आज रामनवमी है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था, हर साल इस तिथि को राम नवमी या राम जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। आज के दिन देवी मां के नौवें स्वरूप मां सिद्धीदात्री का पूजन किया जाता है। हम आपको बताते हैं कि मां की अराधना किस प्रकार करें व किस मंत्र का जाप करें।


मां का यह रूप सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं। मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था।


पूजा विधि


सर्वप्रथम कलश की पूजा व उसमें स्थापित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। रोली, मोली, कुमकुम, पुष्प चुनरी आदि से मां की भक्ति भाव से पूजा करें।
हलुआ, पूरी, खीर, चने, नारियल से माता को भोग लगाएं। इसके पश्चात माता के मंत्रों का जाप करना चाहिए।


इस दिन नौ कन्याओं को घर में भोजन करना चाहिए। कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए।


नव-दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम है तथा इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस तरह से की गई पूजा से माता अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होती है। भक्तों को संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


देवी सिद्धिदात्री का स्‍वरूप



सिद्धियों को देने वाली देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य और बेहद आकर्षक है। माता चार भुजाधारी हैं और उनके एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण किए हुए है। देवी का वाहन सिंह है और माता कमल पुष्प पर भी विराजमान है।


ध्यान मंत्र


वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।


कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥


स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।


शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥


पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।


मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥