UP News: बुंदेलखंड को अपनी संस्कृतियों और लोक कलाओं के लिए जाना जाता है. दीपावली के अवसर पर होने वाला बुंदेलखंड का दिवारी नृत्य (Diwari dance) पुरे देश में प्रसिद्ध है. इस पारम्परिक नृत्य कला का प्रदर्शन दीपावली के बाद परेवा और द्विज के दिन होता है. बांदा जनपद के दिवारी नृत्य के कलाकार अपनी कला का लोहा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनवा चुके हैं. बुंदेलखंड की अनोखी कला यहां का परंपरिक दिवारी लोक नृत्य का प्रदर्शन करती हैं. 


पूर्व राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित
बुंदेलखंड में इस प्राचीन विधा की शुरुआत द्वापर युग से मानी जाती है और भगवान श्री कृष्ण के साथ गाय चराने वाले ग्वाल- बालों ने इसकी शुरुआत की थी. तभी से यह परंपरा बुंदेलखंड में प्रचलित है. वैसे तो यह नृत्य बुंदेलखंड में अक्सर कहीं न कहीं होता रहता है, लेकिन इसका मुख्य आयोजन दीपावली के दूसरे यानि परेवा और द्विज पर्व के दिन होता है. इस कला के प्रदर्शन के लिए दिवारी कलाकारों को काफी मेहनत करनी पड़ती है और इसके लिए वे महीनों पहले से इसका अभ्यास शुरू कर देते हैं. बांदा जनपद के दिवारी नृत्य के कलाकार पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं. जनपद के प्रसिद्ध दिवारी कलाकार रमेश पाल की अगुआई में बांदा की टीम 2005 में गणतंत्र दिवस की परेड में भी इस कला का प्रदर्शन कर चुकी है. जिसके लिए तत्कालीन राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा इन्हे सम्मानित भी किया जा चुका है.


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क्या रहा है इसका इतिहास 
बुंदेलखंड का दिवारी नृत्य शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के साथ गाय चराने वाले ग्वाल- बालों ने इसकी शुरुआत की थी. इसके अलावा कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं कि चंदेल शासन काल में इस अनूठी परंपरा की शुरुआत हुई थी. ताकि हर घर में एक वीर को तैयार किया जा सके.