उत्तराखंड के जोशीमठ में प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी पैनखंडा पट्टी के ग्राम सेलंग में रम्माण का आयोजन किया गया. वर्ष के बैशाख माह में ग्राम सेलंग की संयुक्त पंचायत इस मेले का आयोजन करती है. बैशाख माह की संक्रांति से इस मेले की शुरुआत होती है और विभिन्न चरणों में भूमियाल देवता की पूजा और हर दिन चावल से बने भात का भोग लगाया जाता है जिसमें गांव का प्रत्येक परिवार पूजा में सम्मिलित होता है. 


कौन सा समय निकाला गया
इस मेले का समापन सांस्कृतिक विरासत "रम्माण" के साथ होता है. रम्माण मेले की तिथि ग्राम पंचायत की संयुक्त बैठक में निकाली जाती और पंचायत द्वारा ऐसे दिन और वार को तय किया जाता है जिसमें दिन महीने का बेजोड़ दिन और वार रविवार या बुधवार हो. इसी क्रम में इस साल पंचायत ने 11 गते बैशाख, रविवार का समय निकला. रम्माण मेला पैनखंडा की पौराणिक सांस्कृतिक विरासत ही नहीं बल्कि यहां की प्राचीन जीवन पद्धति है, लोक की संस्कृति है. 


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प्रार्थना की जाती है
क्षेत्र के ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोग इस मेले को देखने गांव में आते हैं और स्थानीय देवी-देवता "भूमियाल" से प्रार्थना करते हैं कि साल में उगने वाली फसल अच्छी हो और इसपर किसी प्रकार का दैवीय खतरा पैदा न हो. रम्माण मेले में मुख्यतः गणेश, राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान ढोल की 18 तालों पर नृत्य, सूर्य, कानडु, ईश्वर, गाना-गानी, माल मल युद्ध नृत्य होता है और चोर का पात्र सबका मनोरंजन करता है. 


लोगों की भीड़ उमड़ी
अंत में भूमियाल देवता प्रकट होते हैं और मेले में आये सभी भक्तों को आशीर्वाद देकर सालभर के लिए अपने मूल स्थान में विराजमान हो जाते हैं. पिछले दो वर्षों से कोरोना संक्रमणकाल के पाबंदियों की वजह से गांव द्वारा इस मेले का आयोजन नहीं किया गया और सांकेतिक रूप से भूमि क्षेत्रपाल देवता की पूजा की गई जिस कारण इस वर्ष मेले में भारी संख्या में भीड़ उमड़ पड़ी और देव भक्तों में खासा उत्साह भी देखने को मिला. 


गांव वाले ही करते हैं आयोजन
सैकड़ों की संख्या में लोग इस मेले का गवाह बने. वर्तमान में स्थानीय ग्रामीण अपने व्यक्तिगत संसाधनों से ही इस मेले का आयोजन कर रहे हैं और हर वर्ष मेले अपनी रीति-नीति से मना रहे है. पौराणिक और पारंपरिक होने के बाद भी सरकारों द्वारा इसके संरक्षण और लोक संस्कृति को बचाये रखने के लिए कोई कार्य नहीं किया गया है.


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