Bollywood में कोई भी फिल्म एक खलनायक के बिना अधूरी है। फिल्मों को कामयाब बनाने में जितना बड़ा हाथ फिल्म के हीरो का होता है उतना ही फिल्म के विलेन का भी होता है। वहीं हमारी हिंदी फिल्मों में जब किसी हीरो को हीरोइन से प्यार हो जाता है तब हीरो हीरोइन की जिंदगी में आग लगाने के लिए एंट्री होती है फिल्म की वैंप यानी खलनायिका की। ऐसी ही एक मशहूर वैंप जिन्होंने दशकों तक बॉलीवुड पर और दर्शकों के दिलों पर राज किया है। हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड की 'मोना डार्लिंग' यानि बिंदु (Bindu) की।



मशहूर एक्ट्रेस बिंदु ने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत साल 1962 में फिल्म 'अनपढ़' से की थी। उस वक्त बिंदु सिर्फ 11 साल की थीं। लेकिन धीरे-धीरे बिंदु को इंडस्ट्री में इस कदर कामयाबी मिली कि लोग उन्हें सचमुच की वैंप समझने लगे थे।



बिंदु ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें हमेशा से ही खलनायिका के किरदार मिले। उन्होंने कहा कि -"जब मैंने फिल्मों में शुरुआत की तब खलनायिका का दौर चल रहा था। हालांकि मैं एक हीरोइन बनना चाहती थी, लेकिन लोगों ने कहा कि-'मैं ठीक से हिंदी नहीं बोल सकती और बहुत पतली भी हूं, लंबी हूं। मेरी यही कमियां लोगों को बाद में पसंद आईं। जिसके बाद मुझे फिल्म 'दो रास्ते' में काम करने का मौका मिला और मैं बन गई विलेन।'' इसके बाद साल 1970 में आई फिल्म 'कटी पतंग' के गाने 'मेरा नाम है शबनम' से बिंदु रातों रात एक आइटम क्वीन के तौर पर मशहूर हो गईं।



80 और 90 के दशक तक आते-आते खलनायिकाओं के किरदार में काफी बदलाव आया। समय के साथ-साथ हीरोइन भी वैंप जितनी बोल्ड होने लगी। बिंदु ने अपने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि जब दर्शक फिल्म देखने के बाद उन्हें गालियां देते थे तो वो गालियों को खुद के लिए किसी अवॉर्ड की तरह समझती हैं। क्योंकि गालियों का मतलब था कि वो अपना काम ठीक से कर रही हैं। भले ही आज-कल बिंदु लाइमलाइट से दूर हैं लेकिन उनके द्वारा निभाए गए किरदारों को लोग आज भी याद रखते हैं।


यह भी पढ़ेंः


The Kapil Sharma Show में किया Sohail Khan ने खुलासा, अपने ही घर के बाहर पिट रहे थे तो भाई Salman Khan ने बचाया

Tv इंडस्ट्री के इन 4 स्टार्स ने कमाया खूब नाम लेकिन आज जी रहे हैं गुमनामी के अंधेरे में