लखनऊ, एबीपी गंगा। यूपी की सियासत में एक बार फिर से बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड का नाम गूंज रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने गेस्ट हाउस कांड में संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा वापस लेने का शपथ पत्र दायर किया। जिसने यूपी की सियासी गलियारों की सरगर्मी बढ़ा दी है।
बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने इसकी पुष्टि की है। यूपी में सपा-बसपा गठबंधन टूटने के करीब 6 महीने बाद मायावती द्वारा उठाया गया ये कदम हर किसी के लिए चौंकाने वाला रहा है।
क्या था गेस्ट हाउस कांड
2 जून, 1995....ये वो दौर था जब बसपा की कमान कांशीराम के हाथ हुआ करती थी। इस वक्त उन्हीं के कहने पर मायावती ने विधायकों की एक बैठक बुलाई थी, जो लखनऊ के मीरा रोड स्थित गेस्ट हाउस में हुई। मुलायम सिंह यादव को इस बैठक के बारे में पता चला, इसके साथ सपा के कई कार्यकर्ता और विधायकों ने गेस्टहाउस पर हमला बोल दिया। वहां पहुंचकर सपा कार्यकर्ताओं ने बसपा के नेताओं के साथ मारपीट भी की। इस हंगामे के बीच मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था। देरी देर बाद वो भीड़ मायावती के कमरे तक पहुंच गई और दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगी। कहा ये भी जाता है कि सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती के साथ बदसलूकी की और उनके लिए अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया। ये बवाल इतना ज्यादा बढ़ गया था कि पुलिस के आलाधिकारी भी वहां पहुंच गए और मायावती की जान बच सकी। बोला जाता है कि भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती की जान बचाने में एक अहम भूमिका अदा की थी, हालांकि इस कांड के कुछ साल बाद उनकी हत्या हो गई थी। इसी घटना को इतिहास गेस्ट हाउस कांड के नाम से याद करता है। इस पूरे कांड के बाद बसपा ने सपा से अपना समर्थन वापस ले लिया था और मुलायम सिंह की सरकार गिर गई थी। जिसके बाद भाजपा ने मायावती को समर्थन देने का ऐलान किया था और 2 जून 1995 के अगले दिन भाजपा के समर्थन से मायावती ने उत्तर प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली थी।
अखिलेश का अनुरोध मायावती ने माना!
मायावती पर हुए हमले के विरोध में मुलायम सिंह यादव, उनके छोटे भाई शिवपाल यादव, सपा के वरिष्ठ नेता धनीराम वर्मा, मो. आजम खान, बेनी प्रसाद वर्मा समेत सपा के कई नेताओं के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में तीन मुकदमे दर्ज हुए थे। इनमें से सिर्फ मुलायम सिंह के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लेने के लिए मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दायर किया है। बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान जब जनवरी में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ था, उस वक्त अखिलेश यादव ने मायावती से मुकदमा वापस लेने का अनुरोध किया था। इस वक्त ये मामले सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।
इस नरमी के क्या हैं मायनें
ऐसे में इस नरमी के कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव सपा-बसपा ने मिलकर लड़ा था। गेस्टहाउस कांड के 24 साल बाद सपा-बसपा एक साथ खड़ी थी, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद दोनों की राहें जुदा हो गईं। 4 जून 2019 को मायावती ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। इसी के साथ दोनों पार्टियों के बीच का राजनीतिक रि्ता टूटा गया। अब गठबंधन टूटने के 6 महीने बाद अचानक से मुलायम सिंह यादव के खिलाफ गेस्ट हाउस कांड में मुकदमा वापस लेने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
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