"आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बेलेंस है तुम्हारे पास क्या है? और फिर एक आवाज सुनाई देती है मेरे पास मां है"। ये वो डायलॉग है जिसे आज भी लोग दौहराते हैं। अब आप ये सोच रहे होंगे कि भला आज अचानक हम इस सुपरहिट डायलॉग को क्यों याद करने लगे। वो इसलिए क्योंकि जिस फिल्म का ये डायलॉग है उस फिल्म को रिलीज हुए पूरे 45 साल हो चुके हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं Bollywood की एक ऐसी फिल्म जिसके दमदार डायलॉग और बेहतरीन किरदार पिछले 45 सालों से दर्शकों के जहन में बसे हुए हैं। उस फिल्म का नाम है 'दीवार' (Deewaar)।



अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और शशि कपूर (Shashi Kapoor) की सुपरहिट फिल्म 'दीवार' जिसे यश चोपड़ा (Yash Chopra) ने डायरेक्ट किया था और सलीम खान-जावेद अख्तर (Saleem Khan- Javed Akhtar) ने लिखा था। ये फिल्म साल 1975 में रिलीज हुई थी। लेकिन इतने सालों के बाद भी इस फिल्म के लिए लोगों में आज भी दीवानिगी देखी जाती है। 'जंजीर' (Zanjeer) के बाद अमिताभ बच्चन के लिए ये फिल्म मील का पत्थर साबित हुई। जिसकी वजह से बिग बी ने फिल्म इंडस्ट्री पर अगले 3 दशकों तक राज किया।



लेकिन क्या आप जानते हैं कि फिल्म दीवार में 'विजय' का किरदार निभाकर हर किसी का दिल जीतने वाले अमिताभ बच्चन इस किरदार के लिए पहली पसंद नहीं थे और ना ही शशि कपूर छोटे भाई के किरदार के लिए पहली पसंद थे। विजय के किरदार के लिए मेकर्स राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) को और छोटे भाई के लिए नवीन निश्चल (Navin Nischol) को चुना गया था। लेकिन जब फिल्म के मेकर्स के साथ इनकी बात नहीं जमी तो फिर यश चोपड़ा ने अमिताभ बच्चन और शशि कपूर को कास्ट कर लिया।



फिल्म के दमदार डायलॉग, कलाकारों की बेहतरीन एक्टिंग और शानदार स्क्रीन प्ले ने हर किसा का ध्यान अपनी तरफ खींचा। फिल्म में हर एक्टर ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। दो बेटों को अपने पालने वाली मां के सशक्त किरदार में निरूपा राय (Nirupa Roy) की बेहतरीन एक्टिंग ने इस फिल्म में चार चॉद लगा दिए। फिर फिल्म के डायलॉग जैसे "मैं फेंके हुए पैसे नहीं उठाता, "'मेरा बाप चोर है', "पीटर तेरे आदमी मुझे बाहर ढूंढ रहे हैं और मैं तुम्हारा यहां इंतजार कर रहा हूं," "आज मेरे पास पैसा है, प्रापर्टी है, बैंक बैलेंस है, बंगला है, गाड़ी है, क्या है, क्या है? तुम्हारे पास।" विजय की इस चीखती हुई आवाज के सामने धीमी आवाज में शशि कपूर कहते हैं-"मेरे पास मां है।" इन लाजवाब डायलॉग को सुनकर 70 के दशक में सिनेमाघरों में तालियां बजती थी।


 


70 के दशक में किसी फिल्म के लिए ऐसी दीवानगी बहुत बड़ी बात थी। 1975 में इस फिल्म ने अकेले मुंबई में ही करोड़ रूपये की बम्पर कमाई की थी। उस दौर में सिनेमाघर की एक टिकट का सबसे ज्यादा कियारा 3 रुपये हुआ करता था। इसके साथ ही फिल्म दीवार ने उस साल बेस्ट मूवी ऑफ दि इयर अवार्ड भी समेत 6 और अवार्ड अपने नाम किए थे। कह सकते हैं कि साल 1975 हिंदी सिनेमा के लिए कुछ ज्यादा ही शानदार रहा था क्योंकि उसी साल शोले, धर्मात्मा और जय संतोषी मां जैसी फिल्मों ने ताबड़तोड़ कमाई की थी और कमाई के मामले में दीवार चौथे नंबर पर रही थी। शोले में भी अमिताभ दमदार किरदार में दिखाई दिए थे। ये फिल्म बॉलीवुड के इतिहास का हिस्सा बन चुकी है फिर भी दीवार का जादू बना रहा। आज भी जब बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों का नाम लिया जाता है तो उसमे 'दीवार' का नाम जरूर शामिल होता है।


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