्तर प्रदेश की 80 संसदीय सीटों के परिणाम स्पष्ट हो चुके हैं। प्रदेश में 'प्रचंड मोदी लहर' ने सारे राजनीतिक समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं। विजय रथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की है। बसपा को 10 सीटों पर जीत मिली है वहीं सपा के खाते में सिर्फ पांच सीटें आई हैं। 2 सीटें बीजेपी की सहयोगी अपना दल को मिली हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि प्रदेश की 17 सीटें अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों के लिए सुरक्षित हैं इनमें से 13 सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। महज दो सीटें बसपा के हिस्से आई हैं और एक सीट पर अपना दल (सोनेलाल) के उम्मीदवार जीते हैं। इन नतीजों से अब यह साफ हो गया है कि यूपी में जातिगत समीकरण ध्वस्त हो गए हैं और दलितों के बीच मायावती की चमक फीकी पड़ चुकी है।
बीजेपी का बोलबाला
उत्तर प्रदेश की 17 सुरक्षित सीटों में से 13 सीटें भारतीय जनता पार्टी की झोली में आई हैं। इनमें आगरा, बहराइच, बांसगांव, बाराबंकी, बुलंदशहर, एटा, हरदोई, हाथरस, जालौन, मछलीशहर, मिश्रिख, मोहनलालगंज और शाहजहांपुर हैं। रॉबर्ट्सगंज सीट अपना दल के हिस्से आई है। इसके अलावा महज दो सीटों नगीना और लालगंज में बसपा उम्मीदवार जीते हैं। यहां एक बात गौर करने वाली है कुछ सुरक्षित सीटों पर बीजेपी ने नए चेहरों को उतारा था जिन्हें जनता का भरपूर साथ मिला। चलिए आपको कुछ ऐसी ही सीटों के समीकरण बताते हैं।
हरदोई लोकसभा सीट
हरदोई लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। इस सीट पर बीजेपी के जय प्रकाश रावत, सपा की उषा वर्मा और कांग्रेस के वीरेंद्र वर्मा के बीच टक्कर थी। हालांकि 2014 में बीजेपी के अंशुल वर्मा ने बीएसपी के शिव प्रसाद वर्मा को करीब 81 हजार मतों से हराया था। 2019 में बीजेपी ने अंशुल वर्मा का टिकट काटकर उनकी जगह नरेश अग्रवाल के करीबी और पिछले लोकसभा चुनाव में मिश्रिख सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव हारने वाले पूर्व सांसद जय प्रकाश रावत पर दांव लगाया जो नतीजे आने बाद सही साबित हुआ है।
मिश्रिख लोकसभा सीट
मिश्रिख लोकसभा सीट भी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। इस सीट पर बीजेपी ने अशोक रावत, बीएसपी ने नीलू सत्यार्थी और कांग्रेस ने मंजर राही को चुनावी मैदान में उतारा था। मिश्रिख सीट से बीजेपी उम्मीदवार अशोक कुमार रावत ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी गठबंधन प्रत्याशी नीलू सत्यार्थी को 100672 मतों से हराया। गौरतलब है कि, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अंजू बाला ने बीएसपी के अशोक रावत को करीब 87 हजार मतों से मात देकर जीत हासिल की थी। यहां भी बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर बीएसपी से आए अशोक रावत पर भरोसा जताया।
शाहजहांपुर लोकसभा सीट
शाहजहांपुर लोकसभा सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर बीजेपी ने अरुण कुमार सागर, बीएसपी ने अमर चंद्र जौहर और कांग्रेस ने ब्रह्मस्वरूप सागर को अपना प्रत्याशी बनाया। शाहजहांपुर से बीजेपी के अरुण कुमार सागर ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी गठबंधन उम्मीदवार अमर चंद्र जौहर को 268418 वोटों से परास्त किया। गौरतलब है कि, 2014 में बीजेपी के कृष्णराज ने बीएसपी के उमेद सिंह कश्यप को 2 लाख 35 हजार मतों से मात देकर जीत दर्ज की थी। यहां भी बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट अरुण सागर पर दांव लगाया था।
इटावा लोकसभा सीट
इटावा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित है। यहां से बीजेपी ने राम शंकर कठेरिया, सपा से कमलेश कठेरिया और कांग्रेस ने अशोक कुमार दोहरे को प्रत्याशी बनाया। इटावा सीट पर रामशंकर कठेरिया ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी गठबंधन उम्मीदवार सपा के कमलेश कुमार को 64437 मतों से पराजित किया।
2014 में बीजेपी के अशोक दोहरे ने सपा के प्रेमदास कठेरिया को करीब पौने दो लाख मतों से मात देकर जीत हासिल की थी, लेकिन बीजेपी ने दोहरे का टिकट काटकर आगरा से सांसद रहे राम शंकर कठेरिया पर भरोसा जाताया। दिलचस्प बात ये है कि इटावा से बीजेपी ने जब भी जीत दर्ज की हो तो केंद्र में उसकी सरकार बनी है।
भविष्य पर नजर
अभी हमने आपको यूपी की कुछ सुरक्षित सीटों के बारे में बताया जहां बीजेपी का दांव पूरी तरह से सफल साबित हुआ। चलिए अब आपको उन चुनौतियों के बारे में भी बताते हैं जो 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में सबकुछ ठीक था, ऐसा नहीं का जा सकता है। इस बार के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के नाम पर भी बीजेपी की झोली में खूब वोट गए हैं। कई रौलियों में पीएम मोदी ने बिना किसी प्रत्याशी का नाम लिए अपने नाम पर वोट मांगा था। यूपी में जीत की हैट्रिक लगा चुकी बीजेपी के सामने अब किस तरह की चुनौतियां ये भी जान लीजिए।
अवैध खनन पर कैसे लगेगी रोक?
अवैध खनन अब तक की सभी सरकारों के लिए बड़ी समस्या रही है। सत्ता में कोई भी रहे लेकिन अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक कभी नहीं लगी। सबसे बड़ा कारण ये है कि जगह-जगह पर सत्ता के करीबी लोग ही अवैध खनन में लिप्त हैं। उन्हें कोई टोकने ही हिम्मत नहीं करता और प्रशासन की तरफ से भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। लोगों का तो ये भी कहना है कि एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स के जरिए सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जे खाली करने के दावे सिर्फ कागजी हैं। बड़े भू-माफिया और दबंगों का कहर बदस्तूर जारी है जिससे जनता परेशान है। अवैध खनन पर रोक सीएम योगी के लिए बड़ी चुनौती है और यदि वो ऐसा करने में कामयाब हो पाते हैं तो फल भी बेहतर ही मिलेगा।
बड़ी हैं स्थानीय समस्याएं
लोगों की सबसे बड़ी समस्या उनके आसपास की है। आम तौर एक शिकायत आम रहती कि ब्लॉक और तहसील में समस्याओं की सुनवाई नहीं होती है। समस्या के समाधान के लिए बार-बार दौड़ लगानी पड़ती है। इसके अलावा जिन योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए उनका लाभ भी नहीं मिल पाता है। स्थानीय समस्या का समाधान होगी सरकार के लिए आने वाले दिनों में रामबाण साबित हो सकता है और कौन जाने-यूपी में फिर यहीं नारा चल जाए एक बार, फिर योगी सरकार।
आवारा पशु हैं बड़ी समस्या
प्रदेश में आवारा पशुओं की समस्या सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। जगह-जगह किसानों को फसल बचाने के लिए घेराबंदी में हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं और पूरी रात जगकर उसकी रखवाली करनी पड़ रही है। चुनाव में जगह-जगह लोगों ने यह कहकर वोट दिया कि यह चुनाव मोदी का है, इसलिए वोट दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले आवारा पशुओं की समस्या का समाधान नहीं हुआ तो सत्तादल के विधायकों को गांवों में घुसने नहीं दिया जाएगा। हाल ही में एक दर्दनाक घटना भी सामने आई थी जिसमें एक किसान खेतों की रखवाली के लिए लोहे की बाड़ लगाकर उसमें करंट छोड़ देता था। इसी दौरान करंट की चपेट में आने से एक महिला की मौत हो गई थी।
पुलिस में जरूरी सुधार
यूपी में कानून-व्यवस्था बड़ा मसला है। भले ही सीएम योगी ने अपराधियों के खिलाफ अभियान चला रख हो लेकिन बदमाशों के हौसले अब भी बुलंद हैं। कई लोग तो अब भी यही कहते हैं कि कानून-व्यवस्था को लेकर भय कायम है और महिला सुरक्षा प्रदेश में सबसे बड़ा मुद्दा है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के मामलों में तो कमी आई है, लेकिन पुलिस जनता के साथ अब भी ठीक बर्ताव नहीं करती है। पुलिस और आम लोगों के बीच की खाई को पाटने की पहल सीएम योगी को ही करनी होगी जिससे जनता खुद को सुरक्षित महसूस करे।
कब होगी कार्रवाई
यूपी के लोगों का कहना है कि सरकार चुनाव आता है तभी बड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई करती है। दो साल बीत गए स्मारक से लेकर चीनी मिल बिक्री तक के मामले लंबित हैं, कोई कार्रवाई नहीं हुई। चुनाव आया तो चीनी मिल मामले में सीबीआई जांच की याद आ गई। इसी तरह प्रभावशाली नेताओं के तमाम मामले वर्षों से दबे हैं, उनपर कोई निर्णय नहीं होता। अब देखा जाएगा कि सरकार बड़े लोगों के लंबित मामलों को सियासी सौदे तक ही सीमित रखती है या फिर चुनाव आने पर ही याद करेगी। सरकार के लिए ये भी बड़ी चुनौती है जिससे निपटना आसान नहीं है।