Boot Business In Agra: ताजनगरी आगरा का बूट उद्योग इस समय पूरी तरह बर्बाद पड़ा हुआ है. बूट उद्यमियों के टर्नओवर में 10 गुना से ज्यादा घट चुका है. बूट उद्यमियों के मुताबिक, कुछ साल पहले तक वह बूट की सप्लाई तमाम उद्योगों और सुरक्षाबलों को किया करते थे, लेकिन सरकारी विभागों में खरीद नीति में अनावश्यक शर्तें लगाने से उनके कारोबार पर काफी असर पड़ा है. अगर इन नीतियों की खामियों को दूर नहीं किया गया शहर के छोटे जूता कारोबारी पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे.


बता दें कि आगरा को ताजमहल के अलावा सबसे ज्यादा जूता और चमड़ा उद्योग की वजह से जाना जाता है. आगरा में शू इंडस्ट्री के अंदर एक और इंडस्ट्री आती है वो है बूट कारोबार. बूट कारोबारियों के मुताबिक पिछले 60 सालों से बूट निर्माता देशभर के सरकारी दफ्तरों खास तौर पर आर्म्ड फोर्सेज में बूट सप्लाई करते आ रहे हैं. चीन से युद्ध हो या पाकिस्तान से, आगरा के बूट पहनकर ही हमारी सेना ने दुश्मनों के दांत खट्टे किए, लेकिन नई खरीद नीति से बूट उद्योग पूरा चरमरा गया है. बाकी कसर कोरोना की महामारी ने कर दी है.


2017 तक आगरा के बूट उद्योग का सालाना टर्नओवर 250 करोड़ से ज्यादा था. मगर अब बूट कारोबार महज 15 से 20 करोड़ के सालाना टर्न ओवर तक ही सीमित रह गया है. हालात ये हैं कि जहां कभी आगरा में 30 से 45 इकाइयां हुआ करती थीं. वहीं, आज महज ये संख्या 7 से 10 तक सिमट कर रह गयी है.


व्यापारियों ने मांग की है कि जेम के तहत स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा, टर्नओवर के नाम पर छोटी इकाइयों के साथ भेदभाव न होना. जेम पोर्टल टेंडर प्रक्रिया में पंजीकृत मूल उपकरण निर्माता फर्मों को ही भाग लेने की अनुमति हो. साथ ही कारोबारियों ने कहा कि अधिकतम सीमा खत्म कर क्षमता निर्धारण कर सप्लाई ऑर्डर बांट दिया जाना चाहिए.


बूट उद्यमियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारी खरीद पोर्टल जेम के कुछ अधिकारियों ने अपने पसंदीदा सप्लायरों को फायदा पहुंचाने के लिए बेवजह के नियम बना दिए हैं. इसमें सबसे ज्यादा मुश्किल टर्नओवर से संबंधित अनिवार्यता किए जाने से हो रही है. उन्होंने बताया कि 2017 तक फौज को बूट सप्लाई के टेंडरों में कोई टर्नओवर संबंधी अनिवार्यता नहीं थी, लेकिन दिल्ली की कुछ फर्मों को फायदा पहुंचाने के लिए 100 करोड़ रुपये के टर्नओवर की लिमिट रख दी गई. जिस टेंडर में यह शर्त रखी गई, वह सिर्फ नौ करोड़ रुपये का था. इसके बाद तो लगातार साजिश के तहत छोटे उद्यमियों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर किया जाता रहा. यहां तक कि एनएसआईसी की तरफ से होने वाले क्षमता निर्धारण एवं मॉनिटरी लिमिट संबंधी प्रमाणन की प्रक्रिया भी बदल दी गई. इससे छोटी इकाइयों को सरकारी टेंडर में सिक्योरिटी राशि से राहत मिल जाती थी. वो भी खत्म हो गई.



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