Chhattisgarh News: भगवान फ्यूंला नारायण के कपाट आज श्रदालुओं के लिए खोल दिया गया है. आज भेटा, भरकी, गवाना, अररोशी सहित उर्गम घाटी से दर्जनों लोग कपाट खोलने फ्यूला नारायण धाम पहुचे. महिला पुजारी फ्यूंला पार्वती देवी भगवान का फूल श्रृंगार किया. इस पौराणिक मंदिर में ठाकुर जाति का पुजारी होता है और यहां उगने वाले विशेष फूल 'फ्यूंला' की वजह से इससे फ्यूंला नारायण कहा जाता है. दक्षिण शैली में बने इस पौराणिक मंदिर की खासियत यह है कि यहां पुजारी के बजाय, महिला भगवान नारायण का फूलों से श्रृंगार करती है.
सुबह 11:43 बजे खोले गए कपाट
चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से लगभग दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान फ्यूंला नारायण का अत्यन्त रमणीक धाम है. जिसके कपाट आज सुबह 11:43 बजे खोल दिये गए हैं. शनिवार सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर भर्की भूमियाल मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई और भूमियाल देवता की अगुवाई में सैकड़ों ग्रामीण समेत श्रदालु फ्यूंला नारायण धाम के लिए रवाना हुए. मंदिर के पुजारी को भूमियाल देवता के अवतारी पस्वा ने घंटी और चिमटा दिया. ये घंटी और चिमटा दयान चिंतन और चेतन को दिया जाता है. यहां पर कपाट खुलने से लेकर बन्द होने तक महिला पुजारी भगवान फ्यूल नारायण का विशेष फूलों से श्रृंगार करती है. भगवान नारायण का श्रृंगार महिला करती है, इसीलिए महिला पुजारी को फ्यूलयांण कहते हैं.
महिलाएं भगवान को फूलों से श्रृंगार कराती हैं
मंदिर के कपाट खुलने पर भगवान नारायण के स्नान के बाद फ्यूंला को फूलों से श्रृंगार किया जाता है. इससे पहले ग्रामीण अपनी गायों को लेकर फ्यूंला नारायण पहुंचते हैं और इन्हीं गायों के दूध और मक्खन का भगवान को भोग लगाया जाता है. खास बात यह है कि यहां पुजारी की जगह महिलाएं भगवान का श्रृंगार करती हैं. जिसके बाद पुजारी, श्रृंगार करने वाली महिला और गाय कपाट बंद होने तक फ्यूंला नारायण मंदिर में रहते हैं. भगवान को हर दिन तीनों पहर भोग लगता है.
इस बार भगवान नारायण का श्रृंगार गोदांबरी देवी ने किया. उन्होंने कहा कि यह अधिकार महिलाओं को पीढ़ियों से मिला हुआ है. फ्यूंला नारायण मंदिर के पुजारी रघुबीर सिंह बताते हैं कि परंपरा के अनुसार मंदिर के कपाट श्रवण संक्रांति को खुलते हैं और डेढ़ माह बाद नंदा अष्टमी को बंद कर दिए जाते हैं.
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