बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से फिल्म इंडस्ट्री में आज ये मुकाम हासिल किया है। ऐसे में उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों के एक पुराने किस्से को याद किया कि किस तरह से एक एहसास ने दुआओं के प्रति उनके दृष्टिकोण को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया।





उन्होंने हाल ही में मीडिया से बात करते हुए बताया, "वो दिन मुझे आज भी याद है। उन दिनों मैं इतना सशक्त नहीं था। शहर में न मेरे पास कोई काम था और न ही दोस्त थे। खाने तक के लिए पैसे नहीं थे। उस वक्त मुझे ऐसा महसूस होता था जैसे कि सारे रास्ते बंद हो गए हैं। मैंने दुआ करने का सोचा। वुजू करते वक्त मैंने सोचा कि ये दुआ है क्या? क्या यह सौदेबाजी है, जहां मैं कहता हूं कि ईश्वर मुझे यह चीज दें और जब मैं कुछ बन जाऊंगा, तो मैं आपको फलाना चीज दूंगा? नहीं! दुआ मांगने की यह एक वजह कभी नहीं होनी चाहिए! उस दिन से आज तक मैंने अपनी दुआओं में ईश्वर से कुछ नहीं मांगा। दुआओं के प्रति मेरा रवैया हमेशा के लिए बदल गया।"





वह आगे कहते हैं, "मैं अपनी दुआओं में ईश्वर के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं। जिस वक्त मैं टूट गया था, मुझे एहसास हुआ कि काम मिलना ही इससे छुटकारा पाने का एकमात्र समाधान है और जो कोई भी मुझे काम देगा वह मेरे लिए ईश्वर जैसा होगा। मैंने उस वक्त खुद को मजबूत बनाकर रखा। मेरा मानना है कि दुआ करते वक्त ईश्वर से कुछ मांगना घृणित है।"