Durg News: 'न सरकारी कोच', न खेलने की सुविधा', इस गांव के 'बालक दास' बना रहे खेल के जरिए बच्चों का करियर
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दुर्ग खमरिया गांव के बच्चे बिना किसी सरकारी कोच के ही खेलो इंडिया और सरकारी नौकरी में जाने के लिए रोजाना कड़ी मेहनत कर रहे है.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दुर्ग (Durg) जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दुर्ग खमरिया (Khamariya) गांव के बच्चे बिना किसी सरकारी कोच के ही खेलो इंडिया (Khelo India) और सरकारी नौकरी में जाने के लिए रोजाना कड़ी मेहनत कर रहे है. गांव में खेल का मैदान तो है लेकिन जो सुविधा बच्चों को मिलनी चाहिए वह सुविधा वहां नहीं है. बच्चों के लिए तो वहां पीने तक का पानी उपलब्ध नहीं है. बच्चे खुद से ही प्रेक्टिस करके खेलो इंडिया में जाने का सपना देख रहे हैं.
कौन देता है ट्रेनिंग
हालांकि सरकारी कोच नहीं होने की वजह से गांव में ही रहने वाले बालक दास बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं. बालक दास वैसे तो गवर्नमेंट स्कूल में टीचर हैं. वह रोज अपने गांव से धमधा स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं. वहां से पढ़ा के आने के बाद अपने गांव के बच्चों को खेल के विषय में ट्रेनिंग देने पहुंच जाते हैं. बालक दास का कहना है कि इन बच्चों में खेलने की ललक बहुत ज्यादा है. सरकारी कोच नहीं होने की वजह से मैं इन बच्चों को निशुल्क सेवा 17 साल से दे रहा हूं. बच्चे इतने होनहार है कि खेल के बदौलत अब तक इस गांव के 11 बच्चों का सरकारी नौकरी लग चुकी है. जिनमें से सात बच्चे इंडियन आर्मी में हैं और चार बच्चे गवर्नमेंट जॉब में नौकरी कर रहे हैं. इस गांव के छोटे-छोटे बच्चे रोजाना यहां पर आते हैं. मैं उन बच्चों को जो भी मुझे आता है उन बच्चों को ट्रेनिंग देता हूं.
क्या बोले सरपंच
वहीं गांव के सरपंच सुखीराम का कहना है कि अभी मुझे दो महीने ही हुए हैं सरपंच बने. इस मैदान में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है. मैं उसकी व्यवस्था करूंगा साथ ही जो भी इस मैदान के लिए बच्चों के लिए सुविधा होगी उसे कराने के लिए तत्पर रहूंगा. बच्चे अभी गौठान में लगे नल में से पानी पीने जाते हैं. मेरे गांव के बच्चे खेल के बदौलत नौकरी में भी लगे हैं. मैं चाहूंगा कि इन बच्चों को वह सारी सुविधा उपलब्ध करूंगा जो इन्हें चाहिए.
बच्चों को लेकर क्या बोले
सरपंच ने कहा कि इन बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए सरकारी कोच नहीं है. बालक दास निःशुल्क ही पिछले 17 सालों से इन बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे हैं. अगर सरकार इन बच्चों की ओर ध्यान दें तो यह बच्चे खेल की बदौलत अपने गांव अपने राज्य और अपने देश का नाम पूरे विश्व में रोशन कर सकते हैं.
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