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विधानसभा चुनाव में पांचवीं बार गठबंधन करने जा रही बसपा, आज तक जीत पाई सिर्फ 5 बार, क्या अब खुलेगा खाता?

Lok Sabha Election 2024 में हारने के बाद बहुजन समाज पार्टी सियासत में नए प्रयोग कर रही है. यह तो वक्त ही बताएगा कि यह नया प्रयोग उसके लिए कितना सुखद होगा.

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति पर खुलासा कर दिया है. वह राज्य में पांचवीं बार गठबंधन के साथ चुनाव में उतरेंगी. हालांकि राज्य की सियासत में मायावती और बसपा के लिए अलायंस बहुत ज्यादा सफल नहीं रहा.

मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता अभय सिंह चौटाला के साथ मुलाकात की. माना जा रहा है कि 11 जुलाई को बसपा चीफ और इनेलो मुखिया एक साथ अलायंस का एलान करेंगे. करीब 6 साल बाद दोनों राजनीतिक दल एक बार फिर साथ आ रहे हैं. हरियाणा के सियासी इतिहास को देखें तो इनेलो के अलावा बसपा ने जो भी अलायंस किए वह कभी सफल नहीं हो पाए. इसकी एक वजह यह भी मानी जाती है कि बसपा चीफ ने हरियाणा को कभी प्राथमिकता नहीं दी.

हरियाणा में बसपा पांचवीं बार अलायंस करने जा रही हैं. साल 2018 के चुनाव के पहले भी इनेलो और बसपा का अलायंस हुआ था लेकिन कुछ समय बाद यह टूट गया था. जातीय समीकरण देखें तो हरियाणा में 21 फीसदी दलित और 22 फीसदी जाट हैं. दोनों दलों की निगाह इन्हीं 43 फीसदी वोटों पर हैं. इसी साल 4 जून को संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में इनेलो को 1.74 फीसदी और बसपा को 1.28 फीसदी मत मिले थे.

इस चुनाव में इनेलो और बसपा, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कोशिश में हैं. 

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बसपा का कब क्या रहा है हाल?
इतिहास के झरोखे में देखें तो साल 1998 में पहली बार इनेलो और बसपा के बीच अलायंस हुआ. तब बसपा ने अंबाला सीट जीती थी. इसके बाद कुछ एक विधानसभा चुनावों में बसपा के कैंडिडेट्स ने जीत दर्ज की. साल 2009 में बसपा और कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस में अलायंस हुआ. लेकिन वह भी टूट गया. फिर साल 2018 में इनेलो से अलायंस ज्यादा दिन नहीं चला. साल 2019 में बसपा ने बीजेपी के पूर्व नेता राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से गठबंधन किया जो चुनाव के बाद खत्म हो गया. 

हरियाणा विधानसभा की बात करें तो साल 2000 में 83 सीटें लड़ने वाली बसपा को 1, साल 2005 में 84 के मुकाबले 1, साल 2009 में 86 के मुकाबले 1, साल 2014 में 87 के मुकाबले सिर्फ 1 सीट मिली थी. वहीं साल 2019 में उसका खाता भी नहीं खुला जबकि पार्टी 87 सीटों पर मैदान में थी. साल 2000 में बसपा को 5.74%, 2005 में 3.22%, 2009 में 6.73%, साल 2014 में 4.4% और साल 2019 में 4.21 % वोट मिले थे. बसपा ने साल 2000 और साल 2009 में जगधरी सीट पर जीत दर्ज की थी. साल 2005 में छछरौली सीट पर बसपा ने जीत हासिल की थी. इसके अलावा वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा पृथला विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी.

इनेलो की शुरुआत सही, बाद में गड़बड़ हुआ खेल
इनेलो की बात करें तो स्थापना के चार साल बाद वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में 47, वर्ष 2005 में 9, वर्ष 2009 में 31, वर्ष 2014 में 19, वर्ष 2019 में 1 सीट जीती थी. इनेलो को विधानसभा चुनाव 2000 में 29.6%, वर्ष 2005 में 26,8% वर्ष 2009 में 25.8%, वर्ष 2014 में 24.2%, वर्ष 2019 में 2.5% फीसदी वोट मिले थे. 

लोकसभा वार बात करें तो साल 1999 के लोकसभा में 5, साल 2004 लोकसभा चुनाव में 0, 2009 लोकसभा चुनाव में 0, 2014 लोकसभा चुनाव  में 2, 2019  लोकसभा चुनाव में 0 और साल 2024  लोकसभा चुनाव  के चुनाव में 0 सीट जीती थी. वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में इनेलो को 28.7%, वर्ष 2004 में 22.4 %, वर्ष 2009 में 15.8%, 2014 में 24.4%, वर्ष 2019 में 1.90% वोट मिले थे.

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधासनभा चुनाव में बसपा और इनेलो का गठबंधन क्या रंग दिखाएगा और बीजेपी एवं कांग्रेस के लिए कितनी बड़ी चुनौती बनकर उभरेगा.

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