Aligarh News: अलीगढ़ में एक कारोबारी का अलग शौक देखने को मिला है. सन 1984 से इस कारोबारी को कबूतर पालने का शौक था. छोटे बच्चों की तरह कबूतरों की देखभाल करता है. इन्हें क्या और कब खिलाना है, बीमारी में कौनसी दवा देनी और क्या इलाज कराना है इसकी उन्हें बहुत अच्छे तरीके से जानकारी है. ये कबूतर पूरे तरीके से ट्रेंड हैं और नीरज महेश्वरी के एक इशारे पर आसमान ने उड़ान भरने को हमेशा तैयार रहते हैं. उत्तर प्रदेश के साथ साथ अन्य राज्यों में जाकर यह कबूतर पहुँचकर फ्लाइंग प्रतियोगिता में कई बार ट्राफियां लाकर नीरज माहेष्वरी का नाम रोशन करते हैं.


कबूतरों से पहले संदेश भेजने का काम लिया जाता था, कबूतर अलग अलग तरीकों से एक दूसरी जगह संदेश लेकर जाते थे, पुराने जमाने मे कबूतरों से काम लिया जाता था लेकिन अब नीरज माहेश्वरी सिर्फ कबूतरों को पालते है नाकि व्यापार करते, वैसे तो अलीगढ़ में भी कबूतरों को पालने वालों की तादात है लेकिन कुछ तो ऐसे हैं जिनका प्रदेश ही नहीं देश भर में भी  हैं. देशी-विदेशी कबूतरों की वैरायटी भी नीरज के यहां देखने लायक है. अलीगढ़ के कबूतरों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर अलीगढ़ के साथ साथ देश मे परचम लहराया है


अलग अलग नस्लों के हैं ढ़ाई हजार कबूतर
दरअसल अलीगढ़ के शहर के बीचों बीच स्थित बन्ना देवी क्षेत्र के आइटीआइ रोड स्थित इंडस्ट्रीज इलाके में नीरज माहेश्वरी की हार्डवेयर की बड़ी सी फैक्ट्री है. फैक्ट्री के बाहर आपको सिर्फ बिल्डिंग नजर आएंगी लेकिन उन बिल्डिंगों के ऊपर आपको कबूतरों के आलीशान घर नजर आएंगे. दूसरी मंजिल से छठवीं मंजिल तक कबूतरों के लिए बनाए गए कमरे व लोहे के जाल के अंदर कबूतर ही कबूतर दिखेंगे. नीरज के पास ढाई हजार से अलग अलग नस्लों के नायाब कबूतर हैं.  इतनी संख्या व देश में किसी कबूतर बाज के यहां इतनी तादाद में नहीं हैं. 


कबूतरों को पालने का इतनी बड़ी और अच्छी व्यवस्था आपने कभी नही देखी होगी, इनके यहां ग्रेबाज, स्वर्ख, कलदमे, सफेद, हरे, काले, अंबलसरे, मद्रासी, पंजाबी, ललदमे, कासिनी,  पाकिस्तानी डब वाले कबूतर व अन्य अलग अलग तरह के  50 से अधिक कबूतरों की प्रजाति हैं. ललदमे कबूतर की पूंछ काफी लाल होती है. कल्सरे व तामड़े कबूतर इनके ही यहां मौजूद हैं. पाकिस्तानी डब कबूतर इनके अलावा किसी के पास मोजूद नहीं हैं. कबूतरों को आसमान में तय समय में उड़ाया जाता है. 


 



व्यापारी को मिल चुके हैं अवार्ड


क्या खाते है कबूतर
राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता के समय दूसरे शहरों के कबूतर बाजों के चार लोग अलीगढ़ आते हैं. यहां से चार लोग वहां जाते हैं. ये लोग कबूतरों के उडऩे के घंटे नोट करते हैं. जिसके कबूतर अधिक समय तक उड़ते हैं वो ही विजेता घोषित होता है. जिला स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में भी यही होता है. नीरज ग्रेबाज कबूतरों से मेरठ, मुरादाबाद, मथुरा, शिकोहाबाद, गुन्नौर आदि अन्य राज्यों व शहरों में जाकर कबूतर बाजों से हुए मुकाबले को काफी बार जीत चुके हैं.


नीरज के यहां कबूतरों को प्यार और दुलार के साथ बच्चों की तरह पालन पोषण किया जाता है. उनके खान-पान और सुरक्षा पर विशेष ध्यान उनके द्वारा दिया जाता है. गर्मी में कबूतरों को सरसों, ग्लूकोज, गेहूं की छनन आदि खाने में परोसा  जाता है. जबकि सर्दियों में बाजरा के साथ अन्य दाना उनको दिया जाता है. प्रतियोगिता के दिनों में कबूतरों को देशी घी में बनी सोयाबीन की रोटी, बादाम, खमीरा व अन्य  मेवा खिलाकर तैयार किया जाता है,और उस दौरान इनके खान पान से लेकर आराम का काफी ध्यान रखा जाता है.


क्या कहते है नीरज माहेश्वरी
नीरज माहेश्वरी के द्वारा जानकारी देते हुए बताया गया,कबूतरों को पालने का शौक उनके द्वारा 25 कबूतरों से शुरू किया आज 5000 से अधिक कबूतर यहां मौजूद हैं. यहां अलग अलग नस्ल के कबूतर हैं. मेरी सुबह की शुरुआत कबूतरों के साथ ही शुरु होती है. उनके द्वारा कबूतरों का विशेष ध्यान रखा जाता है.जिसके रहन सहन के लिया अलग व्यवस्था है,जिस हिसाब से लोगों के अलग फ्लैट होते है ठीक उसी तरह कबूतरों के प्रजातियों के हिसाब से अलग अलग रहने की व्यवस्था है.


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