सही आबकारी नीति न होने के चलते 24, 806 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान : कैग रपट
उत्तर प्रदेश में आबकारी विभाग की खामी से सरकार को राजस्व की हानि हुई है। कैग की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। इसमें शराब के उत्पादन और बिक्री को आधार बनाकर रिपोर्ट तैयार की गई है।

लखनऊ, एजेंसी। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग में 2008-2018 के दौरान कई खामियों का पता लगाया है, जिसके चलते सरकार को 24,805.96 करोड़ रूपये का नुकसान होने का अनुमान है। राज्य विधानसभा में शुक्रवार को कैग की रपट रखी गयी। यह रपट राज्य में इस दौरान शराब के उत्पादन और बिक्री मूल्य निर्धारण से संबंधित है। इसमें 24,805.96 करोड़ रूपये के वित्तीय नुकसान का अनुमान जताया गया है।
रपट में कहा गया कि 2009-10 की आबकारी नीति के अनुसार उत्तर प्रदेश में पड़ोसी राज्यों से शराब तस्करी को रोकने के लिए मेरठ में विशिष्ट क्षेत्र का सृजन किया गया। हालांकि इसमें दो सीमावर्ती जिले अलीगढ और मथुरा शामिल नहीं किये गये जबकि सात ऐसे जिलों को रखा गया जिनकी सीमाएं किसी पड़ोसी राज्य की सीमाओं से सटी नहीं थीं। अत: विशिष्ट जोन का सृजन बिना किसी स्पष्ट नीति के किया गया। विशिष्ट जोन के सृजन का हालांकि वांछित असर नहीं था, फिर भी इसे अगले नौ साल तक जारी रखा गया।
इसमें कहा गया कि बिना किसी वर्षवार खुली निविदा के, सभी चार जोनों में फुटकर दुकानों का लाइसेंस नौ साल (2009-18) तक लगातार नवीनीकृत किया गया। इससे शराब के उत्पादन एवं उचित दर पर बिक्री में खुली प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो गयी।
कैग ने कहा कि राज्य की आबकारी नीतियों (2008-18) ने डिस्टिलरी और ब्रुअरीज को आईएमएफएल (इंडियन मेड फारेन लिकर) तथा बीयर की डिस्टिलरी कीमत एवं ब्रुअरी कीमत निर्धारण में अनियंत्रित विवेकाधिकार की अनुमति दी। इससे उन्हें शराब (आईएमएफएल और बीयर) की समरूप एवं समान ब्रांडों की डिस्टिलरी कीमत एवं ब्रुअरी कीमत में पड़ोसी राज्यों की तुलना में बहुत अधिक (46 तथा 135 प्रतिशत) वृद्धि करने की अनुमति मिल गयी।
फलस्वरूप उन्हें 2008-18 के दौरान राज्य के राजकोष एवं उपभोक्ताओं की कीमत पर 5525.02 करोड़ रूपये का अनुचित लाभ मिला। अधिक डिस्टिलरी कीमत के कारण थोक एवं फुटकर विक्रेताओं (आईएमएफएल के मामले में) को भी 1643.61 करोड़ रूपये का अनुचित लाभ हुआ।
रपट में कहा गया कि 2008-18 के दौरान आईएमएफएल की 180 मिलीलीटर (एमएल) और 90 एमएल माप की बोतलों की डिस्टिलरी कीमत की गलत गणना क्रमश: 187.50 एमएल एवं 93.75 एमएल पर की गयी। आबकारी आयुक्त द्वारा हालांकि आबकारी शुल्क की गणना 180 एमएल और 90 एमएल की दर से की गयी थी।
आबकारी विभाग इस गलती को दस साल तक पकड़ नहीं पाया और 2008-18 की अवधि में 227.98 करोड़ रूपये का अतिरिक्त आबकारी शुल्क नहीं प्राप्त हो सका।
इसमें कहा गया कि देशी शराब की न्यूनतम गारंटी क्वालिटी (एमजीक्यू) का 2011-18 के दौरान कम निर्धारण किये जाने से 3674.80 करोड़ रूपये की संभावित राजस्व क्षति हुई।
कैग ने कहा कि देशी शराब की ही तरह आबकारी विभाग द्वारा आईएमएफएल और बीयर के उठान के लिए एमजीक्यू निर्धारित नहीं किये जाने से 13,246.97 करोड़ रूपये की संभावित राजस्व क्षति हुई।
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