सायरा की नानी शमशाद बेगम दिल्ली की मशहूर गायिका थी। भारत-पाक विभाजन के बाद अहसान मियाँ पाकिस्तान में रहने लगे थे। नसीम जी अपनी बेटी सायरा और अपने बेटे सुल्तान को लेकर लंदन जा कर बस गई थी। सायरा बानो की शिक्षा लंदन में हुई है। सायरा बानो अक्सर छुट्टियाँ मनाने भारत में आया करती थी और जब भी वो भारत में आती थी तो दिलीप कुमार की फिल्मों की शूटिंग देखने घंटों स्टुडियो में बैठी रहती थी।




सायरा बानो ने एक इंटरव्यू में कहा था, कि जब वो 12 साल की थी, तब वो हमेशा ये माँगती थी कि उन्हे अम्मी जैसी हीरोइन बनाना और दिलीप कुमार के साथ वो काम करना चाहती है। सायरा ने 1959 में बॉलीवुड के सफर में कदम रखा। सायरा बानो की मां नसीम के पुराने दोस्त रहे फिल्मालय के शशधर और सुबोध मुखर्जी ने फिल्म जंगली में शम्मी कपूर के साथ सायरा बानो को लांच किया था।



1960 के दशक में सायरा की कई सुपरहिट फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने लगी थी। राजेन्द्र के अभिनय में दिलीप साहब की पूरी परछाई समाई हुई थी। उसके बाद सायरा का दिल राजेन्द्र कुमार पर फिदा हो गया। जबकि वो तीन बच्चों के बाप थे। सायरा बानो और राजेन्द्र कुमार की प्रेम की कहानी उनकी माँ नसीम को पता चल गई और उसके बाद उनकी मां ने दिलीप कुमार के पाली हिल वाले बंगले के पास जमीन खरीदकर अपना घर बनवाया। नसीम ने पड़ोसी दिलीप साहब की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को समझाए ताकि वो राजेन्द्र कुमार से पीछा छूटा सकें। दिलीप कुमार ने ये काम किया क्योंकि वो सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे और शादी का तो दूर-दूर तक इरादा नहीं था।



जब दिलीप साहब ने सायरा को समझाया कि राजेन्द्र के साथ शादी का मतलब है पूरी जिंदगी सौतन बनकर रहना और तकलीफें सहना। तब पलटकर सायरा ने दिलीप साहब से सवाल किया कि क्या वो उनसे शादी करेंगे? सवाल से अचकचाए दिलीप उस समय तो कोई जवाब नहीं दे पाए। मगर 11 अक्टोबर 1966 को उन्होंने अपनी 44 साल की उम्र में पच्चीस साल की सायरा से बाकायदा शादी रचा ली। दूल्हे दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और दाएँ-बाएँ राज कपूर तथा देव आनंद नाच रहे थे।



दिलीप कुमार ने कोई चट मंगनी पट ब्याह की स्टाइल नहीं अपनाई थी। नसीम और सुबोध मुखर्जी को इसके लिए काफी फिल्डिंग करना पड़ी। दिलीब साब चेन्नाई में एक फिल्म की शूटिंग के समय बीमार हो गए। फौरन सायरा ने फ्लाइट पकड़ी और चेन्नाई जाकर नर्स की तरह दिलीप साहब की सेवा में जुट गई। महाबलेश्वर में भी दोनों की मुलाकातें हुईं। आखिर उनका झुकाव सायरा की ओर होने लगा क्योंकि वो कामिनी कौशल तथा मधुबाला से निराश हो चुके थे। अपने कुँवारेपन की आजादी को आखिर वे छोड़ देना चाहते थे।



दिलीप कुमार के भीड़-भाड़ वाले घर में सायरा का ज्यादा दिनों तक मन नहीं लगा। वे उसी मोहल्ले में माँ के साथ रहने लगी। सायरा ने फिल्मों में काम जारी रखा। दिलीप साहब के अलावा भी वे दूसरे नायकों की नायिका बनती रहीं। फिल्म विक्टोरिया 203 के समय वे गर्भवती थीं। शूटिंग लगातार करते रहने से उन्होंने मृत शिशु को जन्म दिया। इस दुर्घटना पर दिलीप कुमार फूट-फूटकर रोए थे। कुछ समय बाद दिलीप-सायरा के बीच अस्मां नामक एक खूबसूरत महिला आकर खड़ी हो गई। कहा जाता है कि यह सब एक साजिश के तहत रचा गया प्लान था। 30 मई 1980 को उसने बंगलौर में दिलीप कुमार से शादी की। समय रहते दिलीप साहब ने उससे छुटकारा पा लिया, लेकिन तीन साल तक वे झूठ बोलते रहे कि उनकी कोई दूसरी शादी नहीं हुई है। ऐसा माना जाता है कि दिलीप साहब के दिल में पिता कहलाने की एक ललक थी, जिसे वे शायद अस्मां के जरिये पूरी करना चाहते थे।



बात है 1960 की है। सायरा बानो बचपन से ही दिलीप कुमार की फैन रही है। एक दिन था जब उनके घर फिल्म मुगले आज़म का प्रीमियर शो का इनविटेशन आया और वो इस इनविटेशन को देखकर काफी खुश हो गई। सायरा बानो ने एक हफ्ते पहले से ही जानें की तैयारी शुरु कर दी। आखिरकार वो दिन आ गया। सायरा बानो बहुत तैयार हो कर वहां गई ये सोच कर की जब दिलीप कुमार वहां पहुंचेगे तो वो उन्हे देखकर खुश होगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ उस प्रीमियर में दिलीप कुमार किसी कारण आएं नहीं और सायरा बानो वहां से नराश हो कर चली गई।