बॉलीवुड में काम ना मिलने पर आज भी पुणे में ये काम करते हैं Asrani- कभी फिल्मों के लिए घर छोड़ कर मुबंई भाग आए थे
मशहूर एक्टर असरानी बॉलीवुड और गुजराती सिनेमा का जाना-माना चेहरा रहे हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में कई बेहतरीन फिल्मों में काम करके अपनी लाजवाब कॉमिक टाइमिंग से दर्शकों का खूब प्यार पाया है
Bollywood के मशहूर एक्टर असरानी (Asrani) 70-80 के दशक की कई शानदार फिल्मों में काम किया। असरानी उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं जिन्हें पता था कि वो एक्टर ही बनेंगे। इसीलिए उन्होंने पुणे के फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) से एक्टिंग का कोर्स किया। आज की इस खास कहानी में हम आपको असरानी की जिन्दगी के कुछ ऐसे पहलुओं से रूबरू करवाएंगे जिनसे आप अभी तक अंजान होंगे।
असरानी का बॉलीवुड में सफर आसान नहीं था। आज वो जिस मुकाम पर हैं वहां पहुंचने के लिए उन्होंने खूब संघर्ष किया है साथ ही घरवालों से बगावत की वो अलग। एक बार अपने इंटरव्यू में असरानी ने इस बात का खुद खुलासा किया था कि- जब उनके परिवार वालों ने पहली बार असरानी को बड़े पर्दे पर देखा तब गुस्से में परिवार वाले उन्हें मुंबई से वापस गुरदासपुर ले गए थे। क्योंकि असरानी का परिवार उनके फिल्मों में काम करने के खिलाफ था। असरानी के पिता हमेशा से चाहते थे कि वो बड़े होकर सरकारी नौकरी करें। लेकिन उन्हें तो फिल्मों में काम करना था, इसीलिए एक दिन वो घर में किसी को बिना बताए गुरदासपुर से भाग कर मुंबई चले आए।
मुंबई आकर उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें फिल्मों में सफलता नहीं मिली। इसीलिए फिल्मों में एंट्री के लिए उन्होंने पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट (FTII) से साल 1964 में डिप्लोमा किया।करना पड़ेगा। लेकिन कोर्स करने के बाद भी उन्हें फिल्मों में सिर्फ छोटे-मोटे रोल ही मिले। जिसके बाद निराश होकर वो वापस पुणे आए और FTII (Film and Television Institute of India) में टीचर की नौकरी करने लगे। लेकिन वहां रहकर भी उन्होंने फिल्मों में काम करने का सपना नहीं छोड़ा। टीचर की जॉब करते-करते उनके कई फिल्म निर्माताओं से संपर्क बने और फिर उन्हें बड़ा ब्रेक मिला डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'सत्यकाम' में जो साल 1969 में आई थी। जिसके बाद सुपरहिट फिल्म गुड्डी में उनके कॉमिक अंदाज को हर किसी ने पसंद किया।
इसके बाद असरानी ने पिया का घर, मेरे अपने, शोर, सीता और गीता, परिचय, बावर्ची, नमक हराम, अचानक, अनहोनी जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया। कॉमेडी किरदारों के साथ साल1972 में आई फिल्म कोशिश और चैताली में उन्होने निगेटिव किरदार भी निभाए। असरानी अपने करियर में केबल एक्टिंग तक ही सीमित नहीं रहे। उन्होंने 1977 में 'चला मुरारी हीरो बनने' नाम की सेमी बायोग्राफिकल फिल्म बनाई। इस फिल्म की कहानी उनके ही जीवन से इंसपायर्ड थी। हालांकि इस फिल्म को दर्शकों ने पसंद नहीं किया। लेकिन बावजूद इसके उन्होंने 1979 में 'सलाम मेमसाब', 1980 में 'हम नहीं सुधरेंगे', 1993 में 'दिल ही तो है' और 1997 में 'उड़ान' जैसी फिल्में बनाई। असरानी आज भी पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट में लोगों को एक्टिंग की ट्रेनिंग देते हैं।
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