लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद के मालिकाना हक का फैसला हो गया तो अब 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) गिराए जाने के मामले में भी फैसले की घड़ी आ गई है. 27 साल तक चले इस मुकदमे में 30 सितंबर को सीबीआई की विशेष अदालत अपना फैसला सुनाएगी. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद ने जो वेग पकड़ा उसने पूरे देश को हिला दिया था. कारसेवकों ने विवादित ढांचा कथित बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. 6 दिसंबर 1992 को हुई इस घटना में अब फैसले की घड़ी आ गई है.
इन एफआईआर पर दर्ज केस में आना है फैसला
6 दिसंबर को हुई घटना में थाना राम जन्मभूमि में दो एफआईआर दर्ज कराई गई. पहले एफआईआर 6 दिसंबर 1992 को शाम 5:15 पर आरजेबी थाने के थानेदार ने अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज करवाई. दूसरी एफआईआर आरजेबी थाने में 5:25 पर सब इंस्पेक्टर गंगा प्रसाद तिवारी की तरफ से लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, विनय कटियार और अशोक सिंघल को नामजद करते हुए दर्ज कराई गई. इन दो एफआईआर के अलावा 47 अन्य लोगों ने भी एफआईआर दर्ज करवाई जो हिंसा के शिकार हुए, जिनके वाहन जलाए गए,कैमरे तोड़े गए, दुकानों में आग लगाई गई.
सीबीआई को सौंपी गई जांच
सरकार ने 12 दिसंबर 1992 को मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी और अगले ही दिन यानी 13 दिसंबर 1992 को ये जांच सीबीआई को ट्रांसफर हो गई. सीबीआई ने इस मामले में दर्ज हुई कुल एफआईआर में जांच शुरू की.
पहली सुनवाई ललितपुर में बनाई गई स्पेशल कोर्ट से शुरू हुई
इस मामले की पहली सुनवाई ललितपुर में बनाई गई स्पेशल कोर्ट से शुरू हुई. 8 जुलाई 1993 को स्पेशल कोर्ट रायबरेली ट्रांसफर की गई. मामले की सुनवाई के लिए दूसरी स्पेशल कोर्ट लखनऊ में बनी. सीबीआई ने जांच करते हुए चार्जशीट 5 अक्टूबर 1993 को 49 लोगों के खिलाफ लगाई. 8 सितंबर 1993 को लखनऊ में बनाई गई स्पेशल कोर्ट में आरजेबी थाने की एफआईआर 198 /12 को छोड़ सभी 48 केस लखनऊ ट्रांसफर कर दिए गए.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
2010 तक इस मामले की सुनवाई इसलिए नहीं हो सकी क्योकि ये तय नहीं हो पा रहा था कि ट्रायल कहां शुरू हो. रायबरेली की कोर्ट में या लखनऊ में बनाई गई स्पेशल कोर्ट में. 19 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने 2 साल के अंदर इस मामले का ट्रायल पूरा करने का आदेश सुना दिया. 30 अप्रैल 2017 को रायबरेली कोर्ट में चल रहा इकलौता केस भी लखनऊ ट्रांसफर कर दिया गया. इस तरह अयोध्या प्रकरण के सभी मामलों की सुनवाई लखनऊ में बनी सीबीआई की विशेष अदालत में शुरू कर दी गई.
17 आरोपियों का ट्रायल शुरू होने से पहले ही निधन हो गया
सीबीआई की तरफ से कोर्ट में दाखिल की गई चार्जशीट में 49 लोगों को आरोपी बनाया गया जिनमें से गिरिराज किशोर, अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया समेत 17 आरोपियों का ट्रायल शुरू होने से पहले ही निधन हो गया और अब फैसले की घड़ी आते-आते 32 आरोपियों पर फैसला सुनाया जाना है. इन 32 आरोपियों में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, चंपत राय, साध्वी ऋतम्भरा, साध्वी उमा भारती, ब्रजभूषण शरण सिंह, जयभान सिंह पवैया, जय भगवान गोयल, राम चन्द्र गोयल, राम चन्द्र खत्री, आरएन श्रीवास्तव, विनय कटियार, राम विलास वेदांती, महंत धर्मदास, संतोष दुबे, पवन पांडेय, विजय बहादुर, गांधी यादव शामिल हैं.
351 गवाह कोर्ट में पेश किए गए
अदालत में चले 27 साल के इस केस में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 1026 गवाहों के आधार पर चार्जशीट लगाई और 351 गवाह आरोप साबित करने के लिए कोर्ट में पेश किए गए. जिनमें से 57 गवाह रायबरेली कोर्ट में पेश किए गए और 294 गवाह लखनऊ की विशेष अदालत में पेश किए गए.
कोर्ट का तीन बार टाइम बढ़ाया गया
इस दौरान इस मामले में सुनवाई कर रही कोर्ट का तीन बार टाइम बढ़ाया गया. 19 अप्रैल 2017 को 2 साल का वक्त मिला था. 19 अप्रैल 2019 को 9 महीने के लिए टाइम बढ़ाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 31 अगस्त 2020 तक फैसला सुनाने को कहा और फिर आखिरी बार 30 सितंबर 2020 तक फैसला सुनाने का आदेश दिया.
रिटायरमेंट के बाद मिला सेवा विस्तार
31 अगस्त को आरोपियों की तरफ से लिखित तौर पर अंतिम बहस दाखिल की गई और अब 30 सितंबर को इस मामले पर सीबीआई की विशेष अदालत के जज सुरेंद्र कुमार यादव अपना फैसला सुनाएंगे. अयोध्या प्रकरण की विशेष अदालत में 30 सितंबर को फैसला सुनाने वाले सुरेंद्र कुमार यादव भी पहले जज होंगे जिनको रिटायरमेंट के बाद सेवा विस्तार मिला है. इतना ही नहीं अयोध्या केस की सुनवाई करने के चलते उनका तबादला तक रद कर दिया गया.
ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे सुरेंद्र यादव
एडीजे के तौर पर सुरेंद्र यादव ने मामले की सुनवाई की तो जिला जज बनाकर बदायूं ट्रांसफर कर दिया गया. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या प्रकरण की संवेदनशीलता को देखते हुए ट्रांसफर रद कर दिया और आदेश सुनाया के मामले की सुनवाई तक सुरेंद्र यादव का तबादला नहीं होगा. अगस्त 2019 को सुरेंद्र यादव रिटायर हो गए तो फैसला सुनाने के लिए उनको 11 महीने का सेवा विस्तार दिया गया. सुरेंद्र यादव अपने सेवा विस्तार के आखरी दिन 27 साल से चले आ रहे बाबरी विध्वंस मामले में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे.
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