Padma Shri Award 2021: आज की भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास दूसरे के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है. लेकिन इसी समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सिर्फ और सिर्फ दूसरों के बारे में ही सोचते हैं और उनके लिए जीते भी हैं. इसी तरह के एक शख्स हैं अयोध्या के मोहम्मद शरीफ, जो जाति-पाति और मजहब से दूर उन लावारिसों के अंतिम संस्कार के लिए तत्पर रहते हैं. जिनके या तो अपनों की पहचान नहीं हो पाती या फिर जिनका अपना कोई नहीं होता. शरीफ, जिन्हें राष्ट्रपति के द्वारा पद्मश्री सम्मान मिला है, यह उनके अदम्य त्याग का परिणाम है. आज हम उनके त्याग और उसके पीछे छुपी पूरी कहानी से आपको परिचित कराते हैं. 


लगभग 78 वर्ष के हो चुके अयोध्या के मोहम्मद शरीफ जब पद्मश्री अवार्ड के लिए दिल्ली पहुंचे तो उनका शानदार स्वागत हुआ. खुद प्रधानमंत्री ने उनसे मिलकर उनका हालचाल पूछा और उन्हें गले लगा कर उनके त्याग को सराहा. दिल्ली से अयोध्या पहुंचे मोहम्मद शरीफ का यूं तो स्वागत रेलवे स्टेशन से ही शुरू हो गया और यह सिलसिला घर तक जारी रहा. क्या सत्ता और क्या विपक्ष, हर कोई उनके घर जाकर उनसे मिलकर बधाई दे रहा है और उनकी तारीफ कर रहा है. लेकिन मोहम्मद शरीफ उस समय को लेकर भावुक हो जाते हैं जब पद्मश्री अवार्ड मिलने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिलने आए थे. काफी देर तक उनके साथ रहे. उनसे गले मिले. हालचाल पूछा और कहा हिंदू हो या मुस्लिम दोनों के अंतिम संस्कार का जो कार्य अयोध्या में आपने किया, वह एक मिसाल है और कभी भी जरूरत पड़े फोन मिला दीजिएगा. 


अबतक करीब 5 हजार लावारिस शवों का कर चुके अंतिम संस्कार 


पेशे से साइकिल मिस्त्री रहे मोहम्मद शरीफ की नजर में ना तो कोई हिंदू है और ना कोई मुसलमान. यही वजह है कि अब तक उन्होंने लगभग 5000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है. इसमें जितने हिंदू हैं लगभग उतने ही मुसलमान. खास बात यह है कि हिंदू लाशों का अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज से और मुस्लिम शवों का अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति रिवाज से करते हैं. कहते हैं कुछ घटनाएं इंसान के जीवन को बदल कर रख देती है. मोहम्मद शरीफ के जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. सालों पहले मिला उनको एक गहरा जख्म आज मिसाल बन गया. सालों पहले सुल्तानपुर जनपद गया उनका जवान बेटा लापता हो गया. बहुत ढूंढने के बाद उसका कोई पता नहीं चला. कुछ दिन बाद रेलवे लाइन के किनारे एक लाश की कपड़ों से पहचान हुई तो पता चला कि यह लाश मोहम्मद शरीफ के बेटे रईस की थी, जिसे पुलिस ने लावारिस समझकर दफना दिया. अपने बेटे का अंतिम संस्कार न कर पाने की पीड़ा ने मोहम्मद शरीफ को इतना झकझोर दिया कि उस दिन के बाद किसी के भी बेटे को लावारिस दफन ना होने देने की उन्होंने कसम खा ली और उस दिन के बाद मोहम्मद शरीफ के जीवन का यही लक्ष्य बन गया. अब उनके बेटे को भी अपने पिता के दिखाए राह पर चलना चाहते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं.


हर कोई करना चाहता है चाचा शरीफ से मुलाकात 


कहते हैं जिसका कोई नहीं होता उसका खुदा होता है. जिंदगी किस मोड़ पर साथ छोड़ दे क्या पता. क्या मालूम मरने के बाद इस शरीर का क्या हश्र हो. अपनों के कंधे नसीब हो या फिर लावारिस की तरह उसकी दुर्गति हो जाए लेकिन कोई शव लावारिस न रहे, यही मंत्र और कसम मोहम्मद शरीफ को इस मुकाम पर ले आई है. जहां उन्हें समाज से सम्मान मिल रहा है तो सरकार से पद्मश्री अवार्ड यूं तो किसी भी अच्छे कार्य को करने में कई तरह की मुश्किलें आती है और उसी तरह की मुश्किलें मोहम्मद शरीफ के सामने भी आएंगे लेकिन उनके अटूट जज्बे के सामने सब कमजोर पड़ गया लावारिस लाशों का मसीहा बनने के बाद चाचा शरीफ को जो सुकून हासिल हुआ उसने उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल दिया. आज विधायक हो या अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के नेता हर कोई मोहम्मद शरीफ से मिलना चाहता है और उनकी सराहना करने को लालायित है. 


अयोध्या से बीजेपी विधायक ने दी अपनी प्रतिक्रिया 


अयोध्या से बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता ने कहा, 'प्रधानमंत्री गले लगा रहे हैं यह हम लोगों के लिए सम्मान की बात है. हम लोग भाग्यशाली हैं कि अयोध्या विधानसभा से पद्मश्री अवार्ड शरीफ चाचा को मिला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके लिए बधाई, राष्ट्रपति महोदय को भी बधाई और इसके माध्यम से अयोध्या से एक बहुत अच्छा संदेश हिंदू मुस्लिम एकता का भी गया. यह बहुत महत्वपूर्ण बात है क्योंकि अयोध्या सभी धर्मों का स्थान रहा है और निश्चित रूप से चाचा शरीफ की सेवाएं अभूतपूर्व हैं. हम लोग हमेशा शरीफ चाचा को प्रोत्साहित करते थे और जो भी मदद हो सकती थी वह करते रहे. यह सौभाग्य का अवसर हम लोगों को मिला है पद्मश्री के रूप में उनका सम्मान करने का. आज मैं हृदय से उनका सम्मान करता हूं और आभार व्यक्त करता हूं इस पूरे नगर की जनता की तरफ से.'


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