रामायण’ से पहले रामासंद सागर करते थे चपरासी का काम, इस सीरियल ने बदली उनकी किस्मत
रामायण को बनाने से पहले रामानंद सागर ने भी नहीं सोचा होगा की उनको इस सीरियल से इनती शाहानो शोक्त मिलेगी।
80 के दशक की ‘रामायण’ बनाने से पहले रामानंद सागर ने ये नहीं सोचा होगा कि लोग उन्हें पूजने लगेंगे। 80 के दशक में लोगों ने पहली बार इस तरह रामायण की कहानी को छोटे पर्दे पर देखा था। अब जब 'रामायण' का प्रसारण दोबारा हो रहा है तो चलिए आपको बताते हैं रामानंद सागर से जुड़ा एक किस्सा।
रामानंद सागर एक लेखक, पत्रकार, स्क्रिप्ट राइटर, डायलॉग राइटर, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे। रामानंद सागर के बचपन का नाम चंद्रमौली चोपड़ा था। रामानंद को उनकी नानी ने गोद लिया था, उन्होंने ही नया नाम रामानंद सागर दिया।
रामानंद सागर का परिवार भारत आ गया। उनके परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई थी। परिवार की मदद करने के लिए रामानंद सागर ने कम उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी भी की।
रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने एक बार बताया था कि '1949 में पापाजी (रामानंद सागर) की सबसे पहली फिल्म 'बरसात' थी। किसी ने नहीं सोचा था कि एक आदमी जिसने चपरासी का काम किया, सड़क पर साबुन बेचें, जर्नलिस्ट बने और मुनीम का काम किया, वो आदमी एक दिन रामायण बना सकता है।' बहरहाल मुंबई पहुंचकर उन्होंने बतौर लेखक काम करना शुरू किया।
1940 में रामानंद सागर पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर में असिस्टेंट स्टेज मैनेजर के तौर पर काम करने लगे। यहीं से उन्हें राज कपूर के साथ काम करने का मौका भी मिला। साल 1950 में उन्होंने प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट कॉरपोरेशन बनाई। रामानंद सागर के कई सीरियल और फिल्में पॉपुलर हुईं लेकिन 'रामायण' की सबसे ज्यादा चर्चा रही।
80 के दशक में जब दूरदर्शन पर 'रामायण' का प्रसारण रविवार सुबह होता था तो सड़कें सुनी हो जाती थीं। सीरियल के किरदारों को लोग भगवान की तरह पूजने लगे थे। 'रामायण' से रामानंद सागर ने काफी लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने 12 दिसंबर 2005 को 87 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।