जब जब हिंदी सिनेमा की भव्यता का ज़िक्र होता है। जब-जब हिंदी सिनेमा में बड़ी फिल्में बनाने के पैमाने पर बात होती है। उन फिल्मों का ज़िक्र होता है, जिन्होंने हिंदी सिनेमा की पहचान बदलकर रख दी, ना सिर्फ हिंदुस्तान में, बल्कि पूरी दुनिया में तो एक फिल्म का ज़िक्र ज़रूर होता है। वो फिल्म नहीं इतिहास है। वो मुगल-ए-आजम है। जब तक हिंदी सिनेमा रहेगा। तब तक मुगल ए आजम का ज़िक्र होता रहेगा।


 मीर ताज मोहम्म खान को मिला था ऑफर



बात 1956 की है, दिलीप कुमार का एक बचपन का दोस्त था, जिसका घर पेशावर में ही हुआ करता था साथ ही वो उनके पडोसी भी हुआ करता थे। नाम था मीर ताज मोहम्म। मीर ताज मोहम्मद बेहद खूबसूरत थे। मोहम्मद जी वकालत करते थे और उन्होंने आज़ादी की लडाई में भी हिस्सा लिया था, लेकिन जेल की सलाखें भी उनके दिल से हिंदोस्तान को आज़ाद कराने में हसरत कम नहीं कर पाईं। उसके बाद मीर ताज मोहम्मद दिल्ली में आकर बस गए। एक बार मीर ताज मोहम्मद दिलीप कुमार से मिलने के लिए बंबई में उनके घर पहुंच गए. उस वक्त मुंबई बंबई हुआ करती थी। दिलीप कुमार ने  उन्हें अपने बंबई वाले दोस्तो से मिलवाया जिसमें के आसिफ भी शामिल थे। उन्ही दिनों  के आसिफ अपनी फिल्म मुगल-ए आज़म की कास्टिंग कर रहे थे। जब के आसिफ मीर ताज मोहम्मद से मिले तो उनसे काफी प्रभावित हो गए और अपनी फिल्म मुगले आज़म में उन्हें राजा मान सिंह का रोल करने का ऑफर डे डाला।



मीर ताद मोहम्मद बडे खुले दिल के इंसान थे। उन्होने दो टूक में के आसिफ को कहा मुझे नौटंकी में काम करने का कोई शौक नहीं है। सिनेमा को नौटंकी कहे जाने वाली बात के आसिफ के दिल में तीर की तरह चुभ गई, लेकिन के आसिफ ने मीर ताज मोहम्मद को कुछ नहीं कहा और के आसिफ ने राजा मान सिंह का रोल अभिनेता मुराद को दे दिया। 1981 में मीर ताज मोहम्मद ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इत्तैफाक देखिए, सिनेमा को नौटंकी कहने वाले मीर ताज मोहम्मद के बेटे इसी नौटंकी के बदौलत पूरी दुनिया में शोहरत और नाम कमा रहे हैं। मीर ताज मोहम्मद के बेटे का नाम है। शाहरुख खान बॉलीवुड के किंग खान।

मुगले आज़म शानदार, बेमिसाल और लाजवाब



जब भी हिंदी सिनेमा का इतिहास याद किया जाता है। तब एक फिल्म का नाम ज़ुबा से निकलता है। उस फिल्म का नाम है मुगले आज़म शानदार, बेमिसाल और लाजवाब मुगल ए आज़म की जिनती भी तारीफ की जाएं उतनी ही कम है। तारीख गवाह है कि ऐसी फिल्म सौ साल में शायद एक ही बार बनती है। ये फिल्म मुगल सल्तनत के शहज़ादे सलीम और एक मामूली सी कनीज़ अनारकली की अधूरी मोहब्बत की दास्तां है। ये दो आशिक अपनी मोहब्बत की राह में आने वाली हर मुश्किल को पार कर एक ऐसे मुकाम पर पहुंच जाते है। जहां वो एक दूसरे की बाहों में दम तोडने के लिए भी तैयार रहते है, लेकिन इन दोनो की मोहब्बत के बीच खडी हो जाती मुगलो की आन बान और शान शहंशाह अकबर। मुगले आज़म में एक तरफ है मुगलो की हूकूमत और सख्त कानून और दूसरी तरफ सलीम और अनारकली का बेशूमार इश्क। इस फिल्म ने सलीम और अनारकली की मोहब्बत को पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया, लेकिन पर्दे पर जितनी शिद्दत इनकी मोहब्बत में दिखी है। उससे कहीं ज्यादा शिद्दत इस फिल्म को बनाने वाले डायरेक्टर में थी। जिन्होने अपनी आंखो में सजाए प्यार के इस अफसाने को सुनहरे पर्दे पर फिर से जिंदा करने की कमस खाई थी और वो महान हस्ती जिन्होने हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्म बनाने के बारे में सोचा वो थे। करीमुद्दीना आसिफ जिन्हें लोग के आसिफ के नाम से भी जानते है।

फिल्म की शुरुआत 1944 में हुई थी



मुगले आज़म की शुरूआत तो असल में 1944 में ही हो गई थी। के आसिफ ने चंद्र मोहन, सप्रू और नरगिस को कास्ट किया था, लेकिन उस वक्त मुगले आज़म को फायनेंस कर रहे शेहराज अली आज़ादी के बाद पाकिस्तान में जाकर बस गए थे। अभिनेता चंद्र मोहन की दिल का दौरा पड़ने की वजह से मौत हो गई थी। इन वजहों से मुगले आज़म की शूटिंग को बंद करवा दिया गया था, लेकिन के आसिफ के जूनून को बड़ी से बडी मुशकिल भी कुचल नहीं पाई। कुछ सालो  बाद एक बार फिर के आसिफ ने मुगल सलतनत की शान को बडे पर्दे पर उतारने का फैसला किया। वो इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए अपनी ज़िंदगी को भी दांव पर लगाने के लिए तैयार थे। के आसिफ के इस अफसाने को हकीकत में बदलने के लिए हिंदी सिनेमा के कुछ महान फनकारों ने एक साथ काम किया। बादशाह अकबर के किरदार में पृथ्वीराज कपूर नजर आए और उन्होने इतना शानदार अभिनय किया के मुगले आज़म के बाद जब भी अकबर की बात होती है। तो हमारे ज़हन में पृथ्वीराज कपूर ही आते हैं।

जब सलीम को मिली उनकी अनारकली 



शहज़ादे सलीम का किरदार निभाया हिंदी सिनेमा के ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार ने और उनके उम्दा अभिनय ने उन्हे इस सदी का महानायक का खिताब भी दिया। अब तलाश थी अनारकली की। उन दिनों दिलीप कुमार और मधुबाला की नजदीकियों के किस्सों से अखबार और मैगजीन भरे रहते थे। आखिरकार पर्दे के सलीम को उनकी अनारकली मिल गई। ये और कोई नहीं, ये थी खूबसूरती की मल्लिका खूबसूरत से भी खूबूसरत मधुबाला। जिन दिनों इस फिल्म की शूटिंग चल रही थी। उन दिनों मधुबाला की तबीतय थोड़ी खराब रहती थी, लेकिन पर्दे पर मधुबाला ने अपना दर्द किसी को महसूस नहीं होने दिया। मुगले आज़म को खास बनाने में सिर्फ इसके मुख्य किरदारों का हाथ ही नहीं था। बल्कि इस फिल्म के स्पोर्टिंग एक्टर ने भी कमाल का अभिनय किया। निगार सुलताना,दुर्गा खोटे, अजीत और कुमार ने अपने अभिनय से अपने किरदारों में जान डाल दी।

शीश महल बनाने के लिए बैल्जियम से मंगवाए गए शीशे



इस फिल्म की कहानी के अलावा इस के गाने भी यादगार है। वैस तो इस फिल्म के सारे गाने मशहूर हुए। लेकिन उन में से एक गाना ‘प्यार किया तो डरना क्या’ आज भी हमारे दिलो में ज़िदा है और हमेशा रहेगा। के आसिफ इस गाने को कुछ ऐसा बनाना चाहते थे। जिसे सुन कर जवान पीडी भी प्यार के लिए बगावत कर बैठे। इस गाने को खुबसूरती से दर्शाने के लिए के आसिफ एक शीश महल बनाना चाहते थे और इसी वजह से इस गाने के सेट को रंगो से भर दिया गया। चारों तरफ हज़ारो शीशे लगाए गए और जब उन पर रोशनी पड़ती थी तब वो तारों की तरह जगमगाने लगते थे, लेकिन सेट पूरा होने के बावजूद भी के आसिफ खुश नहीं थे। क्योकि उन शीशो में वो जादू नही दिख रहा था जो के आसिफ ने सोचा था और फिर इस शीश महल के सेट के लिए ख़ास बैल्जियम से शीशे मंगवाए गए. जिन्होने इस गाने की रोनक को सौ गुना बडा दिया।

दिलीप कुमार ने असल में जड़ा मधुबाला को थप्पड़



अनारकली और सलीम की मोहब्बत को अमर करने के लिए के आसिफ ने नौशाद के साथ मिलकर 20 गाने बनाए और उन में से बहुत गानों की शूटिंग भी हो गई थी, लेकिन फिल्म की लंबाई की वजह से बहुत से गाने, फाइनल एडीटिंग के दौरान निकाल दिए गए। मुगल ए आज़म से जुड़ा एक और किस्सा बेहद मशहूर है। जब कई साल पहले मुगले आज़म की शूटिंग शुरू हुई थी तो दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी जोर शोर से चल रही थी, लेकिन करीब 10 साल में पूरी हुई मुगले आज़म में जिस दौर में थप्पड़ वाला ये सीन शूट हुआ, उस वक्त तक इन दोनों की राहें अलग हो चुकी थी। इस सीन के दौरान दिलीप कुमार ने मधुबाला को गाल पर पूरी ताक़त से झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया। शॉट तो ओके गया, लेकिन थप्पड़ की गूंज के बाद पूरे सेट पर कुछ देर के लिए शांति छा गई थी।

के. आसिफ ने चुकाई एक गाने की किमत 25,000



अब बात करते है एक खास गाने की। जो एक हिन्दूस्तानी राग पर आधारित था और जिसे गाने के लिए के आसिफ ने बडे गुलाम अली खान साहब को 25000 रूपय दिए थे। इस गाने में अनारकली और सलीम के प्यार भरे लम्हों को दिखाया गया है। के आसिफ ने मुगले आज़म में मोहब्बत को बड़ी शिद्दत से  दिखाया। फिल्म में जंग के सीन भी शानदार तरीके से फिल्माए गए। मुगले आज़म 5 अगस्त 1960 को रिलीज हुई थी। इस फिल्म को लोगो का बहुत प्यार भी मिला। फिल्मफेयर मेगजीन कहा था की इस फिल्म ने इतिहास रच दिया है। के आसिफ मुगले आज़म को रंगों से भरना चाहते थे। उन्होने 1960 में रिलीज हुई फिल्म के कुछ हिस्सो का रंगीन शूट भी किया था, लेकिन वो दूबारा पूरी फिल्म शूट नहीं कर पाए।

2004 में आधूनिक तकनीक से फिल्म को किया गया रंगीन



34 साल बाद साल 2004 में आधूनिक तकनीक से इस एपिक फिल्म को रंगीन कर दिया गया और के आसिफ का अधूरा सपना पूरा किया गया। मुगले आज़म दूनिया की पहली फिल्म है जिसे रंगीन बनाने के बाद सिनेमा घर में फिर से रिलीज किया गया और जिसकी शानो शोकत देखने के लिए फिर एक बार पूरानी पीडि के साथ नई पीडि के दर्शक भी सिनेमा घरो में नजर आए।