Char Dham Yatra 2022: उत्तरकाशी के इस गांव का इतिहास है निराला, कभी यहीं से शुरू होती थी गंगोत्री-यमुनोत्री धाम की यात्रा
Historical Village of Uttarkashi: उत्तरकाशी की पहाड़ियों में बसा धरासू गांव अपने आप में चार धाम की यात्रा से जुड़ा इतिहास समेटे हुए हैं. कभी इसी गांव से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा होती थी.
Char Dham Yatra 2022: उत्तरकाशी (Uttarkashi) में समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदला है और ऐसे ही एक गांव का इतिहास हम आपको बताने जा रहे हैं जहां 60 के दशक तक खूब चहल-पहल रहती थी. ये गांव है उत्तकाशी की पहाड़ियों के बीच बसा धरासूं गांव (Dharasu Village). एक समय था जब इस गांव से ही मां गंगोत्री (Gangotri Dham) और यमुनोत्री (Yamunotri Dham) की पैदल यात्रा होती थी, क्योंकि उस समय यहीं तक सड़क मार्ग हुआ करता था. इसलिए ये एक ऐसा पड़ाव होता था जहां पर श्रद्धालु रुकते थे और यहीं से पैदल यात्रा पर आगे का सफर तय करते थे.
इस गांव का इतिहास आपको रोमांचित कर देगा
धरासू गांव में उन दिनों यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती थी. उस वक्त इस गांव पर सड़क मार्ग खत्म हो जाता था. जिसकी वजह से यात्री यहां पर रात्रि विश्राम करते थे और यहां से पहले मां यमुनोत्री की यात्रा (Yamunotri Dham Yatra) और फिर वापस आकर मां गंगोत्री की यात्रा (Gangotri Yatra) पर पैदल निकलते थे. यहां से दोनों धामों के लिए पांच-पांच दिन यात्रा करने में लगते थे. धरासू गांव पहुंचकर यात्री रात्रि विश्राम करते और फिर पहले मां यमुनोत्री धाम के लिए पैदल यात्रा पर निकलते थे. यमुनोत्री से पैदल यात्रा कर वापस आकर फिर यहीं रात्रि विश्राम होता था और दूसरे दिन मां गंगोत्री के दर्शन के लिए श्रद्धालु निकल जाते थे.
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कभी धरासू से शुरू होती थी गंगोत्री-यमुनोत्री का यात्रा
धरासू के स्थानीय निवासी बताते हैं कि यहां पर 60 के दशक से पहले यात्रियों की खूब भीड़ रहती थी. ये यात्रा में जाने के लिए मुख्य पड़ाव हुआ करता था. वहीं अब जहां एक ओर गंगोत्री धाम तक पूरी सड़क बन चुकी है वहीं यमुनोत्री में भी महज पांच किमी की ही पैदल यात्रा रह गई है. हालांकि अभी भी कई लोग धरासू गांव से पैदल यात्रा कर दोनों धाम में जाते हैं. साधु संत अभी भी यहीं से पैदल मार्ग से होते हुए दोनों धाम पहुंचते हैं.
इतिहास को खुद में समेटे है धरासू गांव
धरासू गांव अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है .अब अधिकांश यात्रियों को ये जानकारी नहीं है कि यहां से पैदल मार्गों से होते हुए दोनों धामों में पहुंचा जाता था. हालांकि अभी भी यात्री इस धरासू गांव के इतिहास को जानने की ललक रखते हैं. धरासू गांव के बाद पैदल मार्गों पर हजारों श्रद्धालुओं की संख्या हुआ करती थी. जो चार से पांच दिनों में मां के दरबार पहुंच पाते थे.
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