Uttarakhand: नैनीताल हाईकोर्ट (Nainital High Court) ने शत्रु संपत्ति मामले की सुनवाई करते हुए अतिक्रमणकारियों की याचिका की खारिज कर दी है. हाईकोर्ट ने अतिक्रमणकारियों द्वारा किये गए कब्जे पर राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे ध्वस्तीकरण को रोकने से इन्कार के बाद लोगों ने खुद घर खाली करना शुरु कर दिया. हाईकोर्ट की दो सदस्यी बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए अतिक्रमणकारियों से कब्जा खाली करने के लिए अंटर टेकिंग देने को कहा. कोर्ट के इस आदेश के बाद अतिक्रमणकारियों ने अंडर टेकिंग देने से इनकार कर दिया. 


अतिक्रमणकारियों के अंडर टेकिंग न देने से ये साफ हो गया कि अब नैनीताल मेट्रोपोल में शत्रु संपत्तियों पर बुलडोजर चलेगा. हाईकोर्ट की रोक से इंकार के बाद लोगों ने खुद घरों को खाली करना शुरु कर दिया है. नैनीताल में 134 लोगों ने शत्रु संपत्तियों पर कब्जा है, जिन पर अब बुल्डोजर चलेगा. हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अतिक्रमणकारियों ने अंडर टेकिंग देने से इंकार करते हुए दलील दलील दी कि उनका सालों से इस संपत्ति पर कब्जा है. उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी सरकार ने अतिक्रमण के खिलाफ कड़े रुख के बाद कई जगहों पर अवैध कब्जे लगातार हटाए जा रहे हैं. 


राज्या सरकार ने कोर्ट से क्या कहा?


मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल एसएन बाबुलकर और सीएस रावत ने कोर्ट को बताया कि अगस्त 2010 में सरकार ने शत्रु संपत्ति पर उनके मालिकों की उपस्थिति में कब्जा लिया था, उस कुल 116 कब्जाधारी शामिल थे. उन्होंने कोर्ट को कहा कि वर्तमान याचिकाकर्ता किस आधार पर इन संपत्तियों पर अपना कब्जा बता रहे हैं. वर्तमान में इनकी संख्या 134 हो गई और अब इन्हें यहां से हटाया जाए.  


दरअसल अतिक्रमण हटाने को लेकर याचिकाकर्ताओं को एसडीएम कोर्ट और सिविल कोर्ट से राहत नहीं मिलने पर, उन लोगों ने नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जहां याचिकाकर्ताओं एसडीएम कोर्ट और सिविल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते कहा कि नैनीताल की शत्रु संपत्ति पर उनका सालों से कब्जा रहा है. 


क्या है शत्रु संपत्ति?


आजादी के बाद देश से कई लोग पाकिस्तान में जाकर बस गए. इसके अलावा 1965 और 1971 के भारत- पाकिस्तान युद्ध को देखते हुए कई लोगों ने यहां से प्रवास किया. इन लोगों को देश छोड़ने के बाद उनकी प्रॉपर्टी छूट गई. ऐसी संपत्तियों को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया. इस संबंध में सरकार ने सितंबर 1959 में पहला आदेश जारी किया गया था. जबकि इस संबंध में दूसरा आदेश दिसंबर 1971 में जारी किया गया था. 


ये भी पढ़ें: Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी केस को लेकर इंतजामिया कमेटी ने फैसले पर जताई असहमति, कहा- 'हाईकोर्ट में देंगे चुनौती'