Gorakhpur News: नवरात्रि पर तरकुलहा माता मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जुटी है. ऐसा कहा जाता है कि मां के दरबार में जो भी मुराद मांगी वह पूरी होती है. चैत्र नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. यही वजह है कि चैत्र नवरात्रि के हर दिन यहां भक्तों का सैलाब देखने को मिलता है. जंगल और तरकुल के पेड़ से आच्छादित क्षेत्र में पिंडी बनाकर अमर शहीद बंधु सिंह पूजा करते थे. गुरिल्ला युद्ध कर अंग्रेज अफसरों को बंदी बनाकर उनकी मां की प‍िंडी के सामने बलि दे देते थे. अंग्रेजों ने बाद में उन्हें फांसी दे दी थी.

गोरखपुर से 25 किलोमीटर पूरब में मां तरकुलहा देवी के मंदिर पर मुराद मांगने दूर-दराज से लोग आते हैं. अपनी मनोकामना पूरी होने की मन्नत मांगते हैं. माँ सबकी मनोकामना पूरी करती है. यहां बलि देने की भी परंपरा है. चैत्र नवरात्रि के पहले दिन भक्तों की भीड़ माता के दरबार में उमड़ पड़ी है. इस मंदिर का आजादी की भूमिका में बहुत बड़ा योगदान रहा है. क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में रहने लगे. जंगल में तरकुल के पेड़ों के बीच में पिंडी स्थापित की.


क्या बोले मंदिर के पुजारी
मंदिर के पुजारी पंडित दिनेश त्रिपाठी बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में शहीद क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह इस मंदिर पर गुरिल्ला युद्ध कर कई अंग्रेज अफसरों की बलि देते रहे हैं. जब अंग्रेजो ने बाबू बन्धु सिंह को पकड़ा, तो फांसी की सजा सुनाई. शहर के अलीनगर चौराहा पर उन्हें फांसी दी गई, तो फांसी का फंदा सात बार टूट गया. आठवीं बार जब फांसी लगी, तो बाबू बन्धु सिंह ने मां का आह्वान किया कि हे माँ अब उन्हें अपने चरणों में जगह दें. उधर फांसी हुई, इधर तरकुल का पेड़ टूटा और रक्त की धार बहने लगी. तबसे इस मंदिर पर लोगों की आस्था जुड़ गई.

श्रद्धालुओं ने क्या बोला
अश्वनी गुप्ता बताते हैं कि वे कई साल से यहां पर आ रहे हैं. वे नवरात्रि पर माता के दरबार में मत्था टेकने के लिए आ रहे हैं. वे बताते हैं कि हर नवरात्रि में वे यहां पर आते हैं. यहां पर माता के प्रति लोगों की आस्था है. नवरात्रि पर अधिक भीड़ होती है. शकुंतला बताते हैं कि चौरीचौरा में तरकुलहा देवी के दरबार में बचपन से आ रहे हैं. माता के प्रति बहुत से लोगों की श्रद्धा है. वे हर साल नवरात्रि पर यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं. रमेश कुमार बताते हैं कि वे कई साल से यहां पर आ रहे हैं. वे बताते हैं कि शहीद बंधु सिंह ने पिंडी की स्थापना की थी. यही वजह है कि इस मंदिर की बहुत मान्यता है.


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