Chardham Yatra: केदारनाथ यात्रा (Kedarnath Yatra) में अहम भूमिका निभाने वाले घोड़े-खच्चरों की ही कोई कद्र नहीं की जा रही है. इनके लिए ना ही रहने की कोई समुचित व्यवस्था है और ना ही इनके मरने के बाद विधिवत अंतिम संस्कार नहीं किया जा रहा है. केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के मरने के बाद मालिक एवं हाॅकर उन्हें सीधे मंदाकिनी नदी (Mandakini River) में फेंक रहे हैं जिससे नदी का जल प्रदूषित हो रहा है. ऐसे में केदारनाथ क्षेत्र में महामारी फैलने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. आंकड़ों के मुताबिक अब तक 1.25 लाख तीर्थयात्री घोड़े-खच्चरों से यात्रा पूरी कर चुके हैं, जबकि अन्य तीर्थयात्री हेलीकाॅप्टर व पैदल चलकर धाम पहुंचे हैं.


बता दें कि अकेले 16 दिनों में 55 घोड़ा-खच्चरों के पेट में तेज दर्द उठने से उनकी मौत हो चुकी है, जबकि 4 घोड़ा-खच्चरों की गिरने से और एक की पत्थर की चपेट में आने से मौत हो गई. 


घोड़े-खच्चरों की इसलिए हो रही मौत
समुद्रतल से 11750 फिट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तक पहुंचने के लिए बाबा केदार के भक्तों को 18 किमी की दूरी तय करनी होती है. इस दूरी में यात्री को धाम पहुंचाने में घोड़ा-खच्चर अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन जानवरों के लिए भरपेट चना, भूसा और गर्म पानी भी नहीं मिल पा रहा है. वहीं, 18 किमी रास्ते में बीच में कहीं भी विश्राम के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. तमाम दावों के बावजूद पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चर के लिए गर्म पानी नहीं है. दूसरी तरफ संचालक एवं हॉकर रुपये कमाने के लिए घोड़ा-खच्चरों से एक दिन में गौरीकुंड से केदारनाथ के दो से तीन चक्कर लगवा रहे हैं.


 इस दौरान संचालक एवं हॉकर गौरीकुंड से घोड़े को हांकते हुए सीधे बेस कैंप केदारनाथ में रुकता है और थोड़ा बहुत चना व भूसा खिलाकर पुनः नीचे के लिए दौड़ाया जाता है. जानवर को पानी व आराम नहीं मिलने से उसके पेट में गैस बननी शुरू हो जाती है, जो फेफड़ों के बाहरी झिल्ली को प्रभावित करती है और दर्द से उनकी मौत हो जाती है.


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संचालन की नहीं बन पाई ठोस व्यवस्था 


वहीं, गौरीकुंड जिला पंचायत अध्यक्ष अमरदेई शाह ने कहा कि गौरीकुंड से केदारनाथ धाम तक कहीं पर भी घोड़े-खच्चरों के लिए आराम करने के लिए टिन शेड का निर्माण नहीं किया गया है और ना ही अन्य व्यवस्थाएं की गई हैं. घोड़े-खच्चर मालिक भी अपने जानवरों के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं. वहीं, यात्रा मार्ग पर मर रहे जानवरों के शव को नदी में बहाया जा रहा है. मृत जानवरों का सही तरीके से दाह संस्कार कर उन्हें जमीन में नमक डालकर दफनाया जाना चाहिए. पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि यात्रा में संबंधित कर्मचारियों को मॉनीटरिंग के निर्देश दिए गए हैं.


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