UP News: समुद्र तल से 6000 फीट ऊंचे नेपाल के पोखरा के गंडकी नदी के तट से लाया जा रहा शालिग्राम (Shaligram) पत्थर करोड़ों वर्ष पुराना बताया जा रहा है. यह गंडकी नदी (Gandaki River) जब नेपाल से बिहार आती है तो इसे नारायणी नदी के नाम से जाना जाता है. 14 और 15 टन के यह दो शिलाखंड 31 जनवरी की रात्रि गोरखपुर पहुंच जाएंगे. गोरक्षपीठ में विश्राम के बाद 1 फरवरी को शिलाओं का काफिला पूजा अर्चना के बाद अयोध्या (Ayodhya) के लिए रवाना होगा और देर रात्रि अयोध्या पहुंच जाएगा.
2 फरवरी को अयोध्या के राम कारसेवकपुरम में इसे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंपा जाएगा. इसी के बाद अयोध्या के साधु संत राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों की मौजूदगी में बाकायदा उसका पूजन अर्चन करेंगे. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ( Champat Rai) ने यह जानकारी दी.
करोड़ों वर्ष पुराने बताए जा रहे शिलाखंड
उन्होंने कहा कि दामोदर कुंड से निकलने वाली गंडकी नदी से तलाशे गए 14 और 15 टन के यह शिलाखंड बड़ी मुश्किल से मिले हैं. नेपाल के पोखरा से 85 किलोमीटर उत्तर दिशा में गणेश्वर धाम के पास ये शिलाखंड मिले हैं. यह स्थान समुद्र तल से 6000 फीट ऊंचाई पर है. इन शिलाखंडों की आयु की बात करें तो इन्हें करोड़ों वर्ष पुराना बताया जा रहा है.
30 टन और 14 टन वजनी हैं शिलाखंड
चंपत राय ने बताया कि पोखरा से भी 85 किलोमीटर उत्तर दिशा में गणेश्वर धाम गंडकी के तट से इन दोनों शिलाओं को प्राप्त किया गया है. उन्होंने कहा कि जहां से ये शिलाएं प्राप्त की गई हैं वह स्थान समुद्र तल से लगभग 6000 फुट ऊंचा है. उन्होंने कहा कि नेपाल के पत्थरों के जानकार लोगों का कहना है कि इन शिलालेखों की आयु करोड़ो वर्ष है. चंपत राय ने कहा कि मेरी जानकारी में लाया गया है कि एक शिलाखंड लगभग 30 टन का और दूसरा शिलाखंड 14 अथवा 15 टन का है.
1 फरवरी को अयोध्या लाए जाएंगे शिलाखंड
चंपत राय ने बताया कि नेपाल के जानकी धाम में अनुष्ठान और पूजन अर्चन के बाद बिहार से होते हुए मंगलवार देर शाम यह शिलाखंड गोरखपुर पहुंच जाएंगे. गोरक्षपीठ में पूजन अनुष्ठान के बाद इन्हें 1 फरवरी की देर रात्रि अयोध्या लाया जाएगा और अयोध्या के राम कारसेवकपुरम में 2 फरवरी की सुबह लगभग 10:00 बजे ट्रकों से उतारा जाएगा और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंपा जाएगा.
राय ने कहा कि राम मंदिर ट्रस्ट को इन शिलाखंड की सुपुर्दगी मिलने के बाद अयोध्या के साधु संत और ट्रस्ट के पदाधिकारी बाकायदा इन शिलाखंडों का पूजन अर्चन करेंगे. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि बिहार में 40 से 45 किलोमीटर की यात्रा करने के लिए 3 घंटे से भी अधिक का समय लग रहा है क्योंकि रास्ते में श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ है कि हर कोई उन्हें देखना चाहता है और दर्शन के साथ पूजन भी करना चाहता है. उन्होंने कहा कि बिहार की तरह यूपी में भी यही दृश्य होगा.
'शिलाखंडों के पूजन के लिए बिहार की सड़कों पर उमड़ी भीड़'
चंपत राय ने कहा कि आज शाम तक अथवा रात्रि तक शिलाखंड ला रहे दोनों ट्रक गोरखपुर पहुंच जाएंगे. गोरखपुर में रात्रि विश्राम होगा और प्रातः काल स्नानादि करके यह ट्रक अयोध्या के लिए प्रस्थान करेंगे. उन्होंने कहा कि अभी तक की जानकारी के अनुसार बिहार में बड़ी संख्या में लोग शिलाखंडों के दर्शन के लिए सड़क पर उतर आए है, जिससे शिलाखंडों को लाने में देरी हो रही है. बिहार में 40 से 45 किलोमीटर की दूरी 3 घंटे से भी अधिक समय में पार हो रही है. यह समाज की श्रद्धा को दर्शाता है.
भगवान विष्णु के रूप हैं शालिग्राम- चंपत राय
चंपत राय ने कहा कि अयोध्या पहुंचने के बाद गुरुवार को 10 बजे इन शिलाखंडों का पूजन किया जायेगा. उन्होंने कहा कि हाईवे के निकट बालू घाट चौराहा बूथ नंबर 3 रेलवे लाइन के नीचे से पार करके रामसेवकपुरम के मैदान में इन ट्रकों को खड़ा किया जाएगा. उन्होंने कहा कि 2 तारीख को इन शिलाओं को ट्रक अथवा ट्राला के ऊपर से उतारा जाएगा और राम जन्मभूमि मंदिर को सौंप जाएगा. चंपत राय ने लोगों और श्रद्धालुओं से अपील की कि जो लोग हमें सुन रहे हैं या देख रहे हैं उनसे अपील है कि वे गुरुवार सुबद साढ़े दस बजे रामसेवकपुरम पहुंच जाएं. चंपत राय ने यह भी बताया कि नेपाल से लाई जा रही शालिग्राम शिलाओं का बड़ा धार्मिक महत्व है. उन्होंने कहा कि गंडकी नदी जब बिहार में प्रवेश करती है तो इसको नारायणी नदी के नाम से जाना जाता है. नेपाल के गंडकी नदी से निकलने वाले शालिग्राम पत्थरों को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है.
सभी दर्शन के लिए आएं, कोई रोक-टोक नहीं
चंपत राय ने आगे कहा कि शिलाओं का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व क्या है मैं इसका जानकार नहीं हूं. जितना में सुन रहा हूं उतना ही जानता हूं कि गंडकी के पत्थर को शालिग्राम कहा जाता है और शालिग्राम को साक्षात भगवान विष्णु का रूप माना जाता है. उन्होंने कहा कि जैसे मध्य प्रदेश की नर्मदा के शालिग्राम को भगवान शंकर का रूप मानते हैं ऐसे ही नेपाल के दामोदर कुंड से चलने वाली काली गंडकी के शालिग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है. चंपत राय ने कहा कि काली गंडकी जब नेपाल से बिहार में आती है तो बिहार में इसी का नाम नारायणी हो जाता है और नारायणी भगवान नारायण की पत्नी हैं. उन्होंने कहा कि दर्शन के लिए सभी लोग आएं कोई रोक-टोक नहीं है.
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