बॉलीवुड (Bollywood) के मशहूर एक्टर जिन्हें देखने के लिए लड़कियों की लाइन लग जाया करती थी। जिसकी एक मुस्कान पर लाखों दिल धड़कते थे वो थे देव आनंद  (Dev Anand). हर कोई उनपर फिदा था शायद इसीलिए वो हमेशा अपनी हीरो वाली इमेज को लेकर कुछ ज्यादा ही सतर्क रहा करते थे। यही वजह है कि1950 के दशक में जब कोई एक्टर डायरेक्टर से सवाल करने की हिम्मत नहीं करते थे उस दौर में देवा आनंद फिल्मों के सीन और डायलॉग में
अपना पूरा दखल बनाए रखते थे।



उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ मिलकर साल 1949 में नवकेतन फिल्म्स की स्थापना की। 1951 में उन्होंने फिल्म आंधियां के निर्माण शुरुआत की। निर्देशन चेतन आनंद कर रहे थे। फिल्म के एक सीन के लिए निर्देशक ने देवानंद को बताया कि साथी कलाकार अख्तर हुसैन उन्हें थप्पड़ मारेंगे। मगर देवानंद ने कहा कि वो थप्पड़ नहीं खाएंगे। देव आनंद ने बहस की, कि जब अख्तर उन्हें थप्पड़ मारने को हाथ उठाएंगे तो वो उनका हाथ पकड़ लेंगे। देवानंद ने कहा कि भगवान ने मुझे भी दो हाथ दिए हैं और जब कोई अपना हाथ उठाएगा तो मैं कैसे रुका रहूंगा।


तब चेतन आनंद ने देवानंद को समझाया कि ये सीन कहानी में बहुत ही अहम मोड़ पैदा करेगा इसलिए तुम्हारा हुसैन से थप्पड़ खाना बेहद जरूरी है। इस पर देवानंद ने कहा कि अगर ये सीन आपकी कहानी के लिए जरूरी है और फिल्म को बुलंदी देगा तो यह मेरे करियर को डुबो ही देगी। इस फिल्म को देख कर दर्शक कहेंगे कि हीरो तो मार खा गया। चुप रह गया। इसका कुछ नहीं होगा। अगर यह थप्पड़ मैंने खा लिया तो बतौर हीरो मेरा करिअर ही खत्म हो जाएगा। देव आनंद अपनी बात पर अड़े रहे और हार कर चेतन आनंद को फिल्म का ये सीन बदलना ही पड़ा। वास्तव में देवानंद अपने से जुड़ी हर चीज को लेकर बहुत सतर्क रहा करते थे और दूर की सोचते थे। वो अपने स्वभाव में बेहद साहसी थे और अपनी फीस को लेकर भी निर्माताओं से खुल कर बात करते थे, जबकि उन दिनों ज्यादातर ऐक्टर या तो फिल्म कंपनियों में बंधी हुई तनख्वाह पाते थे या फिर जो निर्माता देते थे, वह चुपचाप रख लिया करते थे।
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