फूलन देवी की सियासी कहानी लिखनेवाला मिर्जापुर, समझिए जातिगत समीकरण का मूड
दस्यु सुंदरी फूलन देवी की राजनीतिक यात्रा में मिर्जापुर की अहम भूमिका थी। फूलन देवी सपा के टिकट से दो बार यहां से सांसद बनी थी।
मिर्जापुर, एबीपी गंगा। मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के उन चंद चुनिंदा संसदीय सीटों में से एक है जिसकी अपनी ही राजनीतिक महत्ता है। यहां से अपना दल (सोनेलाल) की नेता अनुप्रिया सिंह पटेल सांसद हैं, इस पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था। यूपी के 75 जिलों में से एक मिर्जापुर उत्तर में संत रविदास नगर और वाराणसी से तो पूर्व में चंदौली से, दक्षिण में सोनभद्र सो और पश्चिमोत्तर में प्रयागराज से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश के 80 संसदीय सीटों में मिर्जापुर की सीट संख्या 79 है।
मिर्जापुर शब्द 'मिर्जा' से लिया गया है जो फारसी शब्द 'ट्रिप कलचू' का अनुवाद है, जिसका अर्थ है शासक या अमीर का बच्चा। मिर्जापुर जिला मिर्जापुर डिविजन का एक हिस्सा है। एक समय सोनभद्र उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला था, लेकिन 1989 में विभाजन कर मिर्जापुर को नया जिला बना दिया गया। इस जिले में 4 तहसील हैं जो 12 ब्लॉक में बंटे हैं। मिर्जापुर जिले की आबादी करीब 25 लाख है जो यूपी का 33वां सबसे घनी आबादी वाला जिला है।
इस बार भी अनुप्रिया पटेल भाजपा की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल पटेल) से उम्मीदवार हैं। उनको चुनौती देने के लिए सपा-बसपा के गठबंधन उम्मीदवार राम चरित्र निषाद चुनावी मैदान में हैं। सपा ने आखिरी वक्त में इस सीट से अपना उम्मीदवार बदला है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि जहां तक मिर्जापुर के संसदीय इतिहास का सवाल है कि तो इसकी शुरुआत 1957 में हुई थी। तब से लेकर अब तक 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं जिसमें 5 बार कांग्रेस को जीत मिली, जबकि भाजपा के खाते में यह सीट 2 बार आई, 2014 में भाजपा की साझीदार अपना दल पार्टी को जीत मिली। 4 बार समाजवादी पार्टी यहां से जीत हासिल कर चुकी है, वहीं बहुजन समाज पार्टी के खाते में 2 बार यह सीट आई है। हालांकि एक समय कांग्रेस का यहां दबदबा हुआ करता था, लेकिन 1984 में मिली जीत के बाद कांग्रेस को यहां से अपनी पहली जीत का इंतजार है। 1984 में उमाकांत मिश्रा के बाद से कांग्रेस यहां से जीत नहीं सकी है। तब से लेकर अब 34 साल के इतिहास में 5 दलों ने अपनी जीत की उपस्थिति दर्ज कराई है।
1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के जॉन एन विल्सन ने जीत हासिल की थी। दस्यु सुंदरी फूलन देवी इसी सीट से 2 बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रही थीं। 1990 के बाद से राजनीतिक परिदृश्य की बात की जाए तो 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से पहली बार जीत हासिल की और वीरेंद्र सिंह लोकसभा पहुंचे। इससे पहले 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ को जीत मिली थी।
1996 और 1999 के लोकसभा चुनाव में सपा की फूलन देवी ने जीत हासिल की थी। हालांकि फूलन को 1998 में भाजपा के वीरेंद्र सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा, लेकिन एक साल बाद 1999 में फूलन ने वापसी करते हुए वीरेंद्र को हरा दिया। 2001 में फूलन की हत्या के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में सपा के ही टिकट पर रामरती भिंड ने जीत हासिल की। 2004 में बसपा के नरेंद्र कुमार कुशवाहा यहां से चुनाव जीत गए। 2009 में भी सपा के बालकुमार पटेल ने जीत हासिल की।
सामाजिक ताना-बाना 2001 की जनगणना के मुताबिक मिर्जापुर की आबादी 24,96,970 लाख रही, जिसमें पुरुषों की संख्या की आबादी करीब 13.1 लाख (53%) और महिलाओं की आबादी 11.8 लाख ((47%)) थी। करीब 25 लाख की आबादी वाले इस लोकसभा क्षेत्र में सामान्य वर्ग की आबादी 18,15,709 लाख है, तो अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी 6,61,129 और अनुसूचित जनजाति की आबादी 20,132 है।
धर्म आधारित आबादी के आधार पर देखा जाए तो यहां पर हिंदूओं की आबादी सबसे ज्यादा है। उनकी संख्या 22 लाख से अधिक है, जबकि मुस्लिमों की संख्या 1 लाख 95 हजार है तो ईसाइयों की आबादी तेइस सौ से थोड़ी ज्यादा है। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं और इनमें से सिर्फ छानबे ही सुरक्षित सीट के रूप में दर्ज है। 403 सदस्यीय यूपी विधानसभा में 96 विधानसभा क्षेत्र की सीट की संख्या 395 है और यह सुरक्षित सीट है। इस विधानसभा सीट पर अपना दल (सोनेलाल) का कब्जा बरकरार है। 2017 के विधानसभा चुनाव में अपना दल (सोनेलाल) के उम्मीदवार राहुल प्रकाश ने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार दानेश्वर को 63,468 मतों के अंतर से हराया था। छानबे के अलावा मिर्जापुर भी विधानसभा क्षेत्र है और इसकी सीट संख्या है 396। यहां से भारतीय जनता पार्टी के रत्नाकर मिश्रा ने 2017 के चुनाव में जीत हासिल की थी, उन्होंने समाजवादी पार्टी के कैलाश चौरसिया को 57,412 मतों के अंतर से हराया। मिर्जापुर के अलावा मझावन विधानसभा सीट पर भी भाजपा का कब्जा है। सुचिश्मिता मौर्या ने 2017 में यहां से विधानसभा चुनाव जीता था।
चुनार विधानसभा क्षेत्र पर भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कब्जा है। अनुराग सिंह ने पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के जगतम्बा सिंह पटेल को 62,228 वोटों से हराया था। वहीं मरिहान विधानसभा सीट (संख्या 399) पर भाजपा के रामा शंकर सिंह ने कांग्रेस के लालितेश पति त्रिपाठी को 46,598 मतों से हराकर जीत हासिल की थी।
2014 का जनादेश
2014 का आम चुनाव भाजपा ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लड़ा और उत्तर प्रदेश में उसका अपना दल के साथ गठबंधन था और इसी गठबंधन के तहत उसने मिर्जापुर की सीट अपना दल को सौंप दिया, और इस दल ने यहां से अपनी नेता अनुप्रिया सिंह पटेल को मैदान में उतारा। अनुप्रिया ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के समुद्र को 2,19,079 मतों के अंतर से हरा दिया। मैदान में कुल 23 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। चुनाव में कांग्रेस तीसरे और सपा चौथे स्थान पर रही।
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
2014 में पहली बार संसद पहुंचने वाली अनुप्रिया पटेल बाद में जून, 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री भी बनीं। मंत्री बनने से पहले तक उनकी संसदीय सक्रियता का सवाल है तो उनकी लोकसभा में मौजूदगी 90 फीसदी रही, जबकि राष्ट्रीय औसत 80 फीसदी है। जून, 2016 से पहले तक अनुप्रिया ने अपने संसदीय कार्यकाल में 49 बहस में हिस्सा लिया था। 16वीं लोकसभा के पहले संसदीय सत्र में उनकी उपस्थिति 100 फीसदी रही। प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बाद मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र में अगली लड़ाई तेज हो जाएगी। यहां की सांसद अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री भी हैं, ऐसे में मोदी सरकार की कोशिश होगी कि प्रदेश के अन्य सीटों की तरह यहां से भी जीत हासिल करे, लेकिन बदलते समीकरण के बाद यहां की लड़ाई आसान नहीं कही जा सकती।