Sambhal Rani Ki Bawdi: उत्तर प्रदेश के संभल में मंदिर और कुंओं के बाद एक प्राचीन बावड़ी मिली है. ये बावड़ी 150 साल पुरानी बताई जा रही है, जो करीब 400 वर्ग मीटर में फैली हुई है. ये बावड़ी रानी सुरेंद्र बाला की है, जहां पर आराम किया करती थीं. बावड़ी की खुदाई के बीच रानी सुरेंद्र बाला की पोती शिप्रा गेरा भी सामने आई हैं. जिन्होंने बताया कि इस बावड़ी से जुड़ी सालों पुरानी अपनी यादों को ताजा किया और बताया कि किस तरह वो बचपन में यहां खेलने आती थीं लेकिन, समय के साथ ये बावड़ी कब खत्म हो गई, इसका पता ही नहीं चला.
संभल के चंदौसी में बावड़ी की खुदाई का काम शाम तक जारी रहा, दो जेसीबी के सहारे बावड़ी के ऊपर के हिस्से से मिट्टी हटाई गई. साथ ही अब तक 5 फीट गहरी खुदाई हो चुकी है. ये प्राचीन बावड़ी चंदौसी के लक्ष्मणगंज इलाके में मिली है. रानी सुरेन्द्र बाला पोती शिप्रा गेरा ने इसे लेकर एबीपी न्यूज़ से बात की और बताया कि ये उनकी दादी की संपत्ति थी. पहले यहां पर उनके खेत बने हुए थे, जिनके बीच में कुएं पर एक एक रेस्ट हाउस बना हुआ था, जिसे काफी आकर्षक तरीके से बनाया हुआ था.
150 साल पुरानी है बावड़ी
शिप्रा गेरा ने बताया कि यहां पर खेती बाड़ी के साथ आराम के लिए एक शेल्टर वाला कुआं बनाया हुआ था. ये एक एंटीक चीज थी, जहां हम बचपन में आते थे. ये सब कैसे खत्म हुआ पता नहीं चल पाया. लेकिन, उन्होंने अपने बचपन में इसे देखा है. उन्होंने कहा कि ये बावड़ी डेढ़ सौ साल पुरानी तक हो सकती है, जिसे उनके पूर्वजों ने बनवाया था.
उन्होंने कहा कि बावड़ी को लेकर आगे क्या करना है, ये सरकार के हाथ में हैं. सरकार को जो अच्छा लगता है वो करें, हमारे लिए तो ये हमारे पूर्वजों की संपत्ति है जो अब खुदाई में निकली है, जिस पर हमें बहुत गर्व है. हमें बहुत खुशी है, हमें लगा था कि वो खत्म हो चुकी है और जिसके बारे में हमें पता नहीं चल पा रहा था, वो आज सामने आ गई है. इससे हमारी दादी का नाम रोशन हुआ है. इसके लिए हम सरकार को धन्यवाद देते हैं. उन्होंने बताया कि 20-25 पहले उन्हें इसे आखिरी बार देखा था.
शिप्रा ने बताया कि उन्हें न्यूज़ में पता चला कि ऐसे बावड़ी निकल आई है. अब तो यहां पर बिल्डिंग बन गई हैं. पहले तो हम खेत में जाते हैं तो हमारी याद में तो सिर्फ वहीं था कि खेतों के बीच कुआं था, उसे दो मंजिला बरामदे में कवर किया हुआ था. 25 साल बाद उन्होंने बावड़ी को फिर से देखा है. लेकिन, आज यहां आसपास घर बन गए हैं और पूरी बावड़ी घरों के बीच में ही बची है.
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