नई दिल्ली, एबीपी गंगा | हिंदी फिल्मों की वजह से हम कह सकते हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक और गोवा से मेघालय तक भारत एक सूत्र में बंध जाता है। आप जान कर हैरान होंगे कि गैर हिन्दी भाषी केरल में भी लोग रफी साहब के गाने सुन कर बड़े हुए हैं। हिंदी गीतों के पर्याय बन चुके अमर गायक मोहम्मद रफी, किशोर कुमार के गाने हमारे जीवन में इस तरह रच बस गये हैं कि हम अपनी भावना व्यक्त करने के लिये इनके गीतों का सहारा लेते हैं।


 


कुछे किस्से ऐसे भी


सबसे पहले हम बात करते है राज कपूर से जुड़े एक किस्से के बारे में, क्यों राज कपूर फिल्म ''मेरा नाम जोकर'' के वक्त ऋषि कपूर से बार बार कहते थे की कुछ कमी रह गई है।


ये क्या था किस्सा?


शुरूआत करते हैं...मनमोहन देसाई और उनकी पहली फिल्म छलिया की...बात उन दिनों की है जब मनमोहन देसाई अपने बड़े भाई सुभाष देसाई को असिस्ट किया करते थे। उनकी उम्र होगी तकरीबन 22 साल। बड़े भाई सुभाष देसाई ने मनमोहन को फिल्म डायरेक्ट करने का मौका दिया और उनसे पूछा फिल्म में किसे मौका देना चाहते हो। मनमोहन तुरंत बोले मैं राज कपूर नूतन का बहुत बड़ा फैन हूं। उन्हें फिल्म में लेना चाहता हूं। इसके बाद सुभाष देसाई ने राज कपूर से फिल्म को लेकर बात की और कहा मेरा छोटा भाई है मनमोहन फिल्म को डायरेक्ट करने जा रहा है। राज कपूर सुभाष से कहा कि ठीक है वो तुम्हारा भाई है, लेकिन क्या वो फिल्म बना पाएगा, डायरेक्ट कर पाएगा। मैं इस फिल्म में काम को करुंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। पहले मैं कुछ दिन उनका काम देखूंगा और अगर नहीं जमा तो हम डायरेक्टर बदल देंगे। अगर आपको ये बात मंजूर है ? सुभाष देसाई इस बात को मान गए। उन्होंने ये बात अपने छोटे भाई मनमोहन देसाई को नहीं बताई। उन्होंने मनमोहन से कहा कि राज कपूर जी फिल्म को करने के लिए राजी हो गए है, काम शुरू करो। फिर कुछ दिन बाद फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। पूरे कॉन्फिडेंस के साथ, पूरे आत्मविश्वास के साथ शूटिंग में जूट गए मनमोहन देसाई।



जब फिल्म के टाइटल सांग की शूटिंग पूरी हुई। तो राज कपूर मनमोहन के काम से बहुत खुश हो गए और उन्होंने मनमोहन से कहा यू आर ऑन अब आप फाइनली इस फिल्म के डायरेक्टर तुम बन ही गए हो। मनमोहन देसाई की ये बात समझ में नहीं आई। लेकिन बाद में उन्हे पता चला कि असल में बात क्या थी। मनमोहन देसाई ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि अच्छा हुआ उनके बड़े भाई ने ट्रायल वाली बात उन्हें नहीं बताई। वरना वह बहुत घबरा जाते और उनका ध्यान नर्वसनेस की वजह से भटक जाता और फिल्म को डायरेक्ट करने की जगह वो स्टार राज कपूर को खुश करने में लग जाते। तो इस तरह मनमोहन देसाई को मिली उनकी पहली इंडिपेंडेंट फिल्म छलिया। मनमोहन देसाई के मुताबिक सफल फिल्मों में से छलियां ही एक ऐसी फिल्म है...जिसे सब लोगों ने खुब सराहा।


क्यों राज कपूर फिल्म ''मेरा नाम जोकर'' की शूटिंग के दौरान अपने बेटे ऋषि कपूर की परफॉर्मेंस देखने के बाद हमेशा कहते, कुछ कमी रह गई बेटा। ये कमी क्या थी, क्या वजह थी ?


 ये बात ग्रेट राज कपूर की और उनके बेटे ऋषि कपूर की फिल्म ''मेरा नाम जोकर'' से शुरू होती है। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ऋषि कपूर के हर शूट के बाद राज कपूर बोलते, तुमने शूट तो बहुत अच्छा दिया, लेकिन कुछ कमी रह गई। ऋषि कपूर अगले शूट में फिर से कोशिश करते थे कि वो पिछले शूट से बेहतर हो, लेकिन हर बार ये ही डायलॉग सुनने को मिलता कुछ कमी रह गई।



अब ऋषि कपूर इस बात से बहुत परेशान हो गए कि सब लोगों को मेरा काम बहुत पसंद आ रहा है, लेकिन पापा का मिजाज समझ नहीं आ रहा है। खैर ये सिलसिला चलता रहा फिल्म भी रिलीज हुई और इस फिल्म के लिए ऋषि कपूर को बतौर ''सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार'' का पुरस्कार मिला। अवार्ड लेने के बाद ऋषि कपूर जब अपने पिता राज कपूर से आशीर्वाद लेने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि अब तो बोल दीजिए मैंने अच्छा काम किया। पापा राज कपूर ने अर्वाड के लिए बेटे को बधाई दी और इसके बाद फिर वही बात दोहराई कि थोड़ी कमी रह गई थी। बेटे ऋषि कपूर का सब्र का बांध टूट गया। हिम्मत जुटा कर पिता से पूछ डाला, पापा किसी को भी कोई कमी नजर नहीं आई, आपको ही नजर आती है हमेशा ये ही बोलते हैं।


मेरे में ऐसी क्या कमी है पापा!


बड़े प्यार से ''द ग्रेट राज कपूर'' ने अपने बेटे ऋषि कपूर को समझाया कि जब वो छोटे थे तब अपने पिता जी पृथ्वीराज कपूर के साथ काम किया करते थे और ये ही सवाल पूछा करते थे, जो आज तुम अपने पापा से पूछ रहे हो। तब राज कपूर के पापा पृथ्वीराज कपूर ने एक कहानी सुनाई थी।



 


वो ये थी कहानी !


एक नट हुआ करता था। वह कलाबाज अपने बेटे को कंधे पर बिठा कर लोगों के लिए कई प्रकार की कलाबाजियां करता था। ऊंचाई पर बंधी रस्सियाों पर चलना, बैलेंस करना, बड़े लंबे बांस से करतब दिखाना। जब उसका बेटा बड़ा हुआ तो उसने भी इस काम को अपना लिया। बेटा जो भी करता लोग तालियां बजाते खूब पैसा देते लेकिन बाप हमेशा ये कहता था बहुत अच्छी किया लेकिन थोड़ी कमी रह गई। उस लड़के ने और मेहनत की और पैसा कमाया और लोगों की तालियां पाईं फिर भी बाप एक ही बात कहता था बेटा कुछ कमी रह गई। बेटा नाराज हुआ और उसने अपने बाप से लड़ते हुये कहा कि आज से ये सब कहना बंद कर दो। उस दिन के बाद से बाप ने बेटे को कुछ नहीं कहा...लेकिन एक दिन रस्सी पर चढ़ने के दौरान ध्यान भटकने के दौरान वो रस्सी से नीचे गिर गया। ये कहानी सुनाकर राज कपूर ने ऋषि कपूर से कहा इस कहानी से जो मुझे सिख मिली है....



मैं चाहता हूं वो ही सीख तुम्हें भी मिले और तुम भी अपने काम पर गर्व करके उसे और बेहतर करने की कोशिश करो और कभी भी किसी चीज को लापरवाही से लेना ना शुरू कर दो।


किस फिल्म ने राज कपूर साहब को बेचैन किया और उनको सोचने पर मजबूर कर दिया...


हुआ यूं कि एक फिल्म के प्रीमियर में राज कपूर को खासतौर पर बुलाया गया। राज कपूर जी अपनी धर्म पत्नी कृष्णा के साथ जा पहुंचे फिल्म देखने। फिल्म शुरू हुई और इस दौरान राज कपूर बेचैन हो उठे। आंखें भर आईं और फिल्म खत्म होने के बाद चुपचाप खामोशी के साथ नजर बचाकर अपनी पत्नी के साथ घर वापस चले गए। रास्ते भर चुप रहे ना जानें जेहन में क्या चल रहा था। पत्नी कृष्णा ने समझा कि शायद फिल्म में मजा नहीं आया, लेकिन घर आने के बाद भी बेचैनी नहीं गई। रात को नींद नहीं आई, करवटें बदलते रहे। सुबह हुई लेकिन कृष्णा को कुछ फर्क नजर नहीं आया। उन्होंने पति से कारण जानना चाहा। पत्नी के ये पूछते ही कि क्यों ऐसा हाल बना रखा है क्यों परेशान लग रहे हो। जवाब में राज कपूर की आंखें भर आईं ‘बोले कृष्णा मैं कैसी फिल्में बना रहा हूं, हीरोइन के इर्द गिर्द नाचने वाली फिल्में। असल सिनेमा तो ये है जो मैंने-तुमने कल देखा है’ मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैंने अपना वक्त बरबाद कर दिया है। मुझे तब तक सूकून नहीं मिलेगा जब तक कि मैं इस तरह की फिल्में ना बना लूं। जो समाज को नई दिशा दे, जो समाज की हकीकत को जाहिर कर सके। राज कपूर पर इसका इतना गहरा प्रभाव डाला वो फिल्म थी... दादा बिमल रॉय की ''दो बीघा जमीन'' इसी फिल्म को देखकर राज कपूर साहब इतने प्रेरित हो गए कि उन्होंने ''जागते रहो'' फिल्म बना डाली। राज कपूर की फिल्म ''जागते रहो'' बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही। ''दो बीघा जमीन'' ने ''जागते रहो'' की बुनियाद डाली थी।



बात उन दिनों की है जब रंजीत स्टूडियो के चंदू लाल सेठ के पास पापा जी यानी पृथ्वीराज कपूर राज कपूर को लेकर गए और बोले कि चंदू लाल जी ये मेरे साहब जादे है जो फिल्मों में जाना चाहते है। मैं चाहता हूं की आप इसे काम दे और फिल्म मेकिंग सिखाए और इसे सबसे पहले कुली के काम से सिखाना शुरू करें। सेठ चंदू लाल ये बात सुन कर हैरान हो गए कि पापा पृथ्वीराज कपूर जी राज कपूर को कुली के काम से शुरु कराना क्यो चाहते हैं। मगर उन्होंने पृथ्वीराज कपूर जी की बात को मानते हुए राज कपूर को स्टूडियो में नौकरी दे दी और साथ ही काम भी दे दिया कुली का।


राज कपूर कुली के काम को करते-करते आगे बढ़ने लगे और फिल्म मेकिंग के हर विभाग में काम को सिखने लगे और तरक्की करते-करते बन गए केदार शर्मा के असिस्टेंट.... अपने इस असिस्टेंट में केदार शर्मा ने प्रतिभा देख ली एक अभिनेता की और कालांतर में केदार शर्मा ने राज कपूर को हीरो बना डाला। फिल्म नील कमल में केदार शर्मा की देखा-देखी में धीरे-धीरे राज कपूर को और भी डायरेक्टर ने काम देना शुरू कर दिया। राज रपूर की एक्टिंग करियर यहां से शुरू हो गया। लेकिन राज कपूर जैसे टेलेंट को सिर्फ टेलेंट एक्टर बन कर रहना मंजूर नहीं था उनके अंदर अभी और विशाल सपने पल रहे थे।



फिल्म मेकिंग के सपने... और इसी सपने को लेकर राज कपूर रंजीत स्टूडियो में काम कर रहे मुकेश के पास आए और बोले चलो गाड़ी में मुझे तुमसे कुछ काम है। मुकेश जी बैठ गए अब रास्ते में राज कपूर ने बताया की वो एक फिल्म बनाना चाहते हैं ये बात सुन कर मुकेश जी ने सोचा की शायद वो इस फिल्म में उन्हें हीरो लेना चाहते हैं इसीलिए वो उनसे बात कर रहे हैं।


मुकेश जी मन ही मन खुश होने लगे मगर अगले ही कुछ पलों में राज कपूर ने एक बात साफ कर दी की वो खुद एक फिल्म बनाना चाहते है  ‘आग’ और इसमें हीरो को रोल राज कपूर खुद करेंगे और फिल्म को डायरेक्ट और प्रोड्यूस भी करेंगे। मुकेश जी के खुद हीरो बनने के अरमान तो इस बात को सुनकर टूट गए मगर उन्होंने राज कपूर को इस सपने को पूरे करने के लिए शुभकामनाएं दी। इस फिल्म से राज कपूर एक एक्टर से डायरेक्टर और प्रोड्यूसर बनने का सफर शुरू करने वाले थे मगर ये सफर उनके लिए बहुत मुश्किल था। मुकेश जी कहते है जब राज कपूर फिल्म आग को बना रहे थे तो उनके सामने जितनी भी मुसिबते आती थी वो सब आई पैस की दिग्गत आई एक्टर की डेट की प्रोब्लम आई, कभी शूटिंग केंसिल करनी पड़ी मगर शायद ही कोई परेशानी ऐसी हो जो उस वक्त राज कपूर ने नहीं झेली हो। फिर भी ये राज कपूर का जिगरा ही था जो इनती मुसिबतो से लड़ते हुए अपने आत्मविश्वास के सहारे इस फिल्म को इस मिशन को पूरा किया। जब इस फिल्म को रिलीज करने की बाद आई तो इस फिल्म को खरीदने वाला भी नहीं मिला। लोगो ने राज कपूर की मजाक उड़ाया...... मुकेश जी बताते है की एक डिस्ट्रीब्यूटर ने तक कह दिया था के राज साहब आपने आग बना तो दी अब इसे चलाने के लिए थिएटर भी आप ही अपना बना लीजिए ताकि आग लगे तो आपको थिएटर  मे ही लगे। इतनी सारी मुसिबते इतना कुछ जमाने से सुनने के बाद राज कपूर को कोई डगमगा नही सका उन्हे पता था एक दिन वो कुछ कर दिखाएंगे और ऐसा हुआ भी राज कपूर की आग को बॉक्स ऑफिस पर कुछ धमाल ना कर पाई। मगर राज कपूर फैल नही हुए। उन्होने आग की नाकामयाबी को बुझाने के लिए फिर से एक और फिल्म बनाई बरसात और इस बरसात ने उन पर रुपय पैसे नाम इज्जत शोहरत और काम की दी झमा झम बरसात और राज कपूर बन गए एक कामयाब एक्टर डायरेक्टर और प्रोड्यूसर।


शैलेंद्र केसरी लाल के राज कपूर थे फैन


कवी राज शायर शैलेंद्र जी पूरा नाम शैलेंद्र केसरी लाल श्रीवास्तव था। शैलेंद्र जी फिल्मों में आने से पहले रेलवे में वेलडर का काम करते थे। रेलवे में काम करते करते कविता लिखने लगे शायरी करने लगे। आजाद ख्याल के आदमी थे। क्रांती कारी विचार के इंसान थे। जनता को इनकी कविता बहुत पसंद थी। एक बार राज कपूर जी भी मूशायरे में गए जहां उन्होने शैलेंद्र को शैलेंद्र की कविता पढ़ते हुए सुना। राज कपूर शैलेंद्र से बहुत प्रभावित हुए उन से मुलाकात की और एक ऑफर दे डाला की मैं एक फिल्म बना रहा हूं आप क्या उसमे गीत लिखेगे।



शैलेंद्र जी ने कहा में कवि हूं लेकिन मैं फिल्मी गीतकार नहीं बनना चाहता। राज कपूर चले आए लेकिन उन्होने दूसरे दिन शैलेंद्र को एक बार फिर अपने ऑफिस में बुलाया और एक बार फिर से प्रस्ताव सामने रख दिया। लेकिन इस बार भी शैलेंद्र ने इस प्रस्ताव को करने से मना कर दिया। राज कपूर जी ने कहा कोई बात नही लेकिन मैं आपकी कविताओं को फैन बन चूका हूं। आप से एक बात कहना चाहता हूं ये लिफाफे में कुछ पैसे रखे हुए है मैं इसे बंद कर रहा हूं इस पर आपका नाम लिखा हुआ है ये लिफाफा ऑफिस में रखा रहेगा आपको इसकी जब भी जरूरत हो आप आ कर ले जाना मै इतना बड़ा फैम हूं आपका आपको मेरे साथ काम नही करना कोई बात नही लेकिन ये आपका है तो जब आपका मन करें तब आप इसे आकर ले जाना। इस बात के बाद वो दोनों अलग हो गए.....


 


काफी अरसे के बाद..... 


जब शैलेंद्र दी की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया तब हॉपिटल का खर्चा जरा ज्यादा था। शैलेंद्र जी के पास इतने पैसे नहीं थे पैसे के कमी के कारण अचानक राज कपूर जी की याद आई वो राज कपूर जी के ऑफिस पहुंचे राज जी वहां मौजूद नहीं ते लेकिन राज जी के वादे के मुताबीक वो लिफाफा वहा ऑफिस में था उन्होने उस लिफाफे को लिया और चले आए।



कुछ दिनों के बाद शैलेंद्र राज जी के ऑफिस में पहुंच गए शुक्रिया अदा किया और अपनी कुछ कविताएं उनके सामने ला कर रख दी। राज कपूर ने कहा इसकी कोई जरुरत नही है.... शैलेंद्र जी बोले एहसान नहीं कविताएं दे रहा हूं। मैं आपकी फिल्मों के लिए गीत लिखने के लिए तैयार हूं।।.... शैलेंद्र ने राज कपूर की फिल्म बरसात के लिए दो गाने लिखें।


एक किस्सा ऐसा भी...


जो हम आपको किस्सा बताने जा रहे है जो उनकी बायोग्राफी में खुद उनके परिवार वालो ने किया है वो बताते थे की राज कपूर जमीन पर सोते थे। राज कपूर की बेटी रितु नंदा ने अपने पापा के ऊपर जो किताब लिखी है उसमे जिक्र किया है की राज कपूर साहब ने अपने माता पिता की बहुत बड़ी तस्वीर अपने बेड रूम में बिस्तर के ऊपर लगाई हुई थी। हर रोज वो उस तस्वीर को प्रणाम करके जमीन पर ही सोते थे। उनकी इसी आदत को लेकर जब वो लंदन गए हुए थे और जब उनको हिलटन होटल में रहना था तो वहां पर भी जमीन पर सोए थे। लेकिन होटल के मैनेजर ने उनको जमीन पर सोने से मना किया था लेकिन आदत से मजबूर राज कपूर जी रोज जमीन पर सोते थे आपको बते दे राज कपूर जी ने हर दिन का जमीन पर सोने का फाइन दिया था।